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भिलाई : पदुमलाल पुन्नालाल बख़्शी सृजनपीठ द्वारा मनाया गया हरिशंकर परसाई जन्मशताब्दी समारोह : छत्तीसगढ़ के चार मूर्धन्य व्यंग्यकारों लतीफ़ घोंघी, त्रिभुवन पांडे, प्रभाकर चौबे और विनोद शंकर शुक्ल पर ईश्वर शर्मा, विनोद साव, जीवेश प्रभाकर चौबे और डॉ. स्नेहलता पाठक ने अपने विचार व्यक्त किए : वरिष्ठ समालोचक, शिक्षाविद् और परसाई विशेषज्ञ नई दिल्ली से आए मुख्यअथिति डॉ. रमेश तिवारी ने कहा – ‘ ग्रीटिंग और राशन कॉर्ड का फर्क बखूबी समझते थे परसाई…’
भिलाई [इंडियन कॉफी हाउस, सेक्टर – 10] : पदुमलाल पुन्नालाल बख़्शी सृजन पीठ द्वारा विगत दिनों हरिशंकर परसाई जन्मशताब्दी समारोह मनाया गया. छत्तीसगढ़ के चार मूर्धन्य व्यंग्यकारों लतीफ़ घोंघी, त्रिभुवन पांडे, प्रभाकर चौबे और विनोद शंकर शुक्ल की कृतियों पर ईश्वर शर्मा [महासमुंद], विनोद साव[दुर्ग], जीवेश प्रभाकर चौबे [रायपुर] और डॉ. स्नेहलता पाठक [रायपुर]ने अपने विचार व्यक्त किया. मुख्यअतिथि व मुख्य वक्ता डॉ. रमेश तिवारी [नई दिल्ली] थे.
•ललित कुमार
प्रारंभ में बख़्शी जी और परसाई जी के तैलचित्र पर अतिथियों ने पुष्पमाला अर्पित किया. मंचासीन अतिथियों का स्वागत प्रदीप भट्टाचार्य, शुचि भवि, सहदेव देशमुख, कुबेर सिंह साहू और लखनलाल साहू ‘ लहर ‘ ने किया.
सृजनपीठ के अध्यक्ष ललित कुमार ने आयोजकीय वक्तव्य और स्वागत उद्बोधन देते हुए कहा –
देश के शीर्षस्थ व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई की जन्मशताब्दी के बहाने अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करते हुए आदमीयत को कायम रखने वाले रचनाकार का स्मरण करना है. ललित जी ने ‘ आदमी और पेड़ ‘ रचना का वाचन करते हुए बताया कि अगर भविष्य को जानना है तो अतीत को भी याद रखना होगा.
•बाएँ से{उपर} डॉ. स्नेहलता पाठक, विनोद साव
•नीचे जीवेश प्रभाकर चौबे, ईश्वर शर्मा
डॉ.स्नेहलता पाठक ने विनोद शंकर शुक्ल पर केंद्रित वक्तव्य देते हुए कहा –
विनोदशंकर शुक्ल जितने अच्छे रचनाकार थे, उतने ही बेहतर इंसान थे. उन्होंने अपनी नियुक्ति प्रकरण का हवाला देते हुए शुक्ल जी की इंसानियत को रेखांकित किया. उनकी रचनाओं को दैनंदिन घटनाओं से प्रेरित और कल्पनाओं से परे बताया.
व्यंग्यकार प्रभाकर चौबे के पुत्र जीवेश प्रभाकर चौबे ने अपने पिता को याद करते हुए कहा –
उन्होंने अपने पिता को उनकी रचनात्मकता और निजी जीवन में पारिवारिक जिम्मेदारी को सहज रूप से निभाने वाले पालक की तरह से स्मरण किया. एक लेखक के रूप में उन्हें याद करना भाव और भावुकता के अंतर्दूंद से गुजरे हुए व्यक्ति का स्मरण करना होगा. प्रभाकर जी के स्तम्भ लेखन, संपादन और परसाई से संबंधों की विस्तृत जानकारी साझा की.
ईश्वर शर्मा व्यंग्यकार लतीफ़ घोंघी पर बोले – व्यंग्य में परिस्थिति जन्य हास्य का मिश्रण होना चाहिए जो लतीफ घोंघी ने बखूबी किया. हास्य पैदा करने के लिए वे हमेशा चुटकुलेबाजी से दूर रहे. उन्होंने व्यंग्यकार शरद जोशी के हवाले से कहा कि लेखन में समूचे आकाश को नहीं समा सकते लेकिन गली – मोहल्लों की समस्याओं को स्थान तो दे सकते हैं. लतीफ घोंघी का लेखन भी आम आदमी की समस्याओं पर केंद्रित रहा. वे लम्बे कथानक के माध्यम से मुस्लिम समाज में व्याप्त समस्याओं को भी रेखांकित किया.
सभागार में उपस्थित लतीफ घोंघी के सुपुत्र डॉ. करीम घोंघी ने अपने पिता की स्मृतियों को साझा किया.
देश के सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार विनोद साव ने व्यंग्यकार त्रिभुवन पांडे पर बोले –
अमूनन लेखन की शुरुआत कविता, लघुकथा से होती है किंतु वे ऐसे रचनाकार थे, जिन्होंने लेखन की शुरूआत उपन्यास से की. उनका उपन्यास ‘ भगवान विष्णु की भारत यात्रा ‘ सत्तर के दशक में साहित्य रसिकों के बीच चर्चित रहा. यह उपन्यास उन दिनों एक राष्ट्रीय पत्रिका में 36 भागों में प्रकाशित किया गया था. उनकी रचनाओं में दलित, पीड़ित, शोषित, श्रमिक, महिला और मजलूमों के प्रति संवेदना का भाव स्पष्ट नजर होता था. छत्तीसगढ़ में किताबों की सर्वाधिक समीक्षा करने वाले लेखकों में उनका ही नाम है. उनकी प्रसिद्ध रचना ‘ पंपापुर की कथा ‘ के साथ दूसरी अन्य रचनाओं की भी विस्तृत जानकारी दी.
•डॉ.रमेश तिवारी
मुख्य अतिथि डॉ. रमेश तिवारी ने कहा –
हरिशंकर परसाई का समग्र जीवन बेचैनी भरा रहा है. मिथकों और लोक मान्यताओं को समाहित कर जो लेखन उन्होंने किया, वह बेजोड़ है. जीवन में संघर्ष नहीं है तो व्यंग्य भी नहीं हो सकता. परसाई की रचनाओं का विशद विश्लेषण करते हुए उन्होंने कहा कि ग्रीटिंग कार्ड और राशन कॉर्ड का फर्क वे बखूबी समझते थे. उन्होंने छत्तीसगढ़ के 4 व्यंग्यकारों लतीफ घोंघी, त्रिभुवन पांडे, प्रभाकर चौबे, विनोद शंकर शुक्ल को विश्वव्यापी निरूपित किया. डॉ. रमेश तिवारी ने कबीर, तुलसी, प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद और भवानी प्रसाद मिश्र के उद्धरणों से अपने कथन की पुष्टि की.
संचालन व्यंग्यकार राजशेखर चौबे [रायपुर] और आभार व्यक्त लेखक कुबेर सिंह साहू [राजनांदगांव] ने किया.
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सभागार में उपस्थित थे –
डॉ. नलिनी श्रीवास्तव, संतोष झांझी, विद्या गुप्ता, डॉ. सुनीता वर्मा, कैलाश बनवासी, डॉ. महेंद्र कुमार ठाकुर, डॉ. देवेंद्र कुमार पाठक, प्रदीप वर्मा, डॉ. डीपी देशमुख, डॉ. दीनदयाल साहू, डॉ. निर्मला परगनिहा, डॉ. अनुराधा बख़्शी, अनिता करडेकर, डॉ. संजय दानी, आलोक शर्मा, एनएल मौर्य ‘ प्रीतम ‘, लखनलाल साहू ‘ लहर ‘, टीएन कुशवाहा ‘ अंजन ‘, आभा रानी शुक्ला, अपाराजित शुक्ल, निर्मल चंद शर्मा, विनय शुक्ला, अरविंद पांडे, प्रफुल्ल चंद्र पंडा, अशोक शर्मा, गिरवरदास मानिकपुरी, अविनाश सिपहा, राम सजीवन ताम्रकर, गुणवंत जे गुंडेचा, संजय पेंढ़ारकर, शुचि भवि, डॉ. नौशाद अहमद सिद्दीकी ‘ सब्र ‘, सहदेव देशमुख, हितेश साहू, सनत कुमार मिश्रा और ‘ छत्तीसगढ़ आसपास ‘ के सलाहकार संपादक आलोक कुमार चंदा, संपादक प्रदीप भट्टाचार्य साथ में छत्तीसगढ़ के अनेक जिलों से आए साहित्य रसिक.
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