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भिलाई : श्रीरामकथा का तीसरा दिन : हमारे ऋषि परंपरा में मनुष्य के जीवन के हर क्षण की व्यवस्था बताई गई है – पूज्य श्री प्रेमभूषण जी महाराज
भिलाई [जुनवानी कथा स्थल से छत्तीसगढ़ आसपास] : संसार में जितने भी जड़ चेतन जीव हैं वह सभी मनुष्य के अधीन हैं। और मनुष्य किसी के अधीन नहीं है। फिर भी मनुष्य पराधीन बना रहता है और वह भी स्वयं के लिए नहीं बल्कि पर के लिए पराधीन बना रहता है। ऐसा केवल उसकी अपनी विवेक हीनता के कारण होता है। विवेक सिंह मनुष्य को यह पता है कि उसे यह जीवन सुंदर कर्म करते हुए सत कर्मों के माध्यम से अपने सुंदर प्रारब्ध का निर्माण करने के लिए प्राप्त हुआ है।
उक्त बातें जुनवानी, भिलाई(छ.ग.) स्थित श्री शंकराचार्य मेडिकल कालेज मैदान में गत शनिवार से प्रारम्भ हुई नौ दिवसीय श्रीराम कथा के तीसरे दिन पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने व्यासपीठ से कथा वाचन करते हुए कहीं।
श्री रामकथा के माध्यम से भारतीय और पूरी दुनिया के सनातन समाज में अलख जगाने के लिए सुप्रसिद्ध कथावाचक प्रेमभूषण जी महाराज ने कहा कि हमारा जीवन कैसे सफल हो सकता है? हमारे शास्त्रों में और हमारे अन्य ग्रंथों में इसकी विस्तृत व्याख्या है। सुभाषित में कहा गया है कि मनुष्य जब तक सोता रहता है तो वह कलयुग में जीता है। जाग गया तो द्वापर में पहुंच जाता है और उठ कर खड़ा हो जाए तो वह त्रेता में पहुंच जाता है। वही मनुष्य जब सत्कर्म के पथ पर आगे बढ़ जाता है तो सतयुग में प्रवेश कर जाता है।
पूज्यश्री ने बताया कि हमारे जीवन को व्यवस्थित करने के लिए ऋषि परंपरा में ब्रह्मचर्य गृहस्थ सन्यास और वानप्रस्थाश्रम की चर्चा है। इसके अतिरिक्त व्यास स्मृति में मनुष्य के लिए 16 संस्कार बताए गए हैं। आज के मनुष्य के भटकाव के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वह इन सब से दूर होता चला गया है। 16 संस्कारों में से अधिकांश तो हम भूल चुके हैं और कुछ जानते भी हैं तो उसका पालन नहीं करते हैं। श्री राम कथा ऐसे ही भटके मनुष्यों को पुनः संस्कारवान बनाने और सन्मार्ग पर लाने के प्रयास में मदद करती है।
पूज्य महाराज श्री ने कहा कि बच्चों की हो रजा उनके पद में होती है युवा अवस्था के ऊर्जा उनकी इंद्रियों में होती है और वृद्धावस्था की ऊर्जा उनकी जिह्वा में होती है। बच्चों को ऊर्जावान रखना है तो उन्हें उछल कूद से नहीं रोकना चाहिए। लेकिन युवावस्था के उर्जा को अगर विवेकपूर्ण तरीके से सत्कर्म में न लगाया गया तो उसका गलत उपयोग हो जाता है। ठीक इसी प्रकार वृद्धावस्था के उर्जा को कहीं बंद करके ना रखा जाए बल्कि उसे निरंतर गतिमान रखने से ही उसकी सार्थकता सिद्ध होती है।
आज का मनुष्य बहुत ही व्यस्त हो गया है और खास करके जब से मोबाइल का आगमन हुआ है मनुष्य शरीर से जहां होता है । वह अपने मन से वहां नहीं रहता है। और अक्सर इसी कारण से ही दुर्घटनाएं होती हैं।
पूज्यश्री ने कहा कि किसी भी गलत कार्य का विरोध होना जरूरी है,चाहे वह घर हो या बाहर, गलत व्यक्ति को गलत होने का एहसास होना जरूरी है। अति की सज्जनता और सज्जन व्यक्तियों की निष्क्रियता ही दुर्जनों को आश्रय देती है।
महाराज जी ने कहा कि प्रत्येक घर में तुलसी का पौधा अवश्य होना चाहिए, यह नकारात्मक शक्तियों का हरण कर सकारात्मक शक्तियों का प्रवाह करती हैं। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म में प्रत्येक विधि विधान का कारण है, सनातन धर्म में कुछ भी अकारण नहीं होता।
श्री राम जन्मोत्सव से जुड़े प्रसंगों की चर्चा करते हुए महाराज श्री ने कहा कि महाराजा श्री रामचंद्र जी की कई पीढ़ियां गोवंश की सेवा के लिए चर्चित रहीं और खासकर महाराजा दिलीप तो इस मामले में एक उदाहरण के रूप में इतिहास में याद किए गए। उन्होंने कहा कि हमारा इतिहास इस बात का प्रमाण है कि जो भी व्यक्ति गौ संरक्षण के लिए कार्य करता है, उसका विरोध करना करने वाले अपने आप समाप्त हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि मानस की यह पंक्तियां इस बात की प्रमाण हैं – विप्र धेनु सुर संत हित, लीन्ह मनुज अवतार। अर्थात भगवान का धरा पर आगमन भी इन्ही कारणों से होता है।
भगवान श्री राम के प्राकट्य से जुड़े प्रसंगों का श्रवण करने के लिय बड़ी संख्या में विशिष्ट जन उपस्थित रहे।
कथा के मुख्य यजमान आई पी मिश्र ने सपरिवार व्यासपीठ का पूजन किया। हजारों की संख्या में उपस्थित श्रोतागण को महाराज जी के द्वारा गाए गए भजनों पर झूमते हुए देखा गया।
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