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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष : – विद्या गुप्ता
🌸 स्त्री शक्ति का आव्हान…
रुको…..!!
भागो मत, होश में रहो
अपनी मुट्ठीयों को….
भीच लो मजबूती से
भीच लो अपने होठों और दांतो को
पैरों को जमा लो सख्ती से
खड़ी हो जाओ पूरे कद पर
शब्दों में घोल लो आग
बोलो….., ले छू मुझे….!!
तुम्हारी आंखों से बरसे,
अपने अपहृत होने के खिलाफ
स्वाभिमान की आग…..!!
कैसे छीन सकता है कोई तुम्हें
तुम्हारी मर्जी के खिलाफ
तुम्हारा भयभीत होना ही
उसके आक्रामक होने को
देता है बढ़ावा
तुम्हारे भागने का प्रयास ही
उसके हाथ पैरों में भरता है बिजली
तुम्हारी याचना ही
उसके जानवर को देती है बल
तुम्हारी प्रार्थना….
भगवान के लिए छोड़ दो मुझे…..!!
क्यों, आखिर क्यों….???
तुम स्वयं में हो एक मूल्य
भगवान के लिए नहीं
अपने लिए लड़ो
तुम्हारे खड़े होते ही
धड़कने लगेगी उसके इरादों की दरिंदगी
आंखों के वहशीपन में आएंगी दरारें
डरता तौलेगा, तुम्हारे संकल्प की ताकत
तब झपट कर कर देना
पूरी अस्मिता से उस पर वार
तुम देखोगी
तुम्हारे संकल्प की आग…
तुम्हारे आसपास की हर वस्तु
दुर्गा वाहिनी सी, देगी तुम्हारा साथ
चाय की केतली हो, मग या गिलास
तुम्हारे जुड़े का पिन या पर्स में रखा पेन
भेध दो अपनी घूरती हुई आंखों से
ताकत से तोड़ दो
अपनी और बढ़ती उंगलियों को
सामूहिक बलात्कार की शिकार होना
यदि नियति हो गया तुम्हारी
तो भी मत करना आत्महत्या
तुम्हारा आत्माघात
फिर होगा एक बार बलात्कार
जो तुमने खुद से किया
कर सकती हो तुम
अपनी अस्मिता के पक्ष में
किसी की हत्या
हत्यारी होकर भी
बचा लाओगी
स्त्री जाति का स्वाभिमान…..!!
अभिमान….!!
पहचान…..!!
🌸 कांच का खिलौना
उसके हाथ में है
आबरू के कांच का
नाजुक खिलौना
जाना है उसे
पत्थरों की बस्ती के पार
हर क्षण सतर्क,
सशंकित, डरी हुई
कभी भी आ सकता है
किसी भी दिशा से पत्थर
उसके पास
सुरक्षा के लिए है बस
केवल कुछ नाखून
दांतों के कुछ प्रयास
थोड़ी सी गालियां
थोड़ी सी बद्दुआएं
और संघर्ष के अंतिम सिरे पर पिघली हुई प्रार्थना….
छोड़ दो ना….
भगवान के लिए छोड़ दो…!!
परंपराओं ने
घुट्टी में पिलाई थी भय कथाएं उंगलियों ने थामा नहीं
अपना ही विश्वास
देहरी के अंदर बाहर
सतत एक अग्नियात्रा
दिशा दिशांतर की
उठी हुई उंगलियां
प्रश्नों के कठोर प्रहार
विवशताओं से
चिंदी चिंदी से कटती
काश जान पाती वह
छुपी है कांच के खिलौने में तीखी तलवार
निरीह अग्निशिखा में है
कितनी आग….!!
पगली पढ़ नहीं सकी
घात के पीछे पिछले पृष्ठ पर लिखा
प्रतिघात का नियम
🌸 स्वप्न कथा लिखती लड़की…
सागर की रेत पर
उंगली से स्वप्न कथा लिखती
उदास लड़की बदल गई
लड़की कलम हो गई
लिखकर लहरों पर
अपना नाम
लुढ़का देती है
सागर की लहरों में
उछाल देती है अंतरिक्ष में
अपना नाम
अंधेरे से डरती लड़की
उजाले की नाक में
डालकर नकेल
लगाम खींचती
अंधेरा चीरती
निकल गई उस पार
शतुरमुर्ग सी
रेत में सिर घुसाती
लड़की पूरे कद पर
खड़ी हो गाती है अपना
प्रिय गीत
कोने में गुमसुम सी
दीवार बनी लड़की
तब्दील हो गई नींव में
हिलते घर को
तर्जनी से थाम
रोक देती है कंपन
आटे के पहाड़ पर
रोटी की अंतहीन संख्या
पठार पर बेलन सी
घूमती लड़की ने
किस्तों में बांट ली
भाग्य की लिखाई
स्वप्न याचिका लड़की ने
तोड़ दी सपनों की परंपरा
नक्शा बनाकर
रंग भरती लड़की
अब नहीं करती
इंद्रधनुष से
रंगों की प्रार्थना
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•संपर्क –
•96170 01222
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