• Chhattisgarh
  • चुनावी निरंकुश तंत्र बनाम आलोचना की स्वतंत्रता – राजेंद्र शर्मा

चुनावी निरंकुश तंत्र बनाम आलोचना की स्वतंत्रता – राजेंद्र शर्मा

2 years ago
222

बजट सत्र के उत्तरार्द्ध के आरंभ से सत्ताधारी पार्टी ने पहले पूरे हफ्ते जो किया है और दूसरे हफ्ते में भी जिसे जारी रखने पर तुली नजर आती है, जैसा कि आम तौर पर सभी टिप्पणीकारों ने दर्ज किया है, बेशक स्वतंत्र भारत के संसदीय इतिहास में अकल्पित-अभूतपूर्व है। यह निर्विवाद है कि यह पहली ही बार है जब खुद सत्ताधारी पार्टी द्वारा संसद को नहीं चलने दिया जा रहा है। सच तो यह है कि यह खुद मोदी राज के अपने रिकार्ड के हिसाब से भी यह अभूतपूर्व है। बेशक, मोदी राज ने इस सुस्थापित संसदीय परंपरा को तोड़ने की शुरूआत तो काफी पहले ही कर दी थी कि तरह-तरह से विरोध जताना, संसदीय काम-काज को रुकवाकर अपनी बात सुनाने की कोशिश करना, विपक्ष के ही विशेषाधिकार हैं, जिनके जरिए वह संसद को कार्यपालिका के बहुमत के लिए, रबर ठप्पा बनने से बचाता है।

जाहिर है कि इस परंपरा के सर्वमान्य होने के पीछे, स्वतंत्रता के बाद से आयी प्राय: सभी सरकारों की यह मनवाने की इच्छा भी थी कि उनके पीछे सिर्फ संख्या बल ही नहीं है। उनके पीछे तर्क/ विवेक सिद्घ होने का नैतिक-बौद्घिक बल भी है। इसी की अभिव्यक्ति, संसद के दोनों सदनों में उपाध्यक्ष/ उपसभापति के पद, विपक्षी पांतों के लिए छोड़ने व विपक्ष के नेता को विशेष दर्जा देने से लेकर, संसद के विधायी कार्य के लिए उभयपक्षीय संसदीय कमेटियों का काफी सहारा लेने व अनेक संसदीय स्थायी समितियों में अध्यक्षता विपक्ष को सौंपने समेत, संसदीय समितियों के काम-काज को तीखे दलीय विभाजनों से ऊपर रखने के सचेत प्रयास तक, अनेकानेक संसदीय परंपराओं में होती है। जाहिर है कि यही सब, तीखे राजनीतिक विभाजनों के बावजूद संसद को, एक हद तक वास्तविक बहस व विचारमंथन का मंच बनाता था, जहां पी चिदंबरम द्वारा हाल ही में अपने एक लेख, याद दिलाए गए फिकरे का सहारा लें, तो— ‘सुनी विपक्ष की जाती थी, चलती सरकार की थी।’

मोदी के राज के करीब नौ साल में किस तरह संसद की वास्तविक बहस व विचार मंथन के मंच की भूमिका की तमाम गुंजाइशें खत्म कर, उसे कार्यपालिका के बहुमत के लिए रबर के ठप्पे में ही घटाया गया है और इस तरह संसद को, सत्तापक्ष के संख्या बल के भोंडे प्रदर्शन का ही मैदान बना दिया गया है, वह शायद ही किसी से छुपा रहा है। लोकसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी को, एक खास कट ऑफ के बहाने से आधिकारिक रूप से विपक्षी दल की मान्यता ही नहीं देने से लेकर, लोकसभा में डिप्टी स्पीकर का पद खाली ही रखने व राज्य सभा में सत्तापक्ष-समर्थक ‘अन्य’ के अपने मनपसंद को उपाध्यक्ष पद पर प्रतिष्ठिïत करने और ज्यादातर संसदीय समितियों की अध्यक्षता सत्ता पक्ष द्वारा हथियाए जाने से लेकर, उनमें सत्तापक्ष का प्रचंड बहुमत सुनिश्चित किए जाने और कुल मिलाकर संसदीय समितियों को उभयपक्षीयता की जगह, उन्हें कार्यपालिका के औैर वास्तव में उससे भी बढ़कर सत्तापक्ष के भौंपुओं में तब्दील किया जाना तक, इसी के संकेतक हैं।

हैरानी की बात नहीं है कि मोदी राज में संसद में, बिना बहस के महत्वपूर्ण विधेयक पारित कराए जाने का कलंकपूर्ण रिकार्ड ही नहीं बना है, तीन कृषि कानूनों तथा चार श्रम संहिताओं के रूप में, मेहनतकश जनता के विशाल तबकों के जीवन को सीधे प्रभावित करने वाले ऐसे कानूनों पर जबरन बिना बहस के ठप्पा लगाने का भी रिकार्ड बना है, जिन्हें जन-विरोध के चलते बाद में या तो वापस ही लेना पड़ा है या अमल से दूर रखना पड़ा है। बाद वाले कानूनों के कुख्यातिपूर्ण रिकार्ड में चाहें तो सीएए कानून को भी जोड़ सकते हैं। संसद के बैठने के दिनों की संख्या भी मोदी राज में लगातार घटती गयी है। वास्तव में यह उस गुजरात मॉडल का ही देश के पैमाने पर अवतरण है, जिसे गुजरात के अपने बारह साल के शासन में मुख्यमंत्री की हैसियत से नरेंद्र मोदी ने मजबूती से स्थापित किया था।

इसी सब के क्रम में मोदी राज में, संसदीय व्यवस्था की इस सामान्य धारणा को नकारते हुए कि सदन चलाना सत्तापक्ष की जिम्मेदारी होती है, सत्ताधारी पार्टी द्वारा संसद में शोर-शराबा व हंगामा किए जाने और यहां तक कि संसद ठप्प किए जाने की भी शुरूआत तो बहुत पहले ही हो गयी थी। फिर भी, इस बार के बजट सत्र के उत्तरार्द्घ के शुरू से जो हुआ है, उस हद तक इससे पहले खुद मोदी राज में भी कभी सत्ताधारी पार्टी ने संसद को ठप्प नहीं किया था। लेकिन, यह सत्ताधारी पार्टी के हिसाब से असाधारण परिस्थितियों में असाधारण उपाय के आजमाए जाने का ही मामला है। इसका संबंध, प्रधानमंत्री मोदी के मित्र, अडानी पर लगे अपने शेयरों का बाजार भाव मैनिपुलेट करने से लेकर, संदिग्ध तरीकों से धन जुटाने से होकर, सरकार से अवैध लाभ लेने तक के आरोपों की, एक संयुक्त संसदीय समिति से जांच कराने की, विपक्ष द्वारा लगभग एक स्वर से उठायी जा रही मांग को, दबाने की हड़बड़ी से है।

बेशक, इससे पहले भी चाहे सीएए का मामला हो या किसान आंदोलन, रफाल सौदे का मामला हो या पेगासस के इस्तेमाल का, हरेक बड़े मामले में मोदी के राज में संसद में समुचित चर्चा होने ही नहीं देने के जरिए, वर्तमान सरकार को जवाबदेही से बचाने का पूरा इंतजाम किया गया है। लेकिन, इनमें से हरेक मामले में, सत्तापक्ष के बहुमत का ही सहारा लेकर, संसद में इन मुद्दों पर वास्तविक चर्चा का रास्ता रोका जा रहा था और इसके चलते, इन मुद्दों को बलपूर्वक रेखांकित करने के लिए, विपक्ष को ही समुचित बहस की मांग को लेकर संसद की कार्रवाई को, अलग-अलग मौकों पर ठप्प करना पड़ा था। लेकिन, इस बार सत्तापक्ष संसद में इस मुद्दे को किसी भी सूरत में उठने ही नहीं देने पर बजिद है। जाहिर है कि अगर संसद चलेगी ही नहीं, तो यह मुद्दा या कोई भी दूसरा मुद्दा, उठेगा ही कैसे!

ऐसा लगता है कि बजट सत्र के पूर्वार्द्घ में, राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के बाद, मौजूदा निजाम ने किसी भी कीमत पर इस मुद्दे को संसद में आने ही नहीं देने का फैसला कर लिया। याद रहे कि इससे पहले भी, इस मुद्दे के संबंध में विशेष रूप से लोकसभा में राहुल गांधी के और राज्यसभा में कांग्रेस अध्यक्ष, खडगे के भाषणों के महत्वपूर्ण अंशों को, संसदीय रिकार्ड से निकाल देने का अभूतपूर्व फैसला लागू कराया गया था। और उससे भी अभूतपूर्व तरीके से राहुल गांधी पर प्रधानमंत्री पर अप्रमाणित आरोप लगाने का अभियोग लगाते हुए, सत्ता पक्ष की ओर से न सिर्फ यह सिद्घांत गढ़कर संसद पर थोपने की कोशिश की गयी थी कि संसदीय चर्चा में, किसी अप्रमाणित आरोप या आक्षेप की इजाजत नहीं हो सकती है, बल्कि सरकार के मंत्रियों द्वारा इसके लिए, पहले ही अनुकूल स्पीकर पर दबाव बनाया गया। और सत्ताधारी पार्टी के एक अति-महत्वाकांक्षी सांसद द्वारा ऐसे आरोप लगाने के लिए राहुल गांधी के खिलाफ विशेषाधिकार हनन के लिए कार्रवाई की मांग भी पेश कर दी गयी, जो अब तक राहुल गांधी को संसद से बाहर करने की मांग तक पहुंच चुकी है। इस बीच स्पीकर द्वारा भी उक्त मांग पर कम-से-कम सुनवाई तो शुरू की ही जा चुकी है।

इस सब को देखते हुए यह हैरानी की बात नहीं है कि संसद की कार्रवाई ठप्प करने के लिए, सत्तापक्ष ने बहाने की खोज में, राहुल गांधी को ही निशाना बनाया है। विशेष हैरानी की बात न होते हुए भी, यह भी कम-से-कम याद जरूर रखा जाना चाहिए कि संसद ठप्प करने के लिए राहुल गांधी को निशाने के तौर पर चुने जाने के लिए शुरूआत, खुद सुप्रीम लीडर द्वारा की गयी थी, जब कर्नाटक में सरकारी खर्चे पर चुनाव प्रचार का अपना एक और चक्र शुरू करते हुए, प्रधानमंत्री मोदी ने बस नाम लेने की ही कसर छोड़ते हुए, राहुल गांधी द्वारा लंदन में अपने भाषण में, भारत में जनतंत्र की स्थिति पर सवाल उठाए जाने की, हमले के निशाने के तौर पर निशानदेही कर दी थी। जाहिर कि इसके बाद, ‘माफी नहीं तो संसद नहीं’ के नारे के साथ, सत्तापक्ष द्वारा संसद ठप्प किए जाने का विद्रूप जरा भी दूर नहीं रह जाता था।

बहरहाल, राहुल गांधी और उनका लंदन का कैंब्रिज यूनिवर्सिटी का भाषण, भारत में जनतंत्र का गला घोंटने की मोदी निजाम की इस मुहिम का बहाना जरूर बना है, लेकिन इस मुहिम का निशाना और बहुत बड़ा है, बहुत आगे तक जाता है। हमने पीछे देखा कि किस तरह मोदी राज में, संसदीय व्यवस्था में चर्चा और संवाद का गला घोंटकर, उसे वर्तमान राज के निर्णयों पर ठप्पा लगाने वाली मोहर बनाकर रख दिया गया है। स्वीडन की गोथेनबर्ग यूनिवर्सिटी के वीडैम इंस्टीट्यूट का वर्तमान भारतीय व्यवस्था का ‘चुनावी निरंकुश तंत्र’ के रूप में चरित्रांकन, इस सचाई को बखूबी पकड़ता है। पर देश के मौजूदा हालात पर सवाल उठाने के लिए राहुल गांधी के खिलाफ ऐन सुप्रीमो के इशारे पर, संसद को भी लपेटते हुए जो चौतरफा हमला बोला गया है, यह चुनावी निरंकुश तंत्र के और हमलावार हो जाने का एक महत्वपूर्ण संकेतक है।

राष्ट्रवाद-राष्ट्र विरोध को पुनर्परिभाषित करते-करते संघ-भाजपा निजाम ने मौजूदा हालात और मौजूदा निजाम की जय-जय करने को राष्ट्रवाद और उन पर सवाल उठाने को, राष्ट्र विरोधी बना दिया है। यहां से आगे विदेश में भी और देश में भी, मौजूदा निजाम की आलोचना/ विरोध की हरेक आवाज को कुचलने के लिए, बुलडोजर भेजने का रास्ता खुल जाएगा। और अंत में चुनाव भी छूट जाएगा और सिर्फ निरंकुश तंत्र रह जाएगा। जनतंत्र और स्वतंत्रता से प्यार करने वाले सभी लोगों को, सिर्फ मौजूदा शासन ही नहीं, हर वर्तमान चीज की देश में, विदेश में, कहीं भी आलोचना करने, उस आलोचना को दूसरों से साझा करने और बदलाव के लिए प्रयत्न करने की, पूर्ण स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए आगे आना चाहिए; बस तरीके जनतांत्रिक हों और बाहर वालों से भी वैचारिक-मूल्यगत एकजुटता की अपेक्षा हो, न कि हथियारों या अन्य संसाधनों की। इस स्वतंत्रता पर आज कोई भी समझौता, शुद्ध निरंकुशता का रास्ता बनाएगा।

•राजेंद्र शर्मा
[ लेखक ‘ लोकलहर ‘ के संपादक हैं ]

🟥🟥🟥

विज्ञापन (Advertisement)

ब्रेकिंग न्यूज़

breaking Chhattisgarh

पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पहुंचे रायपुर सेंट्रल जेल, कवासी लखमा और देवेंद्र यादव से की मुलाकात…

breaking National

कर्तव्य पथ पर दिखेगी छत्तीगढ़ की जनजातीय परंपराओं और रामनामी समुदाय की झलक

breaking National

40 लाख किसान परिवारों को तोहफा, PM मोदी ने कहा- जूट की MSP बढ़ने से होगा लाभ

breaking Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ में नक्सलियों को एक और झटका, सुकमा की प्राचीन गुफा में छिपा रखा था हथियारों का जखीरा, जवानों ने किया जब्त

breaking Chhattisgarh

पॉक्सो एक्ट: यौन उत्पीड़न को साबित करने शारीरिक चोट दिखाना जरूरी नहीं

breaking National

भव्य नहीं, साधारण और पारंपरिक होगी गौतम अदाणी के बेटे जीत की शादी, Adani Group के चेयरमैन ने ये कहा

breaking Chhattisgarh

रायपुर पहुंचे 14 नक्सलियों के शव… पोस्टमार्टम से पहले पोर्टेबल मशीन से होगा एक्स-रे, कहीं अंदर विस्फोटक तो नहीं

breaking Chhattisgarh

पंचायत-निकाय चुनावों के लिए BJP-कांग्रेस ने प्रत्याशियों के तय किए नाम! इस तारीख तक पार्टियां कर देंगी ऐलान

breaking Chhattisgarh

नक्सली मुठभेड़ में जवानों को बड़ी कामयाबी, मुख्यमंत्री साय ने की सराहना, कहा- छत्तीसगढ़ मार्च 2026 तक नक्सलवाद से मुक्त होकर रहेगा

breaking National

लव जिहाद को लेकर पंडित प्रदीप मिश्रा का बड़ा बयानः बोले- हिंदू बेटियों को जागरूक होने की जरूरत, फ्रिजों में मिलते हैं लड़कियों के टुकड़े

breaking Chhattisgarh

चाइनीज मांझे से कटा बच्चे का गला, इलाज के दौरान मौत

breaking Chhattisgarh

महाकुंभ के लिए छत्तीसगढ़ से 8 स्पेशल ट्रेन : भक्तों की यात्रा आसान करने रेलवे ने लिया बड़ा फैसला, जानें स्पेशल ट्रेनों का शेड्यूल…

breaking international

TRUMP MEME Coin ने लॉन्च होते ही लगाई 300-500 फीसदी की छलांग, कुछ ही घंटों में निवेशकों को बनाया मालामाल, ट्रेडिंग वॉल्यूम लगभग $1 बिलियन तक पहुंचा

breaking Chhattisgarh

फरवरी में 27 लाख किसानों को धान का बोनस, रेडी टू ईट फिर महिलाओं के हाथ

breaking Chhattisgarh

3000 शिक्षकों की पुलिस से झड़प, प्रदर्शन के दौरान किया तितर-बितर, सस्पेंड होने को लेकर आक्रोश

breaking Chhattisgarh

विष्णु का सुशासन – पुलिस के साथ अन्य सरकारी भर्तियों में आयु सीमा में 5 वर्ष की छूट से बढ़े युवाओं के अवसर

breaking Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ में रोजगार के लिए अनुबंध, उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने कहा- हजारों छात्रों को दिया जाएगा प्रशिक्षण, रोजगार के अवसर होंगे उत्पन्न

breaking Chhattisgarh

विष्णु सरकार का कड़ा एक्शन… एक ही दिन में 9 अफसरों को किया सस्पेंड, ठेकेदार पर भी होगा एक्शन

breaking Chhattisgarh

कैटरिंग दुकान में 6 सिलेंडरों में धमाका, इलाके में मची भगदड़, 10 लाख का सामान जलकर खाक

breaking Chhattisgarh

मोबाइल पर वीडियो रिकॉर्डिंग ऑन कर छिपा देता था लेडिज टायलेट में… पुलिस ने सफाई वाले को पकड़ा

कविता

poetry

इस माह के ग़ज़लकार : डॉ. नौशाद अहमद सिद्दीकी ‘सब्र’

poetry

कविता आसपास : तारकनाथ चौधुरी

poetry

कविता आसपास : दुलाल समाद्दार

poetry

ग़ज़ल : विनय सागर जायसवाल [बरेली उत्तरप्रदेश]

poetry

कविता आसपास : महेश राठौर ‘मलय’

poetry

कविता आसपास : प्रदीप ताम्रकार

poetry

इस माह के ग़ज़लकार : रियाज खान गौहर

poetry

कविता आसपास : रंजना द्विवेदी

poetry

रचना आसपास : पूनम पाठक ‘बदायूं’

poetry

ग़ज़ल आसपास : सुशील यादव

poetry

गाँधी जयंती पर विशेष : जन कवि कोदूराम ‘दलित’ के काव्य मा गाँधी बबा : आलेख, अरुण कुमार निगम

poetry

रचना आसपास : ओमवीर करन

poetry

कवि और कविता : डॉ. सतीश ‘बब्बा’

poetry

ग़ज़ल आसपास : नूरुस्सबाह खान ‘सबा’

poetry

स्मृति शेष : स्व. ओमप्रकाश शर्मा : काव्यात्मक दो विशेष कविता – गोविंद पाल और पल्लव चटर्जी

poetry

हरेली विशेष कविता : डॉ. दीक्षा चौबे

poetry

कविता आसपास : तारकनाथ चौधुरी

poetry

कविता आसपास : अनीता करडेकर

poetry

‘छत्तीसगढ़ आसपास’ के संपादक व कवि प्रदीप भट्टाचार्य के हिंदी प्रगतिशील कविता ‘दम्भ’ का बांग्ला रूपांतर देश की लोकप्रिय बांग्ला पत्रिका ‘मध्यबलय’ के अंक-56 में प्रकाशित : हिंदी से बांग्ला अनुवाद कवि गोविंद पाल ने किया : ‘मध्यबलय’ के संपादक हैं बांग्ला-हिंदी के साहित्यकार दुलाल समाद्दार

poetry

कविता आसपास : पल्लव चटर्जी

कहानी

story

लघु कथा : डॉ. सोनाली चक्रवर्ती

story

सत्य घटना पर आधारित कहानी : ‘सब्जी वाली मंजू’ : ब्रजेश मल्लिक

story

लघुकथा : डॉ. सोनाली चक्रवर्ती

story

कहिनी : मया के बंधना – डॉ. दीक्षा चौबे

story

🤣 होली विशेष :प्रो.अश्विनी केशरवानी

story

चर्चित उपन्यासत्रयी उर्मिला शुक्ल ने रचा इतिहास…

story

रचना आसपास : उर्मिला शुक्ल

story

रचना आसपास : दीप्ति श्रीवास्तव

story

कहानी : संतोष झांझी

story

कहानी : ‘ पानी के लिए ‘ – उर्मिला शुक्ल

story

व्यंग्य : ‘ घूमता ब्रम्हांड ‘ – श्रीमती दीप्ति श्रीवास्तव [भिलाई छत्तीसगढ़]

story

दुर्गाप्रसाद पारकर की कविता संग्रह ‘ सिधवा झन समझव ‘ : समीक्षा – डॉ. सत्यभामा आडिल

story

लघुकथा : रौनक जमाल [दुर्ग छत्तीसगढ़]

story

लघुकथा : डॉ. दीक्षा चौबे [दुर्ग छत्तीसगढ़]

story

🌸 14 नवम्बर बाल दिवस पर विशेष : प्रभा के बालदिवस : प्रिया देवांगन ‘ प्रियू ‘

story

💞 कहानी : अंशुमन रॉय

story

■लघुकथा : ए सी श्रीवास्तव.

story

■लघुकथा : तारक नाथ चौधुरी.

story

■बाल कहानी : टीकेश्वर सिन्हा ‘गब्दीवाला’.

story

■होली आगमन पर दो लघु कथाएं : महेश राजा.

लेख

Article

तीन लघुकथा : रश्मि अमितेष पुरोहित

Article

व्यंग्य : देश की बदनामी चालू आहे ❗ – राजेंद्र शर्मा

Article

लघुकथा : डॉ. प्रेमकुमार पाण्डेय [केंद्रीय विद्यालय वेंकटगिरि, आंध्रप्रदेश]

Article

जोशीमठ की त्रासदी : राजेंद्र शर्मा

Article

18 दिसंबर को जयंती के अवसर पर गुरू घासीदास और सतनाम परम्परा

Article

जयंती : सतनाम पंथ के संस्थापक संत शिरोमणि बाबा गुरु घासीदास जी

Article

व्यंग्य : नो हार, ओन्ली जीत ❗ – राजेंद्र शर्मा

Article

🟥 अब तेरा क्या होगा रे बुलडोजर ❗ – व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा.

Article

🟥 प्ररंपरा या कुटेव ❓ – व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा

Article

▪️ न्यायपालिका के अपशकुनी के साथी : वैसे ही चलना दूभर था अंधियारे में…इनने और घुमाव ला दिया गलियारे में – आलेख बादल सरोज.

Article

▪️ मशहूर शायर गीतकार साहिर लुधियानवी : ‘ जंग तो ख़ुद ही एक मसअला है, जंग क्या मसअलों का हल देगी ‘ : वो सुबह कभी तो आएगी – गणेश कछवाहा.

Article

▪️ व्यंग्य : दीवाली के कूंचे से यूँ लक्ष्मी जी निकलीं ❗ – राजेंद्र शर्मा

Article

25 सितंबर पितृ मोक्ष अमावस्या के उपलक्ष्य में… पितृ श्राद्ध – श्राद्ध का प्रतीक

Article

🟢 आजादी के अमृत महोत्सव पर विशेष : डॉ. अशोक आकाश.

Article

🟣 अमृत महोत्सव पर विशेष : डॉ. बलदाऊ राम साहू [दुर्ग]

Article

🟣 समसामयिक चिंतन : डॉ. अरविंद प्रेमचंद जैन [भोपाल].

Article

⏩ 12 अगस्त- भोजली पर्व पर विशेष

Article

■पर्यावरण दिवस पर चिंतन : संजय मिश्रा [ शिवनाथ बचाओ आंदोलन के संयोजक एवं जनसुनवाई फाउंडेशन के छत्तीसगढ़ प्रमुख ]

Article

■पर्यावरण दिवस पर विशेष लघुकथा : महेश राजा.

Article

■व्यंग्य : राजेन्द्र शर्मा.

राजनीति न्यूज़

breaking Politics

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उदयपुर हत्याकांड को लेकर दिया बड़ा बयान

Politics

■छत्तीसगढ़ :

Politics

भारतीय जनता पार्टी,भिलाई-दुर्ग के वरिष्ठ कार्यकर्ता संजय जे.दानी,लल्लन मिश्रा, सुरेखा खटी,अमरजीत सिंह ‘चहल’,विजय शुक्ला, कुमुद द्विवेदी महेंद्र यादव,सूरज शर्मा,प्रभा साहू,संजय खर्चे,किशोर बहाड़े, प्रदीप बोबडे,पुरषोत्तम चौकसे,राहुल भोसले,रितेश सिंह,रश्मि अगतकर, सोनाली,भारती उइके,प्रीति अग्रवाल,सीमा कन्नौजे,तृप्ति कन्नौजे,महेश सिंह, राकेश शुक्ला, अशोक स्वाईन ओर नागेश्वर राव ‘बाबू’ ने सयुंक्त बयान में भिलाई के विधायक देवेन्द्र यादव से जवाब-तलब किया.

breaking Politics

भिलाई कांड, न्यायाधीश अवकाश पर, जाने कब होगी सुनवाई

Politics

धमतरी आसपास

Politics

स्मृति शेष- बाबू जी, मोतीलाल वोरा

Politics

छत्तीसगढ़ कांग्रेस में हलचल

breaking Politics

राज्यसभा सांसद सुश्री सरोज पाण्डेय ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से कहा- मर्यादित भाषा में रखें अपनी बात

Politics

मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने डाॅ. नरेन्द्र देव वर्मा पर केन्द्रित ‘ग्रामोदय’ पत्रिका और ‘बहुमत’ पत्रिका के 101वें अंक का किया विमोचन

Politics

मरवाही उपचुनाव

Politics

प्रमोद सिंह राजपूत कुम्हारी ब्लॉक के अध्यक्ष बने

Politics

ओवैसी की पार्टी ने बदला सीमांचल का समीकरण! 11 सीटों पर NDA आगे

breaking Politics

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, ग्वालियर में प्रेस वार्ता

breaking Politics

अमित और ऋचा जोगी का नामांकन खारिज होने पर बोले मंतूराम पवार- ‘जैसी करनी वैसी भरनी’

breaking Politics

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री, भूपेश बघेल बिहार चुनाव के स्टार प्रचारक बिहार में कांग्रेस 70 सीटों में चुनाव लड़ रही है

breaking National Politics

सियासत- हाथरस सामूहिक दुष्कर्म

breaking Politics

हाथरस गैंगरेप के घटना पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने क्या कहा, पढ़िए पूरी खबर

breaking Politics

पत्रकारों के साथ मारपीट की घटना के बाद, पीसीसी चीफ ने जांच समिति का किया गठन