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लघुकथा : विक्रम ‘ अपना ‘ [नंदिनी – अहिवारा, जिला – दुर्ग, छत्तीसगढ़ ]
▪️ मुखौटे पर मुखौटा
चुनावी साल था।
नेता जी जनसम्पर्क अभियान पर निकले थे। कुछ दूर चलने के बाद वे एक वातानुकूलित वाहन पर सवार हो गए। अचानक उनका चेहरा बिगड़ने लगा। और उन्होंने अपने चेहरे पर चढ़ा मुखौटा उतार फेंका। अब वे एक व्यापारी के भेष में थे। लेकिन कुछ दूर आगे जाकर विमान में सवार होने से पहले उन्होंने फिर से अपना दूसरा मुखौटा उतार फेंका। अब उनके चेहरे की जगह उद्योगपति का चेहरा साफ-साफ नजर आने लगा था।
नेता जी बेफिक्र होकर हवाई यात्रा करने लगे।
कुछ देर तक हवा में गोता लगाने के बाद विमान अब जमीन पर था।
इधर नेता जी के फेंके मुखौटों को एक आदमी जमा कर उन्हें पहचानने की कोशिश कर रहा था।
उसे ऐसा करते देख नेता जी आश्चर्यचकित हो उससे पूछने लगे- भाई तुम कौन हो?
जवाब में सामने खड़े आदमी ने अपने चेहरे पर चढ़े मुखौटे पर और मुखौटा चढ़ाते हुए कहा- मतदाता!!
▪️ मुझे मत दो
नेता जी ऊँचे मंच पर चढ़े हुए थे। किराए पर लाई गई भीड़ नेता जी की जयकार लगा रही थी।
भीड़ के कोलाहल की समाप्ति पर हुंकार भरते हुए नेता जी ने कहा-
फलां पार्टी में यह बुराई है। ढिकानी पार्टी ने यह काम नहीं किया। हमारी पार्टी के कारण पुरवाई चलती है। घटाएँ बरसतीं है। पेड़ फल देते हैं। धरती ऋतुएं बनाती हैं। इसीलिए मुझे मत दो।
नीचे खड़ी जनता की आँखे, नेता जी के इस अपूर्व त्याग वाले वाक्यांश को सुनकर छलछला उठीं।
आगे चुनाव सम्पन्न हुआ। नेता जी को केवल एक ही वोट मिला वह भी स्वयं का।
भौंचक्क नेता जी ने अपने खास सिपहसालार को बुलाकर आँखे तरेरते हुए उससे पूछा- क्यों जी! तुमने किसको वोट दिया था??
खादिम ने झुककर अर्ज करते कहा- हुजूरे आला!! आपने बार बार कहा था। सो सारी जनता के साथ मैंने भी आपको मत नहीं दिया।”
हैं? वो भला क्यों???
माई बाप!! आपने ही तो कहा था- मुझे मत दो!
विगत दिनों विक्रम ‘ अपना ‘ ललित कला अकादमी दिल्ली द्वारा राष्ट्रीय पुरोधा सम्मान 2023 से सम्मानित किया गया.
•लेखक संपर्क –
•98278 96801
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