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छत्तीसगढ़ में पंच पर्व दीवाली – डॉ. नीलकंठ देवांगन
छत्तीसगढ़ सहित देश के हर गांव कस्बों शहरों महानगरों में परंपरा एवं आस्था की रोशनी में, उत्साह एवं उल्लास के उजाले में धन समृद्धि की देवी महालक्ष्मी के स्वागत में सजे संवरे घर आंगन में खुशी और उमंग के साथ दीपावली मनाया जाता है | छत्तीसगढ़ में मनाने का अपना अंदाज, अपनी परंपरा है | अंधकार पर प्रकाश के विजय का प्रतीक पर्व कोई एक दिन का त्यौहार नहीं बल्कि पांच दिनों के त्यौहारों – धनतेरस, नरक चौदस, लक्ष्मी पूजन, गोवर्धन पूजा, भाई दूज का समूह है |
यह विलक्षण पर्व लोक जीवन को खुशियों से भर देता है | यह वह समय होता है जब फसल पककर तैयार हो जाती है | धान का कटोरा छत्तीसगढ़ में कृषकों के लिए इससे बढ़कर और शुभ अवसर क्या हो सकता है? क्योंकि धनी निर्धन सबके घर में अन्न के रूप में लक्ष्मी का आगमन होता है | चहुं ओर आनंद बिखर जाता है | घर आंगन को साफ़, लीप पोत कर संवारा जाता | उसे ऐसा लगता कि जीवन में आई कमी कमजोरियों को बुहार कर जीवन से बाहर कर दिया है | खुशी से अनेक दीये जलाता, दीप मालिका सजाता, खुशियों के फटाखे फोड़ता, उमंगों की लड़ियां फुलझड़ियां चलाता |
मान्यताएं – दीवाली मनाने की कई मान्यताएं हैं- राम रावण का वध कर अयोध्या लौटे तब हर्षातिरेक में नगरवासियों ने अनगिनत दीये जला, फटाखे फोड़ दीवाली मनाई थी | गुरु गोविंद सिंह को इसी दिन मुगलों पर विजय मिली थी, भगवान बुद्ध के स्वागत में दीप सजे थे, भगवान महावीर को परिनिर्वाण प्राप्त हुआ था | कारण चाहे जो भी हो, भाव है आनंद और प्रकाश की जिससे मनुष्य की चेतना का विकास होता है |
दीये जलाने का वास्तविक अर्थ अंतस में ज्ञान का प्रकाश भरना होता है | दीये की लौ ज्ञान का प्रतीक है, ज्ञान सुख समृद्धि का आधार है |
बरसात में गंदगी और कीट पतंगों की बाढ़ सी आ जाती है जो बीमारियों के कारण होते हैं | दीयों के प्रकाश और फटाखों से उनका नाश हो जाता है |
पंच पर्व- धन तेरस- भगवान धन्वंतरि अमृत कलश ले अमृत कण बांटते, आरोग्य और दीर्घायु का संदेश देते आये थे | जीवन का आनंद स्वस्थ शरीर में ही होता है
नरक चतुर्दशी- यमराज को प्रसन्न करने, यम यातना से मुक्ति पाने पूजन एवं दीपदान दिया जाता है | इसे रूप चतुर्दशी भी कहते | कृष्ण ने नरकासुर का वध कर देवताओं को सुखी व पृथ्वी को भार हीन किया था |
लक्ष्मी पूजन दीपावली- भौतिक सुख समृद्धि, व्यापार में समृद्धि हेतु लक्ष्मी का आह्वान पूजन किया जाता है | साथ में सरस्वती गणेश भी पूजे जाते हैं | संपति समृद्धि का अर्थ केवल धन वैभव से नहीं, भावनाओं की व जीवन मूल्यों की वृद्धि भी आवश्यक है | स्वस्थ शरीर से ही लक्ष्मी की प्राप्ति संभव है और सद्बुद्धि के साथ उपभोग करने पर ही वास्तविक सुख समृद्धि आती है |
छत्तीसगढी में इसे देवारी, सुरहुत्ती कहते हैं |
गोवर्धन पूजा- गो एवं गिरि पूजन-
छत्तीसगढी जन जीवन में गो को लक्ष्मी माता मानते हैं | उसके शरीर में तैंतीस करोड़ देवता का वास होता है | गौ अपना सब कुछ लोक हितार्थ अर्पण कर देती है | पंच गव्य से सबको समान लाभ पहुंचाती है | मरने पर भी उसकी हड्डी चमड़ी सींग खुर अनेक कामों में उपयोगी होता है | गो पालक किसान इस दिन गाय बैलों की विशेष पूजा करते हैं | खिचड़ी खिलाते हैं |
चरवाहे राउत लोग गायों को सोहई और बैलों को गैंठा बांधकर श्रृंगार करते हैं | पेड़ पौधों की जड़ों से रेशे निकालकर उसमें मयूर पंख व रंगबिरंगी कपड़ों की कतरनें गूंथकर कलात्मक ढंग से अपने हाथों इन्हें बनाते हैं |
सांहड़ा देव स्थान पर गोबर से बने घर पर्वत को राउत लोग छोटे सफेद बछड़े के पैर से खुंदवाते हैं | गांव वाले उपस्थित होते हैं |खुंदे गोबर को लोग एक दूसरे के माथे पर तिलक लगा भेंट करते हैं |
श्री कृष्ण ने देवराज इंद्र का घमंड तोड़ने गोवर्धन पूजा आरंभ की थी |स्नेह मिलन की परंपरा की नींव डाली थी | पर्वत पर्यावरण रक्षा एवं अनेक जरूरतों को पूरा करता है |
भाई दूज (यम द्वितीया) -भाई बहन के प्रेम प्रतीक रूप में यह मनाया जाता है | बहन अपने भाई के माथे पर तिलक लगा आरती उतार मिठाई खिलाती और उसके दीर्घायु की कामना करती है |
इसी दिन मृत्यु के देवता यमराज की बहन यमी ( यमुना )ने भाई यमराज को तिलक लगा भोजन कराया था | प्रसन्न हो यम ने वरदान दिया था कि इस दिन यमुना स्नान और बहन के घर भोजन करने पर यम की सजा से बच जायेंगे |
छत्तीसगढ़ की खासियत –
काछन, गौरा गौरी, मातर
काछन-दीवाली के दिन राउत लोग सज धज कर देव पूजा के बाद तेंदूसार की लाठी लेकर घर से नाचते हुए निकलते हैं | बीच बीच में तुलसी कबीर रहीम आदि कवि के दोहा पारते हैं | कई हास्य तो कई गूढ़ अर्थ लिये होते हैं | हाथ में लिये लाठियां चलाते हैं जिसे काछन कहते हैं |
गौरा गौरी- लक्ष्मी पूजन के दिन गौरा (शिव) और गौरी (पार्वती) की मिट्टी की प्रतिमाएं बनायी जाती हैं | गौरा का वाहन बैल और गौरी का वाहन कछुआ होता है | शिव को ईसर देव कहते हैं | विवाह की खुशी में खूब नाचते गाते हैं | मोहरी दफड़ा सींगबाजा डमरू मंजीरा के ताल में कई इतने मस्त हो जाते कि उन्हें अपनी सुध बुध नहीं रहती | इसे देवता चढ़ना कहते हैं | स्त्रियां बाल बिखराकर झूम झूम नाचती हैं | धुन विशेष में बाजा बजते हैं | कमर झुकाकर दोनों हाथ की उंगलियों को एक साथ कभी बायें कभी दायें फटकारती तो कभी ऊपर नीचे फेंकते हुये नाचती हैं | आदिवासी इसे खास तौर से मनाते हैं |
मातर- ठेठवार लोगों का यह मुख्य उत्सव होता है | दूसरे भी शरीक होते | ये भी काछन करते | गौठान में यह उत्सव होता | पशुओं के साथ दोहा पारते खास अंदाज में घूमते नाचते हैं | पूरा गांव मातर देखने उमड़ पड़ता है | दूसरे गांव के लोग भी देखने आते हैं | उपस्थित जनों को दूध खीर का प्रसाद देते | मान्य जनों का सम्मान करते हैं |
संदेश – यह त्यौहार अपने जीवन में प्रकाश भरने की प्रेरणा देता | ज्ञान का प्रकाश हमें मंजिल तक पहुंचा सकता है | भेद भाव भुला प्रेम से व्यवहार करना सिखाता | हर दीया सृजन का प्रतीक होता | अपने अंदर सृजन के दीये जलायें और दूसरों को प्रकाश पथ पर अग्रसित करें |
•डॉ. नीलकंठ देवांगन
•संपर्क –
84355 52828
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