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- विशेष : अवतार सिंह संधू ‘ पाश ‘ [जन्म 9 सितम्बर 1950] : सबसे खतरनाक होता है, हमारे सपनों का मर जाना… वैचारिक उर्जा, आत्मविश्वास, साहस, क्रांति और मानवता का कवि – पाश : आलेख, गणेश कछवाहा
विशेष : अवतार सिंह संधू ‘ पाश ‘ [जन्म 9 सितम्बर 1950] : सबसे खतरनाक होता है, हमारे सपनों का मर जाना… वैचारिक उर्जा, आत्मविश्वास, साहस, क्रांति और मानवता का कवि – पाश : आलेख, गणेश कछवाहा
अवतार सिंह संधू ‘ पाश ‘ उन चंद इंकलाबी शायरो में से है, जिन्होंने अपनी छोटी सी जिन्दगी में बहुत कम लिखी लेकिन बहुत गहरी और क्रांतिकारी तेवर से ओतप्रोत लिखी। क्रान्तिकारी शायरी द्वारा पंजाब में ही नहीं सम्पूर्ण भारत में एक नई अलख जगाई। यह माना जाता है कि जो स्थान क्रान्तिकारियों में भगत सिंह का है वही स्थान कलमकारो में पाश का है। इन्होंने गरीब मजदूर किसान के अधिकारो के लिये कलम चलाई ।
पाश का मानना था बिना लड़े कुछ नहीं मिलता उन्होंने लिखा “हम लड़ेगें साथी” तथा “सबसे खतरनाक होता है अपने सपनों का मर जाना” जैसे लोकप्रिय गीत लिखे। आज भी जनमानस के दिलो दिमाग तेज और ऊर्जा का संचार करती है। क्रांति और आशा के कवि थे।
अवतार सिंह संधू जन्म 09 सितम्बर 1950 में पंजाब के जालंधर जिले के तलवंडी सलेम नामक एक छोटे से गाँव में एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता सोहन सिंह संधू भारतीय सेना में एक सिपाही थे, जिन्होंने शौक के तौर पर कविता भी रची थी। जिन्हें सब पाश के नाम से जानते हैं पंजाबी कवि और क्रांतिकारी थे।पाश को क्रांति का कवि कहा जाता है और उनकी कविताएं व्यवस्था से सीधे टकराती हैं, सवाल करती हैं। क्योंकि असल में वह देश ,दुनिया और इंसानियत से बेइंतहा मोहब्बत करता था।जो इंसानियत से प्यार करता है मतलब वह अपने राष्ट्र और दुनिया के हर प्राणी से प्यार करता है।इसलिए जहां कहीं भी मानवता पर आंच आती है,अन्याय,जुल्म,सितम,दमन,और अत्याचार होते हैं उनके खिलाफ वह सीना तान के और सर पर कफ़न बांध कर बहुत मुखर होकर निडरता के साथ प्रतिरोध करता है,आवाज उठाता है और उन नकारात्मक शक्तियों के खिलाफ आवाम में जन चेतना पैदा करता है।सियासत उसे विद्रोह,क्रांतिकारी और न जाने क्या क्या संबोधन से नवाजती है।वास्तव में वह तो बहुत संवेदन शील, इंसान और देश दुनिया से बेइंतहा मोहब्बत करने वाला एक सच्चा इंसान होता है।ऐसे ही दुनिया और इंसान को प्यार करने वाले कवि थे पाश। देश और दुनिया को एक समतावादी ढांचे में देखने वाले कवि पाश सपनों और उम्मीद को बहुत जरूरी मानते हैं। पाश का यह आशावाद उन्हें दुनिया को तहे दिल से प्यार करने वाले कवि की संज्ञा देता है।
पाश की एक मानवतावादी जीवंत रचना –
“सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना।।”
मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
ग़द्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती
बैठे-बिठाए पकड़े जाना – बुरा तो है
सहमी-सी चुप में जकड़े जाना – बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नहीं होता
कपट के शोर में
सही होते हुए भी दब जाना – बुरा तो है
किसी जुगनू की लौ में पढ़ना – बुरा तो है
मुट्ठियां भींचकर बस वक़्त निकाल लेना – बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नहीं होता
सबसे ख़तरनाक होता है
मुर्दा शांति से भर जाना
न होना तड़प ना सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना
सबसे ख़तरनाक वो घड़ी होती है
आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो
आपकी नज़र में रुकी होती है
सबसे ख़तरनाक वह आंख होती है
जो सबकुछ देखती हुई भी जमी बर्फ़ होती है
जिसकी नज़र दुनिया को मुहब्बत से चूमना भूल जाती है
जो चीज़ों से उठती अंधेपन की भाप पर ढुलक जाती है
जो रोज़मर्रा के क्रम को पीती हुई
एक लक्ष्यहीन दुहराव के उलटफेर में खो जाती है
सबसे ख़तरनाक वह चांद होता है
जो हर हत्याकांड के बाद
वीरान हुए आंगनों में चढ़ता है
पर आपकी आंखों को मिर्चों की तरह नहीं गड़ता है
सबसे ख़तरनाक वह गीत होता है
आपके कानों तक पहुंचने के लिए
जो मरसिए पढ़ता है
आतंकित लोगों के दरवाज़ों पर
जो गुंडों की तरह अकड़ता है
सबसे ख़तरनाक वह रात होती है
जो ज़िंदा रूह के आसमानों पर ढलती है
जिसमें सिर्फ़ उल्लू बोलते और हुआं हुआं करते गीदड़
हमेशा के अंधेरे बंद दरवाज़ों-चौगाठों पर चिपक जाते हैं
सबसे ख़तरनाक वह दिशा होती है
जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए
और उसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा
आपके जिस्म के पूरब में चुभ जाए
मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
ग़द्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती।
– पाश
(संभवत: अपूर्ण रह गई एक लंबी कविता का अंश)
पाश जब असमानता,अन्याय,अत्याचार और व्यवस्था के दमनात्मक आचरण से क्षुब्ध या क्रोधित होते हैं तो उससे एक उर्जा निकलती है जिसे वो कलमबद्ध करते हैं और वह कविता काव्य प्रेमियों को न केवल झंझोड़ती है बल्कि पाश से हमेशा-हमेशा के लिये जोड़ती है-
हम लड़ेंगे साथी – पाश
लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए
हम लड़ेंगे साथी, ग़ुलाम इच्छाओं के लिए
हम चुनेंगे साथी, ज़िन्दगी के टुकड़े
हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर
हल अब भी चलता हैं चीख़ती धरती पर
यह काम हमारा नहीं बनता है, सवाल नाचता है
सवाल के कन्धों पर चढ़कर
हम लड़ेंगे साथी
क़त्ल हुए जज़्बों की क़सम खाकर
बुझी हुई नज़रों की क़सम खाकर
हाथों पर पड़े गाँठों की क़सम खाकर
हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे तब तक
जब तक वीरू बकरिहा
बकरियों का पेशाब पीता है
खिले हुए सरसों के फूल को
जब तक बोने वाले ख़ुद नहीं सूँघते
कि सूजी आँखों वाली
गाँव की अध्यापिका का पति जब तक
युद्ध से लौट नहीं आता
जब तक पुलिस के सिपाही
अपने भाइयों का गला घोंटने को मज़बूर हैं
कि दफ़्तरों के बाबू
जब तक लिखते हैं लहू से अक्षर
हम लड़ेंगे जब तक
दुनिया में लड़ने की ज़रूरत बाक़ी है
जब बन्दूक न हुई, तब तलवार होगी
जब तलवार न हुई, लड़ने की लगन होगी
लड़ने का ढंग न हुआ, लड़ने की ज़रूरत होगी
और हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे
कि लड़े बग़ैर कुछ नहीं मिलता
हम लड़ेंगे
कि अब तक लड़े क्यों नहीं
हम लड़ेंगे
अपनी सज़ा कबूलने के लिए
लड़ते हुए मर जाने वाले की याद
ज़िन्दा रखने के लिए
हम लड़ेंगे
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मैं पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से – पाश
मैं पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से
क्या वक़्त इसी का नाम है
कि घटनाएँ कुचलती चली जाएँ
मस्त हाथी की तरह
एक पूरे मनुष्य की चेतना ?
कि हर प्रश्न
काम में लगे ज़िस्म की ग़लती ही हो ?
क्यूँ सुना दिया जाता है हर बार
पुराना चुटकुला
क्यूँ कहा जाता है कि हम ज़िन्दा है
जरा सोचो –
कि हममे से कितनों का नाता है
ज़िन्दगी जैसी किसी वस्तु के साथ !
रब की वो कैसी रहमत है
जो कनक बोते फटे हुए हाथों-
और मंडी के बीचोबीच के तख़्तपोश पर फैली हुई माँस की
उस पिलपली ढेरी पर,
एक ही समय होती है ?
आख़िर क्यों
बैलों की घंटियाँ
और पानी निकालते इंजन के शोर में
घिरे हुए चेहरो पर जम गई है
एक चीख़तीं ख़ामोशी ?
कौन खा जाता है तल कर
मशीन मे चारा डाल रहे
कुतरे हुए अरमानों वाले डोलो की मछलियाँ ?
क्यों गिड़गिड़ाता है
मेरे गाँव का किसान
एक मामूली से पुलिसए के आगे ?
क्यों किसी दरड़े जाते आदमी के चौंकने के लिए
हर वार को
कविता कह दिया जाता है?
मैं पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से
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सत्तर के दशक में काव्य जगत पर छाये रहे, एक ऐसा कवि जिसने जनआन्दोलनों को ठीक ठीक समझा फिर कलम चलाई। उनका यह मानवतावाद क्रांतिकारी लेखनी अंतिम सांस तक चलती रही ।उनकी कविताएं संघर्ष की जिजीविषा पैदा करती हैं, चुनौतियों को स्वीकार करने का साहस प्रदान करती हैं। उनकी कविताओं में उम्मीद है, वैचारिक उर्जा है, आत्मविश्वास है और साहस भी है ।
1970 में, उन्होंने 18 वर्ष की आयु में क्रांतिकारी कविताओं की अपनी पहली पुस्तक, लोह-कथा ( आयरन टेल ) प्रकाशित की। उनके उग्रवादी और उत्तेजक स्वर ने प्रतिष्ठान की नाराजगी बढ़ा दी और उनके खिलाफ हत्या का आरोप लगाया गया। आखिरकार बरी होने से पहले उन्होंने लगभग दो साल जेल में बिताए। 1972 में, 22 वर्षीय ने एक बरी होने पर शुरू किया, वह पंजाब के माओवादी मोर्चे में शामिल हो गया, एक साहित्यिक पत्रिका, सियार ( द प्लो लाइन ) का संपादन किया। वह इस अवधि के दौरान बाईं ओर एक लोकप्रिय राजनीतिक व्यक्ति बन गए और उन्हें 1985 में पंजाबी एकेडमी ऑफ लेटर्स में फेलोशिप से सम्मानित किया गया। उन्होंने यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका का दौरा किया।
अवतार सिंह सिंधू ‘पाश’ का निधन 38 वर्ष की अल्पायु में दिनांक 23 मार्च 1988 को हुआ।अजीब संयोग है कि आज के ही दिन याने 23 मार्च को देश के महान क्रांतिकारी शहीदे आज़म भगत सिंह और प्रतिरोध की कविता के सशक्त हस्ताक्षर अवतार सिंह सिंधू ‘पाश’, दोनों की ही पुण्यतिथि है।भगत सिंह के समतावादी विचारों को अपनी कविता में बखूबी दर्ज करते हैं। पाश को क्रांति का कवि कहा जाता है।दोनों के विचारों के मूल में एक समतावादी समाज की स्थापना है। असमानता, ऊंच-नीच, जातीय भेदभाव, गरीबी जैसी चीजें उन्हें अंदर से झंझोड़ती थीं, अंदर का यह रोष रचनात्मक प्रतिरोध के रूप में उभरता था।
सपने
हर किसी को नहीं आते
बेजान बारूद के कणों में
सोई आग के सपने नहीं आते
बदी के लिए उठी हुई
हथेली को पसीने नहीं आते
शेल्फ़ों में पड़े
इतिहास के ग्रंथो को सपने नहीं आते
सपनों के लिए लाज़मी है
झेलनेवाले दिलों का होना
नींद की नज़र होनी लाज़मी है
सपने इसलिए हर किसी को नहीं आते
– पाश
पाश अच्छी तरह जानते थे कि बात कविता ,कहानी और शब्दों से भी आगे बढ़ गई है,अब शब्दों के सामने शब्द नहीं हथियार हैं ,सत्ता का अहंकार पूर्ण आचरण और साधन पूर्ण ताकत है।लेकिन वो यह भी जानते थे कि सत्य और शब्दों में असीम शक्ति होती है। पाश के शब्दों में इतनी ताकत इसलिये है कि उनका जीवन भी उनके शब्दों की तरह ही था। अपने लिखे को उन्होंने बखूबी जीवन में उतारा भी। उम्मीद की कलम थामें बेख़ौफ और बेबाक नजरिये वाला यह कवि डर, अन्याय, घुटन, गैरबराबरी के लिये हमेशा एक चुनौती बना रहेगा। पाश अपने चाहने वालों के दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगे।
•गणेश कछवाहा
•संपर्क : 94255 72284
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