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- विशेष : दशहरा उत्सव बुराई के अंत के याद दिलाथे – डॉ. नीलकंठ देवांगन [शिवधाम कोडिया, जिला – दुर्ग, छत्तीसगढ़]
विशेष : दशहरा उत्सव बुराई के अंत के याद दिलाथे – डॉ. नीलकंठ देवांगन [शिवधाम कोडिया, जिला – दुर्ग, छत्तीसगढ़]
दशहरा तिहार नवरात्र के बाद दसवां दिन मनाय जाथे | इही दिन राम ह राक्षस राज रावण के वध करे रिहिसे जवुन ह राम के पत्नि सीता ल अपहरन करके अपन राज्य लंका ले गे रिहिसे | भगवान राम युद्ध के देवी मां दुर्गा के पूजा नौ दिन तक करिस अउ दसवां दिन रावण ल मारिस | ये बुराई मं अच्छाई के जीत के परिचायक हे | तब ले प्रतीक रूप मं हर साल जगा जगा रावण के पुतला के दहन किये जाथे | कुवांर महीना के अंजोरी पाख के दसमी तिथि के मनाय जाने वाला ये तिहार हमला संदेश देथे के अन्याय अउ अनैतिकता के नाश निश्चित हे | चाहे दुनिया भर के ताकत अउ सिद्धि से कोनो संपन्न हो जांय, लेकिन सामाजिक गरिमा के विरुद्ध करे आचरन ले ओखर विनाश तय हे | अधर्म उपर धर्म के जीत होथे |
दशहरा यानी विजया दशमी, दशहरा यानी विजय परब, दशहरा यानी नैतिकता के परब | भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाथे | वो जब आथे त अपने बनाय नियम, मर्यादा के पालन करथे |
रावण कोन ? – रावण तो बुराई के प्रतीक हे , खराब सोच के प्रतीक हे | केवल रावण वध कर दे से या रावण के पुतला जला दे से हमर कर्तव्य पूरा नइ होवय | हमला अपन अंदर के बुराई ल, मलीनता ल, बुरा प्रवृत्ति ल जलाय ल पड़ही | अपन विकार ल लेसे ल पड़ही |
रावन मरे नइहे – विचार करके देखन त रावन अभी मरे नइहे | अगर मर जतिस तो हर साल ओखर पुतला जलाय के जरूरत नइ पड़तिस | काबर के मरे हुये के पुतला कभू नइ जलाय जाय | रावन अभी जिंदा हे, मरे नइ हे | रावन के दस सिर दिखाथें | ये दस सिर दस विकार के प्रतीक हें | ये विकार हें – काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, निंदा, घृणा, आलस अउ भय | ये पुरुष स्त्री मं पाये जाथे |
दस विकार को हरा कर मनायें दशहरा – ये विकार ही हमला दुख देने वाला या रुलाने वाला रावण आंय | काबर न हम येला समझन अउ समझ के विकार रूपी रावन ल जला के सच के विजयादशमी मनावन | सही अर्थ मं राम परमात्मा ल अपन मन मं बसा के दसों विकार ल ज्ञान बान मारके जलावन | तभे एखर सार्थकता है | ये परब मं छुपे संदेश अउ भाव ल समझना हे, समाना हे |
राम के जीवन ले सीख – श्री राम के पूरा जीवन हमला आदर्श अउ मर्यादा के सीख देथे | ईश्वर के अवतार होय के बाद भी वो ह जीवन संघर्ष ले नइ बच सकिस | सुख दुख ल आत्मसात करिस | हमू मन ल अपन जीवन ल प्रभु प्रसाद समझ के कृतज्ञ भाव ले जीना चाही | जीवन के सार्थकता इही मन है | इही उचित हे |
राम ह नवरात्र मं निरंतर नौ दिन शक्ति के आराधना करिस, तब जाके दसवां दिन रावण ल मार सकिस | राम आदर्श बनके प्रकट होइन | जीवन मं दुष्प्रवृत्ति ल नाश करे बर सत्य ल शक्ति के आराधना करे ल पड़ही |
दशहरा उत्सव हमला जीवन जिये के कला सिखाथे | राम ह सत्य अउ शक्ति के सहारा ले असत्य अउ अनाचार के रावण ल मारे रिहिसे | इतिहास अउ संस्कृति के ये घटना कई शदी ले हमर आस्था के अभिन्न अंग बन चुके हे | रावण ऊपर राम के जीत आज भी हमर लोक जीवन मं श्रद्धा अउ आकर्षन के साथ जीवित हे | हमर मन मं रच पच गेहे |
जरा सोचन – बुराई के तो विनाश होना ही चाही | लेकिन ये सिर्फ उत्सव जश्न भर बनके न रहि जाय काबर के व्यक्ति मं समाज मं बुराई लगातार बढ़त जाथे | येला सब महसूस करथें | साल दर साल रावण के ऊंचा ऊंचा पुतला जलाय जाथे | तभो ले रावण काबर नइ मरय ? काबर नइ जरय ? फेर काबर जिंदा हो जथे ? हर साल तय दिन मं संझउती बेरा लोगन के भीड़ उमड़थे अउ रावण के विशाल पुतला ल अपन आंख के सामने धू धू कर जलत अउ राख होवत देखथे |
सोचन, चिंतन करन अउ बने सोच के मस्तक मं विजय के तिलक लगावन | सही मायने मं विजयदशमी – दशहरा मनावन|
• डॉ. नीलकंठ देवांगन
• संपर्क –
• 84355 52828
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