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कुछ जमीन से कुछ हवा से : विनोद साव
🌸 रोबोट रेस्तरां के शहर में
•बैंगलोर का रोबोट रेस्तरां
अपनी स्मृतियों में बैंगलोर को खंगालना वैसे ही है जैसे बाग-बगीचों के झुरमुट में उसे झांकना. हम यहां तीसरी बार आए थे, पहली बार १९८२ में १८ दिनों की सम्पूर्ण दक्षिण भारत यात्रा में एक विशेष बस से आए थे. रात हमारे टूरिस्ट एजेंट ने हमें एक साफ-सुथरे गुरुद्वारे में रुकवा दिया था. गुरुद्वारा प्रबंधक ने कहा था कि “यहां दाढ़ी बनाना मना है.”
रात हम यहां सो गए थे. जब मॉर्निंग वॉक के लिए बाहर निकले तब हम इस अनूठे शहर को देखते रह गए थे जैसे हम किसी शहर में नहीं किसी सुन्दर उपवन में विचरण कर रहे हों. हर घर और उनकी दीवारें सुन्दर सुन्दर फूलों, बेल-बूटों से ढंकी हुई थी. उनके मकान मकानों की तरह नहीं किसी हरियाली से सजे आधुनिक रिसोर्ट या कॉटेज की तरह लगते. ऐसे लगता जैसे हम किसी शहर में नहीं किसी विशाल उद्यान में चले जा रहे हों जिसके मार्ग चौराहे सब फूलों-फौवार्रों से भरे हुए हैं. तब जाना कि ऐसे ही नहीं इस शहर को ‘गार्डन सीटी’ कहा गया है. यहां वनस्पति उद्यानों का विशाल बगीचा ‘लालबाग’ है. बाहर ठेलों में इस बाग के फल फूल बिकते हैं. चालीस साल पहले तब एक रुपये बोतल में अंगूर के मीठे ताजे रस मिल गए थे. जब पीने बैठे तब कई बोतलें खाली हो गईं.
अपनी ठंडी आबोहवा और हर किस्म की सुविधाओं के कारण सेवानिवृति के बाद रहने बसने के लिए यह हमेशा उपयुक्त शहर रहा है इसलिए इसे पेंशनर्स पैराडाइस कहते हैं. अब भले ही यह ऑटोमोबाइल प्रदूषण के कारण कम शीतल होता जा रहा है जैसे पुणे पहले हो चुका है. अब हम लोग व्हाइटफील्ड में रुकते हैं. इस इलाके का नाम यूरोपीय और एंग्लो इंडियन एसोसिएशन के संस्थापक डी.एस. व्हाइट के नाम पर है. यह आई.टी.हब है और यहां रियल एस्टेट का बड़ा कारोबार है.
तब बैंगलोर के सिनेमाहॉल बड़े भव्य और खूबसूरत थे. बैंगलोर के इतिहासकार सुरेश मूना कहते हैं कि ‘कभी यहां डेढ़-सौ सिनेमाहाल थे. हमने वहां के सबसे भव्य टाकीज ‘राज-राजेश्वरी’ को देखा था जहाँ एशिया का पहला 70-एम एम पर्दा लगा था. दिलीपकुमार-अमिताभ बच्चन दो दिग्गज अभिनेताओं के शक्ति प्रदर्शन से भरी फिल्म ‘शक्ति’ हमने देखी. हम फिल्म ‘कुली’ की बहुचर्चित अमिताभी दुर्घटना के बाद पहुंचे थे. बैंगलोर रेल्वेस्टेशन में ‘कुली’ की शूटिंग हुई थी. जिसके बाद इंदिरा गाँधी भी उस घायल हीरो को देखने बैंगलोर के अस्पताल आ पहुंची थीं. तब हाथ जोड़ते हुए उन्होंने कागज में लिखकर इंदिराजी को दिया “आई कान्ट स्पीक” तब इंदिरा जी ने उनके माथे को अपने स्नेहसिक्त हाथों से छूते हुए कहा था “बट आई कैन स्पीक माय चाइल्ड.”
उस समय बैंगलोर का गाइड हमें घुमाते हुए बोल उठा था “लेडिज एंड जेंटलमैन.. बैंगलोर सिटी का पापुलेशन 35 लैख्स है जैसे अमिताभ का एक फिल्म का रेट है 35 लैख्स.”
हम घूमते हुए एक तीस मंजिली इमारत में पहुँच गए थे जिसके २९वें और ३०वे माले पर अमज़द खान की “टॉप कोपी’ रेस्तरां थी.
इस बार भी हम यशवंतपुर से पहले एलंका स्टेशन में उतरकर जब व्हाइटफील्ड जा रहे थे तब रास्ते में एक मूर्तिकार कन्नड़ फिल्मों के दिवंगत सुपरस्टार डॉ.राजकुमार और उनके बेटे की मूर्ति बना रहे थे उन्हें किसी सार्वजनिक स्थल में स्थापित करने के लिए. यहां फिल्मों के अभिनेता समाजसेवाओं से जुड़े रहे और इसलिए राजनीति में उन्होंने सफलता पाई.
बैंगलोर बम्बई की तरह का दूसरा शहर है. यहां एक बॉम्बे ग्रांट रोड भी है. इस शहर ने बम्बई (मुंबई) की तरह डिजिटल और सॉफ्टवेयर उद्योग, फैशन, सिनेमा और क्रिकेट में बड़ी रूचि ली और बैंगलोर को देश का ऐसा रोजगार परक केंद्र बना दिया है कि इधर युवाओं की दौड़ देखते बनती है. यद्यपि बैंगलोर की भीड़ को देखने से वह ग्लैमर दिखाई नहीं देता जो मुंबई-पुणे या दक्षिण के दूसरे बड़े शहरों में दिखाई देता है. आम कन्नड़ भद्रजन, सीधे सरल व बनाव-श्रृंगार से दूर दिखाई देते हैं लेकिन उनका शहर बैंगलोर तो पूरी तरह चकाचक और खूबसूरत है. उन्नति की दौड़ में कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद को पीछे छोड़ रहा है. जब यह मैसूर राज्य था तब यहां के मुख्य सचिव वैज्ञानिक विश्वेश्वरैया थे उन्होंने इस शहर में ऐसी वैज्ञानिक चेतना भर दी कि हर नये विज्ञान और अन्वेषण की दृष्टि से यह नगर अपने विकास और उन्नति को तय कर रहा है. देश की अग्रणी सूचना प्रौद्योगिकी (IT) निर्यातक के रूप में अपनी भूमिका के कारण बैंगलोर को व्यापक रूप से भारत की सिलिकॉन-वैली या भारत की आई टी राजधानी के रूप में माना जाता है। पिछले समय हम इसके एयरपोर्ट से रायपुर गए थे. इसका केम्पेगौड़ा हवाई अड्डा भारत का तीसरा सबसे व्यस्त हवाई अड्डा है. विजयनगर साम्राज्य के सामन्त केम्पेगौडा ने इस क्षेत्र में पहले क़िले का निर्माण कर बेंगलुरु शहर की नींव डाली थी. इस बार राजधानी एक्सप्रेस से नागपुर निकले तो बैंगलोर के के.एस.आर.रेलवेस्टेशन से हमने ट्रेन पकड़ी. KSR- क्रांतिवीर संगोल्ली रायन्ना एक बहादुर देशभक्त स्वतंत्रता सेनानी थे जिनके नाम से रेलवे स्टेशन है.
बैंगलोर का शिक्षा और विज्ञान इनके धर्म आश्रमों को दिशा देता है. जहाँ इनके गुरु स्वामी महराज कल्याणकारी सेवाओं में जुटे हुए हैं. उत्तर भारत के आश्रम गुरुओं की तरह नहीं जो अपनी करनी से जेल में जा बैठे हैं और आजीवन कारावास भुगत रहे हैं. यहां के ज्यादतर आश्रम स्कूल, अस्पताल की स्थापना के साथ कौशल कुटीर केन्द्रों में रोजगारपरक प्रशिक्षण दे रहे हैं. यह शहर केवल सूचना तकनीक ही निर्यात नहीं करता बल्कि भोजन खिलाने में भी टेक्नोलॉजी का सहारा ले रहा है.
हम इंदिरा नगर बैंगलोर के एक ऐसे रेस्तरां में आ बैठे हैं जहाँ खाना रोबोट परोस रहे हैं. यहां पांच रोबोट और तीन खिलौना ट्रेन है जिसमें ग्राहकों के आदेश के हिसाब से खाना परोसा जाता है. बैठक व्यवस्था के बीचोंबीच ट्रैक है जिसमें रोबोट चलते हैं. कभी कभी इसके पांचों रोबोट एक के पीछे एक निकलते हैं. कभी कोई अपने ग्राहक को अकेला परोसने आ जाता है. यहां महिलाओं के साथ बच्चे बड़े उत्साह से आते हैं. वे खाना लेकर खड़े रोबोट के साथ अपनी सेल्फी लेते हैं. ये रोबोट महिलाओं की पोशाक में हैं. हमने थाई क्विजिन का एक आइटम ऑर्डर किया था जिसे लेकर आने वाली रोबोट का नाम ‘किटी’ था. रेस्तरां में बैठे हुए लोग उसे वैव करते हुए पुकार उठते थे ‘हाय किटी’.
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