- Home
- Chhattisgarh
- कहानी : संतोष झांझी
कहानी : संतोष झांझी
🤝
गोदना
– संतोष झांझी
[ भिलाई, जिला-दुर्ग, छत्तीसगढ़ ]
नीचे सदर दरवाजे की घंटी बजी, विमला करवट लेकर कुनमुनाई—-“यह संडे के दिन सुबह सुबह कौन आ गया? सोचा था छुट्टी का दिन है आराम से उठूँगी, पर लोगों को संडे के दिन भी चैन नही।’
दुबारा घंटी सुनाई दी तो विमला तकिये से सर उठाकर चिल्लाई—“भोला ओ भोला ,कहाँ हो ?दरवाजा खोलो !
दरवाजा खुलने और सीढ़ियाँ चढने की आवाज आई! बैडरूम के दरवाजे को भोला ने बाहर से नॅक कर कहा—” मैडमजी मकान के बारे मे बात करने एक साहब आये हैं।
—“साहब कहाँ है?”
–“जी नहा रहे है।”
—“ठीक है उन्हें बैठाओ, हम अभी आते हैं। पानी चाय वाय पूछ लो।”
–“जी अच्छा। ”
मकान का अलग थलग कोने वाला पोर्शन, दो कमरे, कीचेन, लैट बाथ अब तक उन्होंने एक सरकार परिवार को दे रखा था। अभी कुछ महीने पहले वो परिवार कलकत्ता शिफ्ट हो गया। अब बच्चे नही चाहते थे उस हिस्से को फिर से किराये पर चढ़ाया जाए। चारों भाई बहन तेज आवाज मे रेकार्ड लगाकर वहीं धूम मचाये थे। अपना कैरम भी चारों वही उठाकर ले गये। बेटों के दोस्त आयें या बेटियों की सहेलियां, आजकल वहीं सारी चौकडी जमती है। उनके लिये नाश्ता हो या कोल्ड ड्रिंक भोला को वही ले लेकर दौड़ना पड़ता है।
विमला ने भी कुछ दिनों तक इस विषय में नहीं सोचा। वैसे इसके किराये के पैसो से मकान का पानी बिजली का बिल और टैक्स वगैरह आसानी से निकल जाते थे। यही सोचकर उन्होने फिर से किरायेदार रखना चाहा। वैसे भी अपनें चार बच्चों के परिवार के लिये पांच कमरे प्रर्याप्त थे। दोनों बेटियां जवान हो रहीं थी तो किरायेदार भी सोच समझकर ही चुनना था। जो जवान न हो, उसके जवान बेटे या भाई या देवर न हो। दोनो बेटे भी किशोर वय के थे, उनके हिसाब से भी परिवार में किशोर वय की लड़कियां नही चाहती थी विमला। बजाज साहब उसकी सोच पर हंसते, तो विमला तुनक कर कहती—” हाँ हाँ हंस लो अगर जरा सी ऊँच नीच हो गई तो सारा दोष झट माँ पर डाल देंगे आप सब।
बजाज साहब झट हथियार डाल देने
—“ठीक कहती हो, उस सरकार परिवार जैसा ही कोई छोटा परिवार होना चाहिये। बाल न बच्चा बस प्रौढ पति पत्नि थे?
यह सुनकर भी विमला चिढ गई। तब उसने बजाज साहब को असली बात बताई—” नाम मत लो उनका। नरक मिलेगा नरक उन्हें। ”
बजाज साहब हैरानी से मुंह ताकते रह गये। विमला ने फुसफुसाते हुए बताया—“उन्हें प्रेम प्यार से निकालने के लिये मुझे कितने पापड़ डालने पड़े, आप क्या जानें। सब को तो यही नजर आता था कि उनके घर केवल औरतों और लड़कियों का ही आना जाना था, क्यों?
–” हाँ यही देखा है मैंने। ” विमला ने भेद भरी आवाज में रहस्य खोला—“यही तो बात थी बोऊदी में। बाँझ थी, कहीँ सरकार दादा दूसरी शादी न कर ले इसलिये उन्हें खुद ही खुला खेल खेलने की छूट दे रखी थी बोऊदी ने। वो सभी सरकार दादा से मिलने आती थीं।
बजाज साहब सन्न—“क्या? ”
विमला—“यही है असली बात। बोऊदी को शक हो गया कि मैं सब जान गई हूँ। आजकल वो आँखें चुराती थी मुझ से…पर मैं आखिर तक अनजान बनने का नाटक करती रही, और किसी तरह उनसे मकान खाली करवा ही लिया।
—“मुझे तो इस बारे में कोई गुमान तक नहीं था।”
—“मै भी जानने के बाद कई दिन तक सकते की हालत मे रही।तरस भी आता था बोऊदी पर,… बेऔलाद, अनपढ़ औरत कितनी आतंकित रही होगी अपनें भविष्य को लेकर….एक छत, दो रोटी, और सुरक्षा की चाह में, पति को खुश रखनें के लिये पति को ही बाँटती रही।
विमला जब ड्राइंग रूम में दाखिल हुई उस समय बजाज साहब वहाँ मौजूद थे और अतिथि के साथ चाय पी रहे थेबजाज साहब ने परिचय करवाया।
—-“ये है मेरी वाइफ मिसेज बजाज, और आप है मिस्टर खन्ना, बिलासपुर से आये है,अपना मकान किराये से लेना चाहते हैं।
—“जी मै अजीत खन्ना, ठेकेदार हूँ। अब तक बिलासपुर मे मेरा काम चल रहा था। अब यहीं काम शुरू हो रहा है। परिवार को दूर नही रख सकता। वैसे भी अब यहीं हैड आफिस बना रहा हूँ।
—“कौन कौन हैं आपके घर में ?” विमला ने जानना चाहा।
—“जी बस पत्नि है और दो साल की बच्ची….माँ तो अब रही नहीं। ” कहते कहते लगा जैसे मिस्टर खन्ना का गला भर आया।उन्होंने चश्में के अंदर धीरे से अंगुली से आँख पोछी।
मिस्टर खन्ना की उम्र पचास के करीब लग रही थी। सांवला चेहरे पर गहरे चेचक के दाग, और एक आँख की पुतली चश्में से सफेद नजर आ रही थी। जुबान बहुत शिष्ट और व्यवहार बहुत ही शालीन था।
—“आपके घर बच्ची शायद लेट हुई है ?” मिसेज बजाज ने पूछा।
—“जी नहीं मैने शादी ही लेट की है।” खन्ना साहब मुस्कराये।
—“मेरी माँ बीमार थी, लकवा हो गया था। वो… उनकी सेवा करने के लिये मैने शादी नहीं की। वैसे उनकी बहुत इच्छा थी घर में बहू लाने की।अगर मै शादी कर लेता तो न ढंग से माँ की सेवा कर पाता न पत्नी के साथ इन्साफ कर पाता। तीन साल पहले माँ नहीं रही,…..” अजीत का गला भर्रा गया। उम्र तो नही रही थी शादी रचाने की…..पर रिश्ता आया तो…..”
अजीत की बात सुन विमला और बजाज साहब काफी देर चुप बैठे सामने वाले व्यक्ति के बारे में सोच कर अभिभूत होते रहे। कमरे में सन्नाटा छाया रहा। तीनों अपने आप में डूबे थे। अजीत शायद अभी तक अपनी माँ की यादों से उबरे नही थे। अचानक अजीत ने अपनी घडीकी तरफ देखा।
—“आपका जो विचार हो बता दे, कारण मुझे आज ही बिलासपुर लौटना होगा। वहाँ रमा और बच्ची अकेले है।”
विमला और बजाज साहब जैसे तन्द्रा से जागे—-“आप पहले घर देख लें, फिर बात करते हैं। ”
उन्हें अजीत जैसा परिवार ही चाहिये था। सूरत शक्ल चाहे जैसी हो व्यक्ति उन्हें बहुत सुलझा विचारों का लगा। पत्नि भी ठीक ही होगी। स्वभाव सही हुआ तो ठीक है नहीं तो अपनें किराये से मतलब रखेंगे।
दो बड़े बड़े हवादार कमरे, जिसमें आने वाली धूप और हवा बड़ी बड़ी खिड़कियो से आना तभी बंद करती जब या तो दरवाजे खिड़कियां बंद कर दिये जाए या उनपर मोटे और भारी पर्दे लगा दिये जाए, एकदम सड़क पर मकान, नीचे उतरते ही टैक्सी, रिक्शा, बस आसानी से उपलब्ध। धोबी से लेकर राशन तक सब कुछ नीचे उतरते ही चार कदम पर।
—-“वाह क्या घर है साहब मजा आ गया।। मै ऐसा ही घर चाहता था। मेरी सारी जरूरतें बस दो कदम पर पूरी हो सकती है। पन्द्रह सौ रूपये आपने बहुत कम कहे। मै तो इसके तीन चार हजार भी खुशी खुशी दे सकता था। क्या हवादार कीचेन है जैसे पूरा कमरा ही है।
अजीत का चेहरा खुशी से चमक रहा था—“पानी लाइट स्वीपर मिलाकर आपको दो हजार के करीब पड जाएगा।” बजाज बोले।
—“ओ कोई बात नहीं है जी, रमा तो ऐसा साफ सुथरा हवादार घर देख खुश हो जायेगी। उपर से आपके परिवार का संग साथ तो मुफ्त मे ही प्राप्त होगा।”
सारा वातावरण खुशी और हंसी से भर गया—” हम अगले इतवार आयेंगे।पगडी कितनी देनी है बता दीजिये। मै सब इंतजाम करके आया हूँ।
बजाज साहब ने विमला की तरफ देखा। विमला ने थोड़ा झिझकते हुए कहा—“अधिक नहीं बस दस हजार।
—“एकदम सही है जी।” कहकर अजीत ने अपने ब्रीफ केस से निकाल कर दस हजार की गड्डी दोनो हाथों से बजाज साहब की तरफ ऐसे बढाई जैसे कोई गिफ्ट दे रहा हो।
—“तो फिर तय रहा , हम अगले हफ्ते इतवार को आ रहे हैं। “,
—“स्वागत है जी ” मिस्टर मिसेज बजाज बोल उठे। बड़े आत्मीय माहौल मे अजीत ने विदा ली, जैसे
बरसों से परिचित हो।
रविवार को एक ट्रक और एक मैटाडोर भरकर सामान आ गया। मजदूरों ने एक एक सामान सही स्थान पर सजा दिया। खन्ना साहब भी एक कार मे पत्नि और बच्ची सहित आ पहुंचे। रमा प्रेगनेंट थी। खन्ना साहब मजदूरों से घर ठीक ठाक करवाते रहे, रमा बच्ची सहित बजाज साहब के घर पर बैठी रही। सारा परिवार फटी फटी आँखों से रमा को देख रहा था जैसे कोई अप्सरा उतर आई हो। प्रेग्नेंट होते हुए भी उसका पूरा बदन जैसे साँचे मे ढला था। गुलाबी आभा लिये दूधिया रंगत, बड़ी बड़ी खूबसूरत आँखे, घने लंबे काले बाल, छोटे छोटे सुन्दर होंठ , दाँत तो ऐसे जैसे मोती जड़े हो, सारा परिवार इस रूप को देखकर हतप्रभ रह गया।
इन्सान का मन सब से अधिक चंचल होता है। एक पल में हजारों बाते सोच लेता है। मन में हजारों प्रश्न सर उठाने लगते हैं पर हर प्रश्न का उत्तर इतना सहज सरल नहीं होता,न ही इतनी सहजता से उसे पाया जा सकता है। ऐसे ही हजारों प्रश्न बजाज परिवार को भी मथ रहे थे पर सभ्यता का तकाजा था वो चुप रहें और वक्त का इंतजार करें।
बजाज साहब की बेटी रीता ने बच्ची को देखा तो खुश होकर बोली—“हाय कितनी क्यूट है न? आंटी इसका नाम क्या है ?
रमा मुस्कराई—“पिंकी….
—” एकदम डाॅल है डाॅल, रंग भी एकदम पिंक, पिन्की नाम एकदम सही है।
—-“अरे नजर मत लगाओ, विमला ने प्यार से झिड़का….
—” आप दोनो भी तो कितनी खूबसूरत और प्यारी है।” रमाने रीता और रौनी को देखकर कहा ।
—“ओ थैक्यू आंटी, पर आपके सामनें तो सब फीके हैं।
रमाने हँसकर नजरें झुका ली। इसका मतलब रमा अपनी खूबसूरती से अनजान नही थी।
अच्छे किरायेदार आने से सारा परिवार खुश था पर एक प्रश्न रह रह कर सभी को कचोट रहा था कि
? अपनी इतनी सुन्दर बेटी को कोई इतने बदशक्ल आदमी से कैसे ब्याह सकता है? बदसूरत होने के साथ साथ दोनों मे उम्र का फर्क भी कम से कम पन्द्रह साल का होगा पर प्रेम शायद इन सब चीजों से उपर होता है। खन्ना साहब को आनें मे अगर जरा सी भी देर हो जाती तो रमा बेचैनी से छत और बालकनी में चक्कर लगाती रहती। घबराहट से उसका चेहरा आंसुओ से भर जाता। विमला आश्चर्य से यह सब देखती रहती। पति पत्नी मे मानों होड़ सी लगी रहती कि कौन किसको अधिक से अधिक सुख दे सकता है।
खन्ना साहब चाय बनाकर सुबह सुबह बिस्तर पर ही रमा को पहुंचा देते। अपनें हाथ से एक एक अंगूर साफ कर खिलाते, रोज रात को ढेरों फल लेकर घर पहुँचते। रोज नौकरानी को ढेरों हिदायतें देने के बाद ही घर से निकलते ताकी बाद मे रमा को एक गिलास पानी भी अपनें हाथ से लेकर न पीना पड़े। रविवार को छुट्टी के दिन अपने हाथ से कभी मगज, कभी पाये, कभी लीवर जैसे पौष्टिक आमिष भोजन देसी घी में पकाकर आग्रह कर रमा को अपनें हाथ से खिलाते।
बजाज परिवार ने सोचा रमा अवश्य किसी गरीब जरूरतमंद परिवार की लड़की होगी तभी यह बेमेल जोड़ी बनी पर यह भ्रम भी जल्दी ही टूट गया। जब रमा के माता पिता रमा से मिलने दिल्ली से हवाई जहाज मे आये। उनका साजो सामान शानो शौकत देख सभी दंग रह गये। दामाद तो उनके लिये मानो भगवान स्वरूप था। उनके मुंह से दामाद के नाम से केवल तारीफ ही निकलती। रमा भी हमेशा अपनें पति की तारीफ करती रहती।
–” अपनी बीमार माँ की सेवा के लिये इन्होने शादी नहीं की। सोचते थे पता नहीं पराई बेटी मेरी माँ की सेवा करेगी या नही। अपनी माँ का इन्होने एक छोटी सी बच्ची जैसा पालन पोषण किया था। पूरे दस वर्ष वो बिस्तर पर रहीं ,,उनको नहलाने कपड़े बदलनें, कंघी करनें से लेकर, खाना बनाने खिलाने तक का काम अपनें हाथ से करते थे।एक नौकरानी थी इनकी मदद के लिये, माँ को गोद में उठाकर खुद लेट्रीन की कुर्सी पर बिठाते थे, बेडपेन खुद साफ करते, और अब उन्हें हमेशा मेरी सुख सुविधाओं का ध्यान रहता है। मेरे लिये दस ड्रेस लायेगे और अपनें लिये एक।
—-“आप दिल्ली मे खन्ना साहब कलकत्ता में, यह रिश्ता कैसे जुड़ा ?” विमलाने एक दिन पूछा।
—“मेरे चाचाजी की इनसे पहचान थी। उन्होंने ही रिश्ता करवाया। गुजरांवाला पाकिस्तान से ही चाचाजी इन्हे जानते थे।” रमा बोली।
‘—–“आपलोग पाकिस्तान से आये हैं ।”
—–” हाँ, वहाँ मेरी एक बहन दंगों में मारी गई थी, वह हम सब से बड़ी थी। किसी तरह हम तीन बहनें दो भाई वहाँ से बचकर आये” रमा ने लंबी सांस ली और बहुत देर तक गुमसुम सर झुकाये बैठी रही। विमला ने उसका हाथ थाम रखा था। कुछ देर बाद रमा ने खुद को संभालते हुए कहा—-“वह सारे हादसे मैं भूल नही पाती क्या करूँ ?”
—-“बहन को क्या दंगाइयों ने….
—-” हाँ, बलवाइयो नें, सोलह साल की बहुत ही सुन्दर थी मेरी बहन, मुझ से भी अधिक सुन्दर, उस समय मुझसे बड़ी चौदह साल की, मै ग्यारह साल की, मुझसे छोटी नौ साल की, एक भाई पाँच साल का एक दो साल का था। उन्हें तो अब कुछ भी याद नहीं। ” वह कुछ देर चुप रही।
,
—–” बड़ी बहादुर थी मेरी बहन,…अचानक बलवा हुआ…. चारों तरफ मार काट मच गई… मेरी बहन स्कूल से आ रही थी, सड़क से उठाकर ले गये , एक बलवाई उससे निकाह करना चाहता था। मेरी बहन नें उस बूढे से निकाह की हामी भरदी । जब वह बूढा सो गया तो मेरी बहन ने उसी की तलवार से उसका काम तमाम कर दिया,….छुपती छुपती घर लौट रही थी …. रास्ता पता नहीं था, कबाइलियो के हाथ पड गई….जानवर बन गये थे इन्सान … लड़कियों की छाती पर पाकिस्तान जिन्दाबाद की सील दाग रहे थे…
उसनें…मेरी बहन ने सोचा होगा अब जी कर भी क्या फायदा ? वही…उपर से कूदकर अपनी जान दे दी उसनें । हिन्दू स्वयंसेवक जब उठाकर लाये तब थोड़ी जान बची थी…अगर समय पर डाक्टर मिल जाता तो
शायद बच ही जाती मेरी बहन….पर उस समय बचाने वाला डाक्टर कहाँ मिलता ? … वहाँ तो बस जल्लादों की भीड़ थी। अभी तक… वह चेहरा याद है मुझे….
—-“क्या उसकी छाती पर भी….” विमला ने पूछा।
—-” हाँ, अगर बच भी जाती तो कौन करता उससे शादी ?” रमा ने गालों तक बह आये आँसू पोछे।
—“कुछ तो मेरी बहन की तरह जान से गई, कुछ की जिन्दगी वैसे बरबाद हो गई, यह जो बंटवारे की लड़ाइया हैं उससे किसी ने कुछ नहीं पाया, बस खोया है, कहने को तो लड़ाई खतम हो जाती है ,कौन कहता है कि लड़ाई खतम हो जाती है… लड़ाई खतम होने के बाद भी जो जिन्दा बच जाते हैं, उनके जीवन की लड़ाई कभी खतम नहीं होती। पीढी दर पीढी लोग उसी आग में जलते रहते हैं। ”
—“कितने घर बरबाद हो गये, बच्चे अनाथ हो गये, जवान बिधवाओ से कैम्प भर गये,,, छोटी छोटी बच्चियों तक को नही छोड़ा,…उनकी छातियों तक मोहरें दाग दी गई। ”
—” दिल्ली में ही ऐसी हजारों काॅलगर्ल होंगी। एक तो घर द्वार जमीन जायदाद छोडकर भागना पड़ा। कमाने वालों को मार डाला, गरीब आदमी दहेज के बिना बेटियां कैसे और कहाँ ब्याहे? वो बेटियां कहाँ जाएँ जिनके शरीर दाग दिये गये थे। कइयों के नाजायज बच्चे भी थे,… उन्हें लेकर वो कहा जातीं? कौन अपनाता उन्हें ? तो…बन गई काॅलगर्ल….
—-” मेरी मौसी की शादी को अभी एक साल हुआ था…बेटा हुआ… उसदिन उसकी छठी थी…मौसा के पूरे परिवार को मार दिया …बच्चे को उछाल कर भाले की नोक पर ले गये । मौसी भीड़भाड़ और अंधेरे मे वहाँ से भाग निकली। कई दिन बाद गाय भैंस की खुरली मे पडी मिली, पन्द्रह साल तक उसी दहशत मे गुम रही, कभी कुछ नहीं बोली, चीखी नहीँ…बहुत इलाज करवाया,,,, उसी तरह गुमसुम पन्द्रह साल बाद मरी।
विमला ने देखा रमा अपनी ही रौ में एक के बाद एक घटनायें बताती जा रही है, जैसे सब कुछ उसकी आँखों के सामनें घटा हो, चेहरा आंसुओ से तर, हिचकियाँ बंधी हुई । विमला डर गई। उसने इशारे से रीतू से एक गिलास पानी मंगवाकर रमा को पिलाया और आया की गोद से पिन्की को लेकर रमा की गोद मे दे दिया ताकी रमा का ध्यान बच्ची की तरफ बँट जाए, फिर भी रमा को संभलने में काफी समय लगा।
रात खाना खाने के बाद विमला पति के साथ छत पर बैठी छिटकी चाँदनी को निहार रही थी। रात के करीब ग्यारह बज रहे थे । उन्होंने देखा अजीत दबे पाँव उनकी तरफ चला आ रहा है,। आते ही फुसफुसाकर बोला—-“साॅरी टू डिस्टर्ब…..
—-“अरे आइये, आइये क्या बात है ? बजाज बोले। अजीत ने झिझकते हुए धीमी आवाज मे कहा—“जी मैं यह जानना चाहता था कि आज दिन मे रमा के साथ आपकी किस तरह की बातचीत हुई थी ? असल में रमा…..
—“पाकिस्तान मे हुई कुछ घटनाओं पर बात हो रही थी….. क्यों ? क्या हुआ ?
,,,
अजीत नें कुछ देर सोचने के बाद कहा—-” फिर वह लगातार वहाँ की बाते बताती रही होगी,और रोती रही होगी।
—-” हाँ, वह तो जैसे उन बातों से बाहर ही नहीं आना चाहती थी… बड़ी मुश्किल से मैने उसे नार्मल किया….पानी पिलाया…. पिन्की को उसकी गोद में दे दिया।”
—“मैं यही कहना चाहता था आपसे…” अजीत झिझका। —-उन घटनाओं को घटे तेईस चौबीस साल हो चुके हैं पर इसके दिलो दिमाग पर उन घटनाओं का इतना गहरा असर है कि यह उस चर्चा से ही बीमार हो जाती है। पहले तो इसे दौरे पडते थे । नार्मल होंने में कई दिन लग जाते थे। पिन्की के पैदा होने के बाद से अब दौरे तो नहीं पड़ते, पर पूरी रात जागती रहती है, गुमसुम सी हो जाती है। प्रेगनेन्सी के कारण नींद की या कोई दूसरी दवा भी नही दे सकते।” अजीत का गला भर्रा गया।
—-“आप लोगों से मैं एक फेवर चाहता था।”
—-” हाँ, हाँ कहिये।” विमला ने कहा।
—“आप सब से एक रिक्वेस्ट है …..अगर कभी वो फिर से वही बातें स्टार्ट करे तो आप लोग विषय बदल । दें या बहाने से वहाँ से उठ जाएँ। वह अक्सर खुद ही उस विषय पर आ जाती है। “अजीत बोला।
—“हाँ मैने भी नोट किया, वह उन बातों मे डूब सी जाती है।”-
—-“अभी मै उसे अपने संघर्ष के दिनो की बातें, पिन्की के भविष्य की प्लानिंग, आने वाले बच्चे के बारे में बातें करते हुए बड़ी मुश्किल से सुलाकर आया हूँ। ”
—” अच्छा हुआ आपनें बता दिया, आइन्दा मै उसे उस विषय पर आने ही नहीं दूंगी ।” विमला ने अजीत को आश्वस्त किया।
—-” बहुत छोटी थी, दस ग्यारह साल की, उस छोटी सी उम्र में इतना कुछ देखा है उसनें कि अभी तक एक बुरे स्वप्न की तरह उसे परेशान करता रहता है।” अजीत चिन्तित स्वर मे बोले।
—-“समय लगेगा, पर धीरे धीरे सब ठीक हो जायेगा।”बजाज साहब ने तसल्ली दी।
दोनों परिवारों ने एक दूसरे के विषय मे बहुत कुछ जाना । एक दूसरे को पसंद भी बहुत करते थे दोनो परिवार , पर बीच बीच में वही प्रश्न सर उठा लेता कि आखिर इस बदसूरत उम्र दराज आदमी से रमा की शादी कैसे और क्यो हुई ?? आजकल मन कौन देखता है ? इन्सान अच्छा है, सदाचारी है केवल इसीलिये कोई अपनी इतनी सुन्दर, पढी लिखी, मार्डन बेटी की शादी कैसे कर सकता है? रमा और उसके पति का प्रेम, एक दूसरे के प्रति इतना समर्पण देखने वालों को और भी चकित कर देता।
खन्ना परिवार में बेटा पैदा हुआ तो दोनो परिवार खुशियों मे डूब गये। दिल्ली से रमा के माँ बाप भाई और छोटी बहन ढेरों गिफ्ट लेकर आये। विमला ने मालिश वाली का इंतजाम करवा दिया, जो रमा और बच्चे की दोनो समय मालिश और सिंकाई करने आती थी।
उसदिन विमला के पांव और कमर मे बहुत दर्द था।उसनें दाई से कह दिया कि आज मेरी भी वापसी मे जरा मालिश करके जाना।
विमला के हाथ पांव मे मालिश करते करते दाई ने कहा—” अच्छा मालकिन, एक बात बतावा, इ पिन्की के माई के छाती मे ऊ गोदना जैसा का बना है ? ऊ वैसे हमेशा छाती ढांक कर रखती है, आज बचवा को दूध पिआवत रहे त पाछु से आकर ओकर बिटिया अंचरा खीच दिहिस त छाती उघड़ गईल,,,हम देखे गोल गोदना जैसा उसका छाती मे कुछु गुदा है कोन भाषा मे कुछु लिखा जैसा है।
दाई बताती जा रही थी और विमला गुमसुम पत्थर की मूरत बनी चुपचाप सुन रही थी। कुछ कहने लायक अब शब्द ही कहाँ थे उसके पास। अब कहने को रहा भी क्या था ? सारे प्रश्नों के उत्तर तो दाई की बातों से मिल चुक थे ।
•••••
• संपर्क-
• 97703 36177
🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝