- Home
- Chhattisgarh
- साहित्य : ‘ साहित्य सृजन समिति ‘ के सौजन्य से बसंतोत्सव एवं होली पर सरस काव्य गोष्ठी.
साहित्य : ‘ साहित्य सृजन समिति ‘ के सौजन्य से बसंतोत्सव एवं होली पर सरस काव्य गोष्ठी.
•मुख्यअतिथि –
डॉ. महेशचंद्र शर्मा
•अध्यक्षता –
एन एल मौर्य ‘ प्रीतम ‘
[अध्यक्ष, साहित्य सृजन परिषद]
•विशिष्ठ अतिथि –
•श्रीमती आशा झा
•डॉ.संजय दानी
•शाद बिलासपुरी
•प्रदीप भट्टाचार्य
•संचालन –
गजेंद्र द्विवेदी गिरीश
•धन्यवाद वक्तव्य –
ओमवीर करन
[महासचिव, साहित्य सृजन परिषद]
☝ कविता पढ़ते हुए – प्रदीप भट्टाचार्य
☝ कविता पढ़ते हुए – शाद बिलासपुरी
☝ रचना पाठ करते हुए – एन एल मौर्य ‘ प्रीतम ‘
☝ आशा झा अपनी रचना के साथ
आमंत्रित कवियों ने अपनी अपनी प्रतिनिधि रचनाओं से उपस्थित श्रोताओं का मंत्रमुग्ध कर दिए…
श्रीमती आशा झा –
जी चाहता ये खेलूं होली श्याम तेरे संग/कोरी रहे न चुनरी चढ़ जाये तेरा रंग…
डॉ.संजय दानी –
रोज पौवा पिया तो पीलिया हो जायेगा/हल्दी के व्यवसायियों का सगा हो जायेगा…
एन एल मौर्य ‘ प्रीतम ‘ –
घूमे भू पर होली के दिन/देवी देवताओं की टोलियां/नर नारियां देवी देवताओं पर/भर – भर मारें पिचकारियां…
शाद बिलासपुरी –
उसके ख्वाब मत देखो/उसका ख्वाब हो जाओ…
प्रदीप भट्टाचार्य –
अजीब विडम्बना है/कैसा ये राष्ट्र शासकों का/सपना है/रामू के घर/पकती है/आश्ववासनाओं की खिचड़ी/और/नेता उदरस्थ करते हैं/डटकर रात्रि भोज…
इस्माइल आज़ाद –
मोर गवयी के होली रे संगी/मोर गवयी के होली/सुभ्मत म रहिथे/जम्मा झन अऊ करिथे मीठ बोली…
शुभेन्दु बागची –
एहसासों के झरोखे से सावन नहीं देखा/तेरी आरजू है जहाँ वो कतरा नहीं देखा…
मो.रियाज खान गौहर –
कुछ न कुछ होता ही रहता है/घरों के दरमियां/अपना दुखड़ा/क्या सुनाते दोस्तों के दरमियां…
रामबरन कोरी ‘ कशिश ‘ –
बनता है कव्वाल परिंदे/आड़ी तिरछी खींच लकीरें…
माला सिंह –
मैं हूँ बिटिया/तुम्हारी मां/मुझे दुनिया में आने दो/बदल दूंगी/दुनिया/तुम्हारी मां/मुझे दुनिया में आने दो…
शिवेंद्र केशव दुबे –
इस महफिल के कद्रदानों यहां की शान हो तुम/कल यादों में महकेगी वो मुस्कान हो तुम…
नवेद रज़ा दुर्गवी –
कपट छल को मिटाती है होली/मिले हस के रिश्ता बनाती है होली…
गजेंद्र द्विवेदी गिरीश –
प्रेम स्नेह अनुराग लिखूँगा/नहीं किसी के दाग़ लिखूँगा…
आलोक नारंग –
बुराई करके वो मशहूर कर गया मुझको/तरक्की पर मेरी जो शख्स मुझे जलता है…
प्रदीप पांडेय –
जिनके बिना स्वयं बसंत है बसंतहीन/उनके भी भाग्य में बसंत होना चाहिए…
टी एन कुशवाहा ‘ अंजन ‘ –
दर्पण में देखोगे तो सब सच दिख जायेगा/फिर अपने कर्मों की भूल से ये मन पछतायेगा…
डॉ.नौशाद अहमद सिद्दीकी ‘ सब्र ‘ –
दुश्मन को भी दोस्त बना दे ये होली/इस दिन बड़ा निरालापन होता है…
दशरथ सिंह भुवाल –
कभी चहक तो कभी झिड़की तेरी/जैसे कविता या कि ग़ज़ल हो…
ओमवीर करन –
ये विचार नेक नहीं है/ईश्वर अल्लाह एक नहीं है…
नीलम जायसवाल –
मातु यशोदा कह रही/मतकर लाल धमाल/होली के हुड़दंग में माने न नंदलाल…
शुचि भवि –
कहे जब दिल की हर धड़कन/मिलो साजन/मिलो साजन/बिना मांगे ही दे कंगन/समझ लेना कि होली है…
प्रदीप वर्मा –
संगी माटी म मिल गए/महंगाई के मारे मजा/गना गंवागे/गांव गवयी…
डॉ महेशचंद्र शर्मा संबोधित करते हुए…
होली पर सोनिया सोनी और संध्या सिंह ने भी अपनी कविताओं से सबका दिल जीत लिया.
[ •रपट : डॉ नौशाद अहमद सिद्दीकी ‘ सब्र ‘, प्रचार सचिव ‘ साहित्य सृजन परिषद ‘ ]
🌸🌸🌸🌸🌸