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कविता आसपास : – तारकनाथ चौधुरी
🌸 सरस्वती – वन्दना
हे शारदे!मातेश्वरी
मुझको यही वरदान दे।
मूढ़,अति मतिमंद हूँ मैं
देवी हे कुछ ज्ञान दे।।
हे शारदे मातेश्वरी…..
गीत की जननी तुम्हीं हो,
हे दयालु सरस्वती।
गा सकूँ महिमा तुम्हारी
वो मधुर सुर-तान दे।।
हे शारदे मातेश्वरी….
जोड़कर दो हाथ करता
हूँ तुम्हारी वन्दना।
लक्ष्य से भटकूँ कभी ना
माँ हमें संज्ञान दे।।
हे शारदे मातेश्वरी….
गत की पीडा़ भूलकर
स्वागत करूँ नवीन की।
बस यही है प्रार्थना
मैं रहूँ तुम्हारे अधीन ही।।
हे शारदे मातेश्वरी…..
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🌸 आओ साथियों
सुस्त खडे़ क्यों,सुप्त पडे़ क्यों?
आओ साथियों टूट पडे़ं
मातृभूमि के विद्रोही को
हम सब मिलकर दूर करें।
अनगिनत कष्ट-व्यथा सहकर
भारत माँ के श्रृँखल काटे,
सर अलग हुआ,धड़ लुप्त हुआ,
फिर भी न धरा के वीर हारे,
होंगे शर्मिंदा-कलंकित जो
सपने उनके हम झूठ करें।
सुस्त खडे़ क्यों,सुप्त पडे़ क्यों…..
है जाति अलग और धर्म अलग
पर लहू तो अपना एक है,
इस रक्त को आओ समझायें,
भारतवासी सब एक हैं,
विघटनकारी मस्तिष्कों को
आओ हम चकनाचूर करें।
सुस्त खडे़ क्यों,सुप्त पडे़ क्यों…..
है कौन भला जो रोक सका,
क्षिति पर चमकीले सूरज को,
बादल आखि़र कब तलक टिका,
कब ढाँक सका है पूरब को,
इस सत्य को शक्ति बना साथी,
भारत को विश्व का नूर करें।
सुस्त खडे़ क्यों,सुप्त पडे़ क्यों?
आओ साथियों टूट पडे़ं,
मातृभूमि के विद्रोही को,
हम सब मिलकर दूर करें….
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•कवि संपर्क –
•83494 08210
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