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समीक्षा : विश्वविद्यालय के परिप्रेक्ष में अनुवाद लेखक दुर्गा प्रसाद पारकर
हमारे समय के महत्वपूर्ण कथाकार, साहित्यकार व चिन्हारी के स्तंभ लेखक श्री दुर्गा प्रसाद पारकर अपनी विशिष्ट भंगिमा और लोक शैली के कारण साहित्यिक बिरादरी में जाने जाते हैं। उनके साहित्य में सामाजिक और सांस्कृतिक विशेषताओं की बहुतायत संदर्भ हैं। छत्तीसगढ़ी उपन्यास ’’बहू हाथ के पानी’’, ’’केंवट कुंदरा’’ में छत्तीसगढ़ी संस्कृति व संगीत की स्वर सुनाई देती है। जो बहुआयामी परिप्रेक्ष को प्रस्तुत करता है। हेमचंद युनिवर्सिटी दुर्ग में एम.ए. अंतिम के पाठ्यक्रम में उपन्यास ’’बहू हाथ के पानी’’ को शामिल किया गया है। यह लेखक और युनिवर्सिटी के लिए बड़ी उपलब्धि है।
निर्मला (प्रेमचंद)-निर्मला और प्रतिज्ञा कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी का प्रसिद्ध उपन्यास है जिसका छत्तीसगढ़ी अनुवाद श्री दुर्गा प्रसाद पारकर ने किया है। निर्मला महिला पर केंद्रित उपन्यास है और कथा साहित्य का मुख्य पात्र भी है। निर्मला 15 साल की सुंदर और सुशील लड़की है। निर्मला का विवाह एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति से कर दिया जाता है। जिसके पूर्व पत्नी से तीन बेटे हैं। निर्मला का चरित्र निर्मल है परंतु मानव समाज में उसे अनादर और अवहेलना का शिकार होना पड़ता है। इस प्रकार निर्मला विपरीत परिस्थितियों से जुझती हुई मृत्यु को प्राप्त करती है। श्री दुर्गा प्रसाद पारकर ने निर्मला उपन्यास का छत्तीसगढ़ी अनुवाद करके शिल्पगत दृष्टि से कलात्मक और रोचक बना दिया है। पाठ्यक्रम और उपन्यास की दृष्टिकोण से इसे मनोवैज्ञानिक उपन्यास भी कह सकते हैं।
प्रतिज्ञा (प्रेमचंद)-इस उपन्यास के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि कैसे भारतीय समाज में एक नारी को किन- किन विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। समाज में नारी की विवश्ताओं का कैसे फायदा उठाते हैं? उपन्यास का नायक जिसकी सोच यह होती है वह एक विधवा से शादी करे ताकि उसका नवयोवन जीवन नष्ट न हो। प्रतिज्ञा उपन्यास आज के समाज में बिल्कुल सटीक बैठती है। उपन्यासकार श्री दुर्गा प्रसाद पारकर इस महान कृति को अपनी जादुई कलम से छत्तीसगढ़ी अनुवाद करके छत्तीसगढ़ी समाज में एक नारी की विवशता और विषम परिस्थितियों को प्रस्तुत किया है।
सुदामा के चांउर (हरिशंकर परसाई)-साहित्य में व्यंग्य विधा रचनात्मकता की सशक्त विधा है। श्री दुर्गा प्रसाद पारकर ने देश के सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई की अप्रतिम हस्ताक्षर को छत्तीसगढ़ी में अनुवाद करके छत्तीसगढ़ी साहित्य को समृद्ध किया। सुदामा के चांउर कुल 62 पृष्ठ की है। छत्तीसगढ़ के प्रमुख व्यंग्यकार प्रभाकर चौबे, त्रिभुवन पांडे, विनोद शंकर शुक्ल, रवि श्रीवास्तव की लिखित व्यंग्य को छत्तीसगढ़ी में अनुवाद करने वाले श्री दुर्गा पारकर छत्तीसगढ़ के अकेले लेखक हैं। अनुवाद के माध्यम से रचनाशीलता समाज और सत्ता में पुरजोर बदलाव लाने का प्रयास किया है। हालांकि परसाई जी आज हमारे बीच नहीं है लेकिन उनके द्वारा लिखी गई व्यंग्य साहित्य को श्री दुर्गा प्रसाद पारकर ने समय के सच के साथ बेबाकी से प्रस्तुत किया। आज मनुष्य के जीवन में गतिरोध एवं विसंगतियां पैदा हो रही है। यही गतिरोध और विसंगतियां लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए सबसे बड़ा खतरा साबित हो रहा है। इस खतरे को पहचानना भी हमें आवश्यक जान पड़ता है। छत्तीसगढ़ में इतने सारे व्यंग्य लेखकों के व्यंग्य को छत्तीसगढ़ी में अनुवाद करके श्री दुर्गा प्रसाद पारकर ने नई पीढ़ी के लिए सकारात्मकता का काम कर रही है।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक (वीरेन्द्र तंवर)-शिक्षा का कार्य तथा उद्देश्य केवल साक्षरता प्रदान करना ही नहीं है ये विचार बाल गंगाधर तिलक के हैं। हमारे प्राचीन ज्ञान व सांस्कृतिक मूल्यों को समाज की नवीनता और युवा पीढ़ी के विचारों और जीवन शैली में समाहित कर ऐसा परिवर्तन लाना है जिससे हमारे समाज और राष्ट्र का जागरण और पुनर्निर्माण संभव हो सके। अनुवादक श्री दुर्गा प्रसाद पारकर ने शिक्षा और मनुष्य के भौतिक जीवन यापन में जीवन में राष्ट्र की प्रतिष्ठा के साथ संपन्नता में श्री वृद्धि की है।
चौरा-चौरी की कहानी (गौतम पाण्डेय)-श्री दुर्गा प्रसाद पारकर चौरा-चौरी की कहानी को इतिहास लेखन के माध्यम से प्रदर्शित करते हैं। यह आजादी की लड़ाई का ऐतिहासिक दस्तावेज है। जनता के संघर्षों को जब हाशिये पर रखने की राजनीति की जाती है तब लोक, श्रमशील समाज पर इतिहास अपनी परंपरा में लिखता और व्यक्त करता है जो श्री पारकर जी ने किया है। चौरा-चौरी की कहानी में तथ्यों को लेखक ने लोकप्रिय इतिहास लेखन के लिए इस्तेमाल किया है। इसमें कई ऐसे प्रसंग आये हैं जिसे पढ़ते हुए मन भींग जाता है। जिस आजादी की लड़ाई के इतिहास से हम इतिहास की पुस्तकों द्वारा परिचित होते हैं वह बीते हुए समय की कितनी अपर्याप्त कहानी कहता है। शांताराम की एक फिल्म का वह मशहूर गीत याद आता है- ये माटी सभी की कहानी कहेगी…..। माटी की कहानी कहने के लिए इतिहास को साहित्य के पास और लोक स्मृति के पास जाना ही होगा इस बात को लेखक ने स्वीकार किया है। छत्तीसगढ़ में जैसे-चोला माटी के हे राम, एकर का भरोसा चोला माटी के हे ना …..।
भारतीय मूर्तिकला का परिचय (प्रभात रंजन)-भारतीय मूर्तिकला का इतिहास अत्यंत प्राचीन और गौरवशाली है। लेखक ने इस कला को जानने और समझने के लिए छत्तीसगढ़ी में अनुवाद करके सबल बीड़ा उठाया है। श्री दुर्गा प्रसाद पारकर ने अपनी भावनाओं तथा विचारों को प्रत्यक्षीकरण या प्रकटीकरण कला के माध्यम से पाठकों को समर्पित किया है। आज हर इतिहासकार अपने-अपने हिसाब से इतिहास के समय की पुनर्रचना करते हैं। छत्तीसगढ़ के क्रांतिवीर इंदरू केंवट और शौर्य की प्रतिमूर्ति बिलासा केंवटिन की क्रांतिकारी और साहसिक विचारधाराओं को रेखांकित करते हुए श्री दुर्गा प्रसाद पारकर ने सामाजिक कद को ऊंचा उठाया है।
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