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अघोरेश्वर भगवान रामजी के महानिर्वाण दिवस पर विशेष : मानवता व कल्याण के प्रतिमूर्ति, अद्वितीय औघड़ संत अवधूत भगवान रामजी
जब कोई व्यक्ति, संत या महात्मा अपनी संपूर्ण चेतना के साथ जन हितार्थ व विश्व कल्याणार्थ सदियों से चली आ रही परंपरा या अवधारणा में परिवर्तन कर उसके मूलतत्व को जन जन तक पहुंचाने का युगांतकारी कार्य करता है तब वही सच्चे अर्थों में युगदृष्टा, युगप्रवर्तक संत होता है।
अध्यात्म में रूढ़िवादी परंपराएं, कुरूतियां,आडंबर और पाखंड ने अध्यात्म की वास्तविकता, पवित्रता, शुद्धता और सत्यता को धूमिल कर लोगों की श्रद्धा को ठेस ही नहीं पहुंचा रहा है वरन श्रद्धा,विश्वास और भक्ति को कमजोर कर आध्यात्मिक चेतना को नुकसान पहुंचा रहा है। अध्यात्म का सही मार्ग बताने वाले संत विरले ही होते हैं।अघोराचार्य बाबा कीनाराम परम्परा के अद्वितीय औघड़ संत अवधूत भगवान राम जी ने अध्यात्मिक चेतना,ज्ञान और भक्ति को पूरी पवित्रता के साथ समाज व राष्ट्र हित में अघोर मत से जोड़ा,जिसने मानवता को ही राष्ट्र धर्म तथा समाज व राष्ट्र की पूजा को गढ़े हुए देवताओं से भी महान बताया। आपका एक बार दर्शन प्राप्त करने या आशीर्वचन सुनने के बाद हर चेतनशील प्राणी सम्पूर्ण श्रद्धा के साथ आपके शरणागत हो जाता है।
आपने संत ऋषिमुनियों महात्माओं की धाती को संरक्षित करते हुए अंध विश्वास, रूढ़िवाद, कुरीतियों,आडम्बर और पाखंड का कड़ा विरोध किया।अध्यात्म या धर्म के सच्चे व पवित्र मार्ग को प्रशस्त किया।आत्मा की पवित्रता,आदर्श आचरण और सुचरित्र को अध्यात्म का मूल आधार बतलाए। अघोरेश्वर भगवान राम का मानना है कि – *”*धर्म वट वृक्ष सा है। सभी को छाया प्रदान करने वाला है, चाहे वे किसी भी जाति मज़हब के क्यों न हो। धर्म आदर देने वाला दिलाने वाला होता है। धर्म के अभाव में विकृति पनपती है।भयावह कलंक जन्म लेता है, पनपता है। धर्म के अभाव में मनुष्य का आचरण सींग वाले पशुओं की तरह हो जाता है।धर्म एक दूसरे के साथ मैत्री कारक होता है। स्नेहकारक होता है।धर्म तो संवेदनशील होता है। * – (अघोर संवेदनशील)
मानव कल्याण और समाज सेवा को ही परम लक्ष्य बनाया-
आपने समाज के सबसे उपेक्षित कुष्ठ रोगियों की सेवा का संकल्प लिया उन्हें आश्रम में रखकर अपने हाथों से उनकी सेवा सुश्रुषा करते जड़ीबूटियों से उनका इलाज करते स्वस्थ कर उन्हें समाज के मुख्यधारा में जोड़कर यथायोचित सम्मान दिलाते जिसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में पूरे सम्मान के साथ दर्ज किया गया है। अघोरेश्वर महाप्रभु भगवान राम के ब्रह्मलीन होने के बाद भी यह पूण्य सेवा कार्य आज भी निरन्तर जारी है।अघोर ,अध्यात्म का वाम मार्ग है।अघोर सरल और सहज है।जहां कोई भेदभाव, ऊंच-नीच,घृणा नहीं जो अभेद व घृणा रहित है वही अघोर है।
पूज्य अघोरेश्वर ने समाजिक उत्थान पर विशेष ध्यान दिया:-
अघोरेश्वर महाप्रभु आशीर्वचनों के माध्यम से बहुत स्नेह पूर्वक समझाते थे कि-“देश में रूढिवादिता एवं कुप्रथाएं समाज पर छाई हुई हैं।ये कुप्रथाएं देश में अनेक धर्मों के जन्म लेने के लिए उत्तरदायी हैं।इन्हीं के कारण विदेशों के पाश्चात्य देशों के अनेक धर्म भारत में आकर प्रश्रय पाये।पूज्य श्री अघोरेश्वर ने साधुओं को,समाज में व्याप्त कुरीतियों एवं दुर्व्यवस्थाओं के उन्मूलन को अपनी साधना का अंग बनाने के लिए प्रेरित किया।वे समझाते थे कि ‘हे साधु ! जैसे अपने मकान में रोज झाड़ू लगाने की आवश्यकता पड़ती है, वैसे ही समाज में भी जो लोग भयंकर कूड़ा कर्कट और दूषित वातावरण पैदा कर रहे हैं और उनके साथ ही जो अवांछनीय तत्व हैं उनके उन्मूलन में सहयोग करो। समाज की कुरीतियों पर जिनसे प्राणियों का जीवन त्रस्त होता है, कड़ी नज़र रखो और उनके उन्मूलन के लिए प्रयत्नशील रहो।”
अघोरेश्वर महाप्रभु सुचरित्र, सदाचरण और आत्मा की पवित्रता पर बहुत महत्व देते थे।देवालयों की स्थिति और पुजारियों के आचरण से उन्हें काफी पीड़ा होती थी।बहुत दुखी होते थे।वे समझाते हुए कहते थे-*साधु!मुझे देवालयों की स्थिति देखकर घोर दुःख हो रहा है।मंदिरों, मस्जिदों, गिरिजाघरों के पुजारियों के आचरण से उनके अनुयायियों की श्रद्धा -अश्रद्धा में परिवर्तित हो रही है।इन पुजारियों, मुल्लों और पादरियों ने मंदिरों,मस्जिदों और गिरिजाघरों ने ,अपने धर्मावलंबियों-श्रद्धालुओं द्वारा यथेष्ट अर्थ धन भेंट में नहीं देने पर वे उनकी भर्त्सना करने ,उन पर कृपण इत्यादि अपशब्दों, अपमान जनक व्यंग वाक्यों की बौछार करने से भी नहीं बाज आते।इसकी बिल्कुल संभावना नहीं है, की पशु-प्रकृति के ऐसे पुजारियों इत्यादि से देवालयों को मुक्त किये बगैर इन देव मंदिरों में लोगों का विश्वास पुनर्प्रतिष्ठित हो सकेगा।सूर्य पश्चिम से उदय हो सकते हैं, ऊंट छत पर चढ़ सकते हैं, आकाश पृथ्वी पर उतर सकता है; किन्तु इन धर्मों के दम्भी पुजारियों का आचरण कदापि आदर्श नहीं हो सकता है।आने वाले युग में, हमारी भावी-पीढ़ियां, इन आदर्श विहीन व अनैतिक आचरण करने वाले पंडितों, पुजारियो ,मुल्लों एवं पादरियों को नहीं बख्शेंगी, नहीं छोड़ेंगी।
मानवता ही हमारा धर्म है –
आपने समाज को अध्यात्म का ‘अघोर ‘याने जो कठिन न हो बिल्कुल व्यवहारिक और सरल मार्ग बतलाया। आपने यह संदेश दिया कि -“ईश्वर ने कोई जाति,धर्म,समुदाय,भाषा आदि नहीं बनाया है। उसने हमें मनुष्य बना कर मनुष्यता के आचरण निमित्त इस लोक में भेजा है। यथार्थ में हमारी मूल जाति ‘मानव जाति’ है एवं हमारा धर्म “मानवता निर्वाह है” ।हम इस जाति – पांती में बंटकर, अपनी इंसानियत से अपनी मानवता से बहुत दूर चले जाते हैं।उन भावनाओं को और विचारों को हमें त्याग ही नहीं करना है ;उसे पूरी तरह से जान और जी लगाकर उखाड़ फेंकना है।हम मनुष्य हैं। मनुष्य की कोई जाति नहीं है।मनुष्य की मनुष्य ही जाति है।
सिर्फ मनुष्य बनें –
” सिर्फ मनुष्य बनें; एवं मन, वचन तथा कर्म से मनुष्यता का निर्वाह करें।हिन्दू, मुस्लिम,सीख, ईसाई, बौद्ध,जैन, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य आदि बनना आसान है;किन्तु सच्चे अर्थ में मनुष्य बनना कठिन है।इस युग तथा काल की पुकार है- कि हम अपनी मौलिक जाति’ मनुष्य जाति ‘ को भली भांति पहचानें।; एवं सचेत हो कर अपने मौलिक धर्म ‘मानवता’ का निर्वाह करें।”
अंध विश्वास को भक्ति का आधार न बनाएं-
“बंधुओं! धर्म के नाम पर अपने देश में बहुत से आडंबर हैं ,जिनकी आवश्यकता बिल्कुल नहीं है।फिर भी, दूसरों द्वारा कुछ अन्यथा सोच लेने के भय से ,तथा संकोच के चलते, उन्हें आप जबरदस्ती लादे फिर रहे हैं।ऐसे आडंबर से आपको क्षणिक राहत भले ही मिल जाये, परन्तु आप में स्थायी सुख शांति कभी नहीं आएगी।”
देवी देवता स्वर्ग में नहीं, बल्कि आपके साथ जमीन पर रहते हैं
“बंधुओं! आकाश तथा स्वर्ग के देवी देवता और भगवती-भगवान की कल्पनाओं का जमीन पर रहने वाले आदमियों के लिए क्या महत्व है ? देवी-देवता स्वर्ग में नहीं बल्कि आपके साथ जमीन पर रहते हैं। स्वर्ग तथा आकाश के देवता की बात बिल्कुल कल्पना है।स्वर्गीय देवता के पूजने से विरत हों।स्वर्गीय देवता आपके जीवन की आवश्यक सामग्रियां -जैसे आटा, चावल,पानी,नमक,सब्जी आदि कुछ भी नहीं देता है।”-(अघोरेश्वर की अनुकंपा से उद्धृत)
जब मनुष्य से मनुष्य ही नहीं खुश है तो देवता क्या खुश होगा।-
पूज्य अघोरेश्वर यथार्थ और व्यवहारिक पक्ष के साथ अध्यात्म की पवित्रता को बहुत सरल व सहज तरीके से समझाते हैं -“बंधुओं! आप आजतक जड़-मूर्ति को भगवान-भगवती मानते आये हैं।सभी जड़ को चैतन्य समझते रहे और जो चैतन्य हैं, तथा जिन प्राणियों में ईश्वर ने प्राण प्रतिष्ठा किया है–उन प्राणियों की उपेक्षा करते हैं।सज्जन और समझदार लोग ईश्वर द्वारा प्राण प्रतिष्ठित प्राणमयी प्राणी की उपासना करते हैं। देवी देवता स्वर्ग में नहीं वरन आपके साथ जमीन में रहते हैं।जिसे जीवित जागृत प्राणियों से प्रेम नहीं होता उसे मंदिर में बैठे पत्थर के देवता और मस्जिद के शून्य निराकार ईश्वर से प्रेम नहीं हो सकता।कुकृत्यों में लिप्त वयक्ति को पूजा आदि से कोई लाभ नहीं होता।शील के प्रकाश से लोक भी प्रकाशित होता है। मनुष्य चाहे तो वह देवता बन सकता है, ईश्वर से ज्यादा ऊंचा हो सकता है।मनुष्य चाहे तो पशु भी बन सकता है और तुच्छ प्राणियों की तरह अपना जीवन बिता सकता है। शिल्पकार दूसरों के लिए महल बनाता है और स्वयं झोपड़ी में निवास करता है।सुख तथा शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत करता है।वह किसी महात्मा या साधु से कम नहीं है। पूज्य अघोरेश्वर अपने आशीर्वचनों में कहते थे कि – ‘ भगवान या भगवती या ईश्वर या और कोई भी हो अपने स्थान पर, वह मनुष्य से बढ़ कर कोई नहीं। मनुष्य चाहे तो उनके जैसा हजारों गढ़ सकता है।जब मनुष्य से मनुष्य ही नहीं खुश है तो देवता क्या खुश होगा।'(अघोर वचन शास्त्र से उद्धृत)
विस्तृत लोक को अलौकिक करने वाले शीलवान साधु बिरले ही मिलते हैं।संत का ईश्वर और ऐश्वर्य से ऊँचा स्थान होता है।एक सच्चे साधु- संत के बारे में कुछ लिख पाना बहुत कठिन होता है।वे अलख होते हैं।अघोरेश्वर भगवान राम जी मानवता व कल्याण के प्रतिमूर्ति हैं।
रमता है सो कौन घट घट में-
जो समय ,काल और कर्म था उसे पूर्ण कर 29 नवम्बर 1992 को ब्रह्मलीन हो गए।महानिर्वाण के उस पल और क्षण में समूचे ब्रह्माण्ड का दृश्य अत्यंत ही अलौकिक हो उठा था। बनारस (काशी) अनुयायियों एवं भक्तगणों से खचाखच भर हुआ था।सभी के मन में एक ही भाव उठ रहा था कि अब हमारा क्या होगा?हम किनके श्रीचरणों में बैठकर अपना सुख-दुख सुनायेंगे?कौन हमारी पीड़ा हरेगा?कौन हमारी रक्षा और कल्याण करेगा?इतना असीम आत्मीय आनन्द अब हमें कहां मिलेगा,कौन देगा?
तभी अघोरेश्वर महाप्रभु की ही वाणी ढांढस बंधाती “गुरु देह नहीं प्राण है, वह सदैव तुम्हारे अभ्यन्तर में निवास करता है।रमता है सो कौन घट घट में विराजत है ,रमता है सो कौन बता दे कोई ।”
परमपूज्य ब्रह्मलीन अघोरेश्वर महाप्रभु के श्री चरणों में सादर श्रद्धानत शत शत नमन करते हुए पवित्र वाणी सर्वजन कल्याणार्थ राष्ट्रहित में सादर समर्पित है।कोटि कोटि प्रणाम।
▪️ आलेख –
• गणेश कछवाहा
[ रायगढ़ छत्तीसगढ़ ]
• संपर्क-
• 94255 72284
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