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साहित्य सृजन संस्थान रायपुर : कवि सम्मेलन और सम्मान : डॉ. राजेंद्र पाटकर ‘स्नेहिल’ और शायर जावेद नदीम को ‘साहित्य सृजन श्रेष्ठ काव्य पाठ सम्मान’, रसीदा ‘राशि’ को ‘काव्य श्री सम्मान’ और सुषमा बग्गा को ‘आदर्श श्री सम्मान’ से सम्मानित किया गया
👉 मंचासीन अतिथि
‘छत्तीसगढ़ आसपास’ [रायपुर वृंदावन सभागार से रपट, डॉ. नौशाद अहमद सिद्दीकी ‘सब्र’] : ‘साहित्य सृजन संस्थान’ के तत्वावधान में साहित्यिक सम्मान समारोह के मुख्य अतिथि थे दक्षिण पूर्व मध्यरेल [यात्री यातायात] बिलासपुर के प्रबंधक बसंत कुमार शर्मा, अध्यक्षता ‘साहित्य सृजन संस्थान’ के अध्यक्ष वीर अजीत शर्मा और विशिष्ट अतिथि कवियित्री व कथाकारा संतोष झांझी थीं.
इस अवसर पर डॉ. राजेंद्र पाटकर ‘स्नेहिल’ और शायर जावेद नदीम को इस वर्ष का ‘साहित्य सृजन काव्य पाठ सम्मान’ से नवाजा गया. कोरबा की श्रीमती रसीदा ‘राशि’ को ‘काव्य श्रीसम्मान’ और सुश्री सुषमा बग्गा को ‘आदर्श श्रीसम्मान’ से सम्मानित किया गया.
▪️ काव्य संध्या में अंचल के कुछ प्रमुख रचनाकारों द्वारा काव्य पाठ-
👉 काव्य पाठ करती हुई संध्या श्रीवास्तव
👉 काव्य पाठ करती हुई शायरा फरीदा शाहीन
एक कला संसार में/केवल माँ को ज्ञात/बिन भाषा बिन बोल के/समझे मन की बात/खुशियाँ हमको बाँट दी/कष्ट सहे खुद मौन/पिता सरीखा देवता/हो सकता है कौन- बसंत कुमार शर्मा
जब राह न रहे कोई राहें बनाइये/क्या भरोसा जिंदगी का हंसिये हंसाइये/ये करवटें समय की मौसम की ये रवानी/आकाश से उतरता गंगा जमुना का पानी/बाहों में भरके मौसम अब गुन गुनाइये – संतोष झांझी
सफर में चल पड़ा हूँ मैं/तुम्हें जिंदगी मुबारक हो/मेरे इस घर के गुलशन…! /उसकी खुशबू मुबारक हो – डॉ. आशीष नंदा
वैसे कहने को तो अपना ही कहा है सबने/और हर रोज नया ज़ख़्म दिया है सबने/मेरी आँखों में तुझे देख रही है दुनिया/तेरे चेहरे पे मेरा पढ़ा है सबने – शायर जावेद नदीम
जो ताने देते हैं अब लोग/मेरा दिल हँस-हँस सहता है/मैं तेरा हूं यही मुझसे/अब हर कोई कहता है –डॉ.राजेंद्र पाटकर स्नेहिल
अब ये दिल मैं दुखाना नहीं चाहती/रिश्ते झूठे निभाना नहीं चाहती/रेत पर महफिलें तुम सजाते रहो/नींव भ्रम की बनाना नहीं चाहती –ममता खरे ‘मधु’
किया था जो वादा निभाओ तो जाने/हमें दिन तुम अच्छे दिखाओ तो जाने/सियासत बहुत कर ली दिनों धरम की/फ़ज़ा एकता की बनाओ तो जाने –नूरु स्सबाह ‘सबा’
पल छिन घटते इस जीवन में/मन से कबीर हो जाऊँ मैं/ढाई आखर प्रेम का पढूँ/प्रिय विरह पीर हो जाऊँ मैं –विजया ठाकुर
कहलाती थी सोने की चिड़ियां/जिसकी संस्कृति बलवान है/अमरगाथा इतिहास में जिसकी/वो हिंद मेरा महान है – रेणु तेजेंद्र साहू
सभी मतलब परस्तों और कुछ फ़ नकार लोगों से/खुदा महफूज़ रक्खे सबको बद किरदार लोगों से/जो तेरे मुंह पे तेरे हैं/जो मेरे मुंह पे मेरे हैं/मुझे नफ़रत है दुनिया के इन्हीं मक्कार लोगों से – आलिम नकवी
शंखनाद हो ऐसा की/अब धरती अंबर डोल उठे/भारत के जयकारों से/अब विश्व समूचा बोल उठे –पूर्वा श्रीवास्तव
पावन रूप लगे मनभावना/राम सिया भजते अब जाना/नाम जपे शुभ मंगल हो/सब प्राण बसे/प्रभु है जग माना – रसीदा बानों ‘ राशि’
मित्र सुदामा मिलने आये/सुनकर कृष्णा भी अकुलाये/नंगे पग ही दौड़ लगाये/मैं हूँ राजा यह बिसराये – पल्लवी झा ‘रूमा’
कहाँ गया बचपन/बीत गया बचपन/याद आता है बचपन/मन ही मन याद कर लेते हैं बचपन/बस हँसते-खेलते बीता हमारा बचपन/काश! फिर लौट आए सुनहरा बचपन/मन के बच्चे को जगाती है बचपन/याद आता है। बचपन/बीते दिनों की खट्टी-मीठी/याद कराता है बचपन – सुषमा बग्गा
हसीं फिजाओं में रहकर भी/दिलकशी न मिली/जलाके शहर भी/लोगों को/रौशनी न मिली/ये शह्य नाम को है/बस वफ़ा परस्ती का/मिले तो दोस्त मगर/खुए दोस्ती न मिली – उमेश कुमार सोनी ‘नयन’
एक धुन गुन रहा है मन/सपने बुन रहा है मन/रिश्तों की चार दिवारी में/अपनों को ढूंढ रहा है मन – श्वेता शर्मा
जल रहा है कुछ/रसोई में रोटी जल रही है/या पूजा का दीपक जल रहा है? किसी ने बीड़ी जलाई है/या बाहर कोई फटाखा जला रहा है? आखिर किस चीज का है, ये धुँआ? – रुनाली चक्रवर्ती
सिर्फ इक मैं ही नहीं, इश्क में हारा निकला/जिस को देखो, वो यहाँ दर्द का मारा निकला/पढ़ने में तेज था बेटा, वो विलायत को गया/जो था कमजोर, बुढ़ापे का सहारा निकला. – आरडी अहिरवार
नहीं कोई भी अपने साथ/बेईमान रखता हूँ/तभी तो सामने सबके/मैं सीना ताने रखता हूँ. – राजेंद्र रायपुरी
ख़ुद को बेहद उदास रखते हो/यानी हर किसी से आस रखते हो/रखना है सबको पास तुम्हें/क्या ख़ुद को अपने पास रखते हो? – अनिल राय ‘भारत’
मैं ख़ुद को लिखता हूँ, पढ़ता हूँ, फाड़ देता हूँ/संभल के बोलूं तो लहज़ा बिगाड़ देता हूँ/मुझे अजीब सा लगता है और कुछ होना/सो, अपने चेहरे के चेहरे उघाड़ देता हूँ. – सुदेश मेहर
कुछ आँसू पराई पीर पर बहा कर देखना/तन ऋषिकेश मन हरिद्वार हो ही जाएगा. – योगेश शर्मा ‘ योगी’
घर के हर कोने में अम्मा/चुप-चुप डोला करती है/शहर गया है बेटा जब से/छुप-छुप रोया करती है. – विजया पांडे
आइना हो तो मेरा वही अक्स दिखाओ/मुझमें है जो जिंदा वही शक्स दिखाओ/तुम ना बात करो, दिखावे के किरदारों की/मेरा अपना है जो बस वही नक्श दिखाओ. – अमृतांशु शुक्ला
भेद भाव हम ना रक्खें बस दिलों के दरमियाँ/काम आएं हर किसी के मुश्किलों के दरमियाँ/दिल के अरमान तो छुपाऊँ कैसे/आतिशे शौक से/दामन को बचाऊँ कैसे/कोई तकदीर मेरे ज़हन में/आती ही नहीं/वो तो रूठे हैं/कसम खा के/मनाऊं कैसे. – हाजी रियाज खान गौहर
किसको दूँ आवाज़/किसकी राह देखूं/शहर-ए-उल्फत में/कोई अपना नहीं है/दर बदर का होके, आखिर रह गया ‘सब्र’/जिसके सर माता-पिता का साया नहीं है. – डॉ. नौशाद अहमद सिद्दीकी ‘सब्र’
सपने सच करने की खातिर/वो खटती रहती है/दिन-रात, खटती रहती है/दिन-रात, लुटाती है/प्यार दुलार देखने, बच्चे की मुस्कान, वो उठाती है/दुःख अपार/भविष्य शिशु का गढ़ते- गढ़ते, करती है जीवन कुर्बान/बूंद-बूंद रक्त से सींच, करती है/नव जीवन निर्माण/माँ तुझे प्रणाम. – संध्या श्रीवास्तव
उसको नफ़रत है/हमें प्यार/कोई बात नहीं/अपना-अपना है/ये किरदार/कोई बात नहीं/भाई- भाई को लड़ाएगी सियासत/कब तक? दरमियाँ उठ गई दीवार/कोई बात नहीं. – सुखनवर हुसैन
इन आँखों में नया ख्वाब सजाने की जिद्द किए बैठी हूँ/जो नहीं है मेरा/उसे अपना बनाने की जिद्द किए बैठी हूँ/ये वक्त जो हर पल लेता है/इंतेहाँ मेरा/उस वक्त को आजमाने की/जिद्द किए बैठी हूँ.
– फरीदा शाहीन
👉 सभागार में उपस्थित रचनाकार
कार्यक्रम का संचालन ‘साहित्य सृजन संस्थान’ के सचिव योगेश शर्मा ‘योगी’ और ‘साहित्य सृजन संस्थान’ महिला प्रकोष्ठ की अध्यक्ष श्रीमती ममता खरे मधु ने किया.
[ प्रस्तुति एवं रिपोर्ट : डॉ. नौशाद अहमद सिद्दीकी ‘सब्र’ ]
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