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रचना में व्यंग्य : ‘ विकास का गढ्ढा ‘ – दिलशाद सैफी [रायपुर छत्तीसगढ़]
विकास का गढ्ढा
चुनाव का समय आते ही जीत हार की सरगर्मियां तेजी पकड़ने लगी थी।
आये दिन कोई न कोई नेता दल बल के साथ गांवों और शहरो में चुनावी रैली में देखा जाने लगा था ।
किंतु अधिकतर नेता गांव के भोले भाले लोगों और वर्ण,वर्ग के गरीबों को ही रिझानें में लगे हैं ।
क्योंकि वो अच्छी तरह जानते हैं कि मोटा “वोट बैंक” यदि कोई है तो वो है ये गरीब निम्न तबके के लोंग।
क्योंकि हमारे देश की भोली जनता गांवों में निवास करती हैं, जिन्हें सब्ज़ बाग दिखाते जाओ वो उसी में मग्न रहते हैं। भला इन दिहाड़ी मजदूरों बनिहारो को किसी के सत्ता में आने न आने से क्या….???
“ये तो बस एक बाॅटल देशी ठर्रा और मात्र सौ रुपये में ही ये अपना हाथ और साथ किसी भी पार्टी को दे आये….!”
आज माधवपुर गांव भी पुरा सजधज कर तैयार था क्योंकि नेताजी के शुभ कदम जो पड़ने वाले है।
//नेताजी के चमचे लोंग आसपास के गाँवो से सौ रुपये और दारू दे कर औरतों,आदमियो,बच्चों बुढो़ को गाड़ियों,टैक्टर आदि में ठूंस-ठूंस कर भीड़ बढ़ाने ले आये थे….,,,
ये बेचारे बड़े उत्साहित है हो क्यों न इनके भाग में बिना रुपये के मोटर गाड़ी में बैठना कहां।
”’गांव के तो मानो भाग चमक उठे टूटी-फूटी पंगडडियो से लेकर ऊबड़-खाबड़ सड़कें भी जगमगा रही थी।” गांव के बड़े बूढ़े बच्चों में खासा उत्साह था क्योंकि पाँच साल में ही सही कोई नेता गांव में तो आया क्योंकि ये महाशय लोंग तो अख़बारो और समाचारों की सुर्खियों में ही नज़र आते हैं अब भला इन गरीबों की सुध ले तो ले कौन ।
खैर…,,,,,,,नेताजी का भाषण शुरु हो चुका है वहीं चाटुकारिता बातें खोखले वादे वही झूठे दिलासा कि आप हमें वोट दीजिए और हमेंशा की तरह हम आपके गांव का विकास करेंगे।
“इनकी कुटिल मुस्कान के पीछे छिपे इनके इच्छाओं के पैने दांत बहुत ही विषैले है,जो दिखते नहीं किंतु इनके लालच के फेन देश की देह पर यदि फैल गये तो उसे बचाना कठिन है।”
ये कहते हैं आप सब देखना एक दिन हम ये भेद पुरी तरह मिटा देंगे….”कोई भी गरीब नहीं रहेगा…,,,!
गांवों और शहरों का फर्क भी नहीं रहेगा हम सभी को शिक्षित बनाएंगे ।
ऐसा कर देंगे हम—– वैसा कर देंगे ।
बस आप सब हमारा साथ दे…!
हम “विकास” की नयी मिसाल गढेंगे।
नेताजी के ऊबाऊ झूठे भाषण से जोर जोर से तालीया बजने लगी लोग सामने तालियाँ और पीछे नेताजी को गालीयां दिए जा रहे थे….,,
मगर तभी नेताजी के भाषण में भीड़ बढ़ाने के लिए सौ रुपये में लाए एक टट्टू ने खड़े होकर नेताजी को प्रणाम किया—-” देशी दारू का नशा है सिर चढ़ के बोलेगा ही और तभी वह झूमते नारा लगाते हुए……नेताजी की जयकारे करने लगा….,,,
नेता जी की जय….,,,नेता जी अमर रहे…!
हमारा नेता कैसा हो…. जय प्रकाश जैसा हो।
अब नेताजी पुरी तरह गदगद् हो चुके थे….
तभी उसी आदमी ने नेताजी से एक प्रश्न पूछ डाला,कि क्या नेताजी अब हम सब गरीब नहीं रहेंगे….??
हमें भी गाड़ी बंगला और सांसदो की तरह सारी सुविधाएं मिलेंगी…??
और साथ ही विदेशी दारू भी ???
और यदि हम गरीब नहीं रहेंगे माई बाप….तो…तो भला आपको वोट देगा कौन…. ??
बोलो न माई बाप…. ?
नेताजी सकपका गये और चिचया कर बगले झांकने लगे….,,,
उनका झूठ साफ चेहरे से झलकने लगा था।
सफेद स्याह रंग,जो उनके रंग बदलने की कला को प्रदर्शित कर रहा था।
खैर…! नेताजी ने बात सम्हाल ली बरसों से झूठ बोलने का तजुर्बां जो है और फिर अंततः नेताजी चुनाव जीत ही गये….,,,,। ,
आज फिर पाँच साल बाद अपने प्रचार को उन्हें गाँव आना पड़ा !
मगर ये क्या…?
गाँव के रास्ते की कच्ची सड़क पे ही नेताजी की गाड़ी का चक्का फंस गया और गाड़ी पलट गयी।
“अफरा तफ़री मच गयी मगर नेताजी को निकाला न जा सका।”
“पास खेतों में काम कर रहे किसान मजदूर भी भागे दौड़े आ गये।”
यकायक उनमें से एक किसान जोर से चिल्ला कर कहने लगा..
अरे दादा….,!
ये तो हमारे वही नेताजी हैं।
“बेचारे….,,,”
“अपने ही विकासशील गाँव में “विकास” के गड्ढे में फंस गये……और ठहाको भरी हँसी के बाद वहां एक गहरा सन्नाटा पसर गया….।”
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