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- रचना आसपास : दीप्ति श्रीवास्तव [चौहान टाउन, जुनवानी भिलाई, जिला – दुर्ग, छत्तीसगढ़]
रचना आसपास : दीप्ति श्रीवास्तव [चौहान टाउन, जुनवानी भिलाई, जिला – दुर्ग, छत्तीसगढ़]
🌸 कैसे तोहे समझाऊँ
प्यारे बादल इस बार छुप्पन छुपाई का खेल न खेलना । बहुत खराब लगता है जब तुम तन-मन से खेल जाते हो । बारिश में भीगने से छाता ओढ़ सकते हैं परन्तु जब मन भीगे तब अपनत्व का छाता ढ़ूंढ़ते फिरते बड़ी मुश्किल होती । उमंस भरे छाते की जरूरत नही । परिपक्वता से भरा कांधा रूपी छाता किस्मत वालों को ही नसीब होता । आसमान अनंत अथाह होता है उसका कोई कोना बादलों से भरा हुआ वह भी नीले रंग के बादलों से यानि परिपक्वता से भरपूर बादल जो बरस कर धरती की तृष्णा के संग संग उसमें रहने वालों के मन मयूर को भी संतृप्त करते । जिसके प्यार में प्रकृति नाचने लगती खगवृंद चिहूंक उठते घटा छाने लगती नीले कजरारे बादल आसमान में रंग भरने लगते यानि जलयुक्त बादल बरखा रानी को डांटते और वह आंसुओं की झड़ी लगा टप-टप बरसने लगती है। जब टंकी भर जाय तो पानी बाहर निकल टपकने लगता है । ऐसे ही मन को कोई बात चुभ जाये तो आंखें भरकर बरसने लगती है।
आज आसमान बादलों से भरपूर उन्मुक्त आचरण कर रहा है । यह तो अच्छा है अपने सखा पवन संग बहक नहीं रहा वरना पवन बहकाती और अपने साथ ले उड़ती बादलों को । मन जब बहकता रागों की ताने छेड़ देता और गाने लगता मन क्यूं बहका रे बहका आधी रात को बेला महका रे महका आधी रात को । इस दफा मानसून ने इरादों को बहुत योगाभ्यास कराया है बादलों तुम ‘देर आये पर दुरूस्त आये’ टिके रहना निराश न करना । किसानों की बांछे खिल गई दो चार दिन लगातार बादल बरस धरती का ग़ुस्सा ठंडा कर रहे , उमस जो धरा में छुपकर बैठ गई थी भगाने में कामयाब हो गए जनाब उस छुपकर बैठी उमस को भगाने पंखा ,एसी कूलर लगा अंटी से रोकड़ा खूब खर्च किये। कल तक आसमान धूप को छाती से लगाये बैठा था तब लोग बहुत गर्मी है करके पसीना बहाते फिर रहे थे । तपन की अधिकता घर में घुसे रहने मजबूर करती । कब से जल भरे बादलों का इंतजार कर रहे थे आये बरसे और हमें चैन मिले । यहां हम सोने यानि गोल्ड की चैन की बात नहीं कर रहे हम ।
दो-चार दिन लोगों ने बहुत स्वागत किया जैसे दामाद घर आते हैं तो बहुत मेहमान नवाजी करी जाती है । फिर जब देखते हैं दामाद टिक कर बैठ गया तो आवभगत में कटौती होने लगती है। जब बरसा होने लगी तो बहुत पकौड़े खाकर और खिलाकर मेहमान नवाजी की फिर देखे की यह सुबह शाम लगातार बरस रहा है तो कितना भजिया खाकर, खिलाकर सत्कार करें कोई ?
टेलीविजन दिनभर न्यूज दिखाने लगा बादलों ने कहर ढ़हाया अपना गुस्सा फलानी बिल्डिंग पर दिखाया जिससे बेचारी गिर कर आत्म हत्या कर ली । उसके गिरने से कुछ मनुज गंभीर तो कुछ मृत है । प्रशासन मुआवजे के इंतजाम में है। कैमरामैन दर्द से भरी तस्वीरें खींच रहा है रिपोर्टर दास्तां बयां कर अपने चैनल की टीआरपी बढ़ा रहा है । किसी को बादल भैया फायदा करवा रहे हैं तो किसी को नुकसान।
कहीं-कहीं तो अघाते तक पानी पीकर बादल आ गये और फट पड़ा उनका पेट एक साथ एक ही जगह गजबजा कर गिरा दिया पानी । वहां की धरा को श्रीहीन कर दम लिया इतना पानी की सब कुछ बहा कर ले गया ।
क्या बादल आधुनिक युग की चर्बी ओढ़ लिये ? हर जगह अलग-अलग तरह का व्यवहार । जब बादल के दिन आये तो यही जलवा दिखा रहे हो । जैसे सोने के भाव आजकल चढ़ उतर रहे वैसे ही तुम भी झूल रहे हो। बादल जी सोने से महत्वपूर्ण तो आप हो आप बरसा न करें तो धरती की प्यास कैसे बुझेगी। गर्मी में पानी के लिए तरस जायेंगे । पेड़-पौधे कैसे साल भर के लिए पानी जमा कर पायेंगे यह तो अच्छा है उनकी जमात में कोई जमाखोरी नहीं होती कमीशन का खेल तो मनुज ही खेल सकता है । मृतक के मुआवजे से भी कमीशन कमा लेते हैं और घरवालों के आंसूओं को घड़ियाली आंसू करार दे देते हैं। इनसे बेहतर तो ये बादल है जो बिना किसी तीन पांच के बरस कर निकल जाते है फिर पलट कर देखते तक नहीं । अभी लुका-छिपी मत खेलना बादल अन्नदाता को तुम्हारी सख्त जरूरत है । हमारे खेत तुम्हारे आने पर हरियाली की चादर ओढ़े
तुम्हारा नाम लेते थकेंगे नहीं।
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🌸 स्वर्ग – नर्क
मुझे छोड़ दो मुझे छोड़ दो ….
हे ऊपर वाले तेरा भी जुल्म बड़ा अनोखा है मैं तो तुझसे नरक जाने की परमिशन मांग रहा हूं पर तेरे ये कारिंदे मुझे पकड़ कर नर्क नहीं स्वर्ग भेजना चाहते हैं ।
हमको बड़े साहब का आदेश है फलां फलां को स्वर्ग ही लेकर जाना वह नरक जाने की जिद्द करेगा पर तुम लोग जानते हो ना उसकी प्रवृत्ति अड़ियल घोड़ा सी है अक्खड़ भी बहुत है । तुम उसकी आंखों पर पट्टी नहीं बांध सकते । अगर बांध दिये तो मानवाधिकार वाले हमारे सिर पर चढ़कर नाचेंगे । हमारे सिर को स्टेज बनने ना देना खबर का प्रचार-प्रसार पल दूनी सेकेंड चौगुनी गति से होगा सोशल मीडिया का जमाना है । यह तुम लोगों पर निर्भर करता है कि उसको कैसे किस तरह नरक जाने से रोके । यहां साम-दाम-दंड-भेद नहीं चलेगा केवल और केवल दिमाग की धार चलेगी।
हां हिंसा जरा भी नहीं चलेगी। गेम चेंजर है उसका दिमाग चाचा चौधरी तो क्या कम्प्यूटर से भी तेज चलता है । उसके दिमाग के गणित में लिखित फार्मूले नहीं अपितु अलिखित कैलकुलेशन चलते रहते है । पारंगत मंझे हुए राजनीतिज्ञ की तरह यही विशेषता है। मोहरा समय पर निकाल अपना काम बनाना और दूसरो का ध्वस्त करना सामने वाले की चालों की गणना करने की अव्यर्थ कोशिश करना उसका काम नहीं ।
यह तो खेला है राजनीति का वह नरक में जा अशांति फैलाने का काम करेगा । उनके वहां रहने से बहुत खतरा है । अभी नरक में रहने वाले लोग सोचते हैं कि हमने गलत काम किये है इसलिए नरक में पड़े यातना झेल रहे हैं । उनको वहां भी राजनीति चमकाने मुद्दा मिल जायगा । उपद्रवी दिमाग! हड़ताल धरना-प्रदर्शन करवाने कोई न कोई मुद्दा हासिल हो जायगा फिर उसे तुड़वाने एड़ी चोटी का जोर लगा नये-नये प्रलोभन के विषय में सोचना पड़ता है । मस्तिष्क को मुख्य मुद्दे से भटका सहायक मुद्दों पर चलना पड़ता है । भले दिमाग खर्च करने में पैसे न लगे पर कीमती समय तो व्यर्थ जाया होता है। अरे जब दो एक से बढ़कर एक दिग्गज चालबाजी साजिश कर एक दूसरे को नीचा दिखाने धोखा देने की फिराक में रहते हैं तब आम आदमी को दूर खड़े हो तमाशे का भरपूर आनंद उठाना चाहिए ।
कौन उनके तिकड़म में फंसे अपना कचूमर निकलवाये इसलिए नरक का रास्ता ढंक दो हमारे लिए यही चैन की बात होगी ।
आजकल राजनीति करने लोगों को नरक पसंद आ रहा है । भोली-भाली नरक भोगती जनता अभी उसी में संतुष्ट हैं । कमियों का अहसास कराने कोई आ गया तो दिमाग में रात-दिन वहीं गाना गा गाकर दिमाग को उकसाने का काम करेगा ।
अब तो देखना यह कि स्वर्ग वह जाने राजी होते है या नहीं या जबरजस्ती कोई एंजेसी का डर दिखाकर भेजा जाएगा । यह तो समय चक्र है कैसे करवट बदलेगा कोई नहीं जानता । धंधा मंदा नहीं होना चाहिए बस ।
अरे जोर से पकड़ो पकड़ो नहीं तो गोदी में उठाकर ले चलो किसी भी हालत में स्वर्ग पहुंचा इतिहास लिखो।
•संपर्क –
•94062 41497
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