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- रायपुर : अंधभक्त होने के लिए प्रचंड मुर्ख होना जरूरी – हरिशंकर परसाई : हिंदी साहित्य एवं व्यंग्य संस्थान द्वारा आयोजित हरिशंकर परसाई जन्मशती समारोह में रचना पाठ एवं विमर्श
रायपुर : अंधभक्त होने के लिए प्रचंड मुर्ख होना जरूरी – हरिशंकर परसाई : हिंदी साहित्य एवं व्यंग्य संस्थान द्वारा आयोजित हरिशंकर परसाई जन्मशती समारोह में रचना पाठ एवं विमर्श
रायपुर [छत्तीसगढ़ आसपास न्यूज़] : हरिशंकर परसाई के वाक्यों में रिदम, लय और दृश्य समाहित हैं। उनके पात्र पढ़ते समय वेशभूषा में नजर आते हैं। भोलाराम हरकतें करते हुए नजर आता है। परसाई के पात्रों में हथियार नहीं होते, उनका पात्र ही हथियार होता है। परसाई को जितना पढ़ेंगे हर बार कोई नया एंगल निकल आएगा। परसाई को पढ़ना मतलब खुद को अपडेट करने जैसा है। यह कहा नाटॺ लेखक, व्यंग्यकार अख्तर अली ने। वे हिन्दी साहित्य एवं व्यंग्य संस्थान द्वारा रायपुर में आयोजित हरिशंकर परसाई जन्मशती समारोह रचना पाठ एवं विमर्श कार्यक्रम में आज का समय और परसाई विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने आज की पीढ़ी के लेखकों पर कटाक्ष करते हुए कहा- हम परसाई के ऐसे शिष्य हैं जो उनके आचरण को स्वीकार नहीं करते। अभिव्यक्ति के खतरे की बात आती है लेकिन हम लेखन में खतरे नहीं उठाते।
कलम के मजदूर
डिग्री गर्ल्स कॉलेज की प्रोफेसर कल्पना मिश्रा ने कहा, परसाईजी ने जो लिखा वह तात्कालिक था लेकिन आज सर्वकालिक बन गया है। आज वे होते तो यहां आते और कहते मोबाइल लिखूं या मोबाइल के सैकड़ों ऐप पर लिखूं। या फिर सोशल मीडिया पर कुकुरमुत्तों की तरह निकल आए लेखकों पर लिखूं। ओटीटी पर या वेबसीरीज पर लिखूं। वे आज भी धारदार ही लिखते। प्रेमचंद के फटे जूते और हंसते-मुस्कुराते लिखने का साहस वे ही कर सकते थे। परसाईजी को मैं कलम के मजदूर और सिपाही दोनों कहूंगी। अपने लेखन से उन्होंने पुरानी चीजों को ढहाया और नवनिर्माण किया। व्यंग्य उनके नश्तर की तरह था।
संस्थान के अध्यक्ष राजशेखर चौबे ने कहा कि परसाई जी ने अभिव्यक्ति के खतरे उठाए हैं । आज के हम व्यंग्यकार लाइक और कमेंट में व्यस्त हैं। व्यंग्यकार की कमी कवि लोकगायक कार्टूनिस्ट और एक्टिविस्ट पूरी कर रहे हैं।परसाई जी कल भी प्रासंगिक थे आज भी प्रासंगिक हैं और कल भी प्रासंगिक रहेंगे।
जीवेश चौबे ने कहा, परसाईजी भविष्यवक्ता की तरह लिखा करते थे। आजादी के पहले की घटनाएं या इतिहास को पढ़ना हो तो प्रेमचंद और आजादी के बाद के काल को समझना हो तो परसाईजी को पढ़ना चाहिए। हर विधा में लिखा। तमाम राजनीतिक दलों को घेरा। उनका लिखा आवारा भीड़ के खतरे आज भी प्रासंगिक है। उनका लिखा सर्वकालीन है। उनका अध्ययन वृहद था। वे जितना लिखते थे उससे कहीं अधिक पढ़ा करते थे। पारिवारिक रिश्तों से लेकर अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर बखूबी लिखते थे। वे सिर्फ लेखक ही नहीं विचारक भी थे।
आज भी नहीं हुआ परसाई का सही मूल्यांकन
महेंद्र कुमार ठाकुर ने कहा, अगर हम परसाई को पढ़ें तो इतिहास की वास्तविकता को खोजने में सबसे आगे हो सकते हैं। व्यंग्य ऐसी विधा है जिससे जिस पर व्यंग्य किया गया हो वह भी मुस्कुरा उठता है और खुद में सुधार करता है। आज व्यंग्य के मायने बदल गए हैं। परसाईजी का सही मूल्यांकन आज भी नहीं हुआ है। उन्होंने सिर्फ व्यंग्य ही नहीं बल्कि संस्मरण और लघु कथा भी लिखे। एक वर्ग है जो कबीर तुलसी और परसाई के जरिए खुद को सामने लाना चाहता है।
लेखक की चिंताओं का प्रासंगिक होना दुर्भाग्य
भुवाल सिंह ठाकुर ने कहा, चाहे प्रेमचंद हों या परसाई। सभ्य समाज में किसी लेखक की चिंताओं का प्रासंगिक होना दुर्भाग्य है। क्योंकि हम नकारे हैं जो चिंताओं को अमलीजामा नहीं पहना सकते। व्यंग्य हंसाता है, तिलमिलाहट देता है साथ ही करूणा की उत्पत्ति भी करता है। इस अवसर पर परसाई जी के कोटेशन के साथ चित्रों की प्रदर्शनी लगाई गई थी। इससे पहले सुनील पांडे ने विकलांग श्रद्धा का दौर पढ़ा। शुभ्रा ठाकुर ने संचालन के साथ ही भोलाराम का जीव को रोचक अंदाज में सुनाया।आभार प्रदर्शन एम राजीव जी ने किया। इस अवसर पर साहित्यकार व गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
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