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कविता आसपास : डॉ. बीना सिंह ‘ रागी ‘
▪️ मुट्ठी भर राख
दूर क्षितिज पर सुर्ख लालिमा देखकर
भाव से भाव का हम समर्पण करें
सूरज उगते को सब ने नमन है किया
डूबते को जी अब नमन हम करें
दूर क्षितिज पर सुर्ख लालिमा___
अभिलाषाओं का कोई’ यहां अंत नहीं
छल प्रपंच छद्म से बना कोई संत नहीं
अंतर्मन का ए मन मालिन सा हू आ
शक्ति भक्ति प्रेम कर्महीन सा हुआ
हर्षिता द्वार पे आ खटखटाती रही
नवल रश्मियों से जी
आचमन हम करें
दूर क्षितिज पर सुर्ख लालिमा__
पोर-पोर अंगूरी से वक्त फिसलते गए
हाथ में काल के हम सिमटते गये
सत्यता सहजता दिव्यता परीत्याग कर
दिन रैन रैन दिन काली रात जाग कर
राह झूठ से चलो हम मुख मोड़ कर
सत्य पथ का हम अनुसरण करें
दूर क्षितिज पर सुर्ख लाली मा___
बदचलन ख्वाहिशें उफान मारती रही
सतरंगी लालसाएं तूफान लाती रही
बेदर्द धड़कने इतराते रहे
रूह निगोड़ी सांस संग मुस्कुराती रही
मुट्ठी भर राख का सब खेल है
जल अंजुरी में भर हम तर्पण करें
नीले अंबर_.
[ •डॉ. बीना सिंह ‘ रागी ‘ भिलाई छत्तीसगढ़ से हैं. • रागी जी देश – प्रदेश के विभिन्न काव्य मंचों पर अपनी रचनाधर्मी के माध्यम से निरंतर सक्रिय रहती हैं. • 50 से अधिक साझा संकलन के बाद रागी जी की पहली काव्य संग्रह ‘ शब्द समिधा ‘ प्रकाशित हुई हैं. बीना सिंह ‘ रागी ‘ ‘ छत्तीसगढ़ आसपास ‘ की नियमित लेखिका हैं.
•संपर्क : 62663 38031 ]
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