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अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर विशेष : शारीरिक मानसिक आध्यात्मिक चेतना जगाने की विधि है योग- डॉ. नीलकंठ देवांगन
योग सिर्फ आसन नहीं, प्राणायाम नहीं, ध्यान नहीं , व्यायाम नहीं, वरन तन, मन और आत्मा के बीच संतुलन स्थापित करने का विज्ञान है। एक ऐसा विज्ञान जिसके माध्यम से शरीर की ऊर्जा को नियंत्रित और संतुलित किया जाता है। एक ऐसा अभ्यास है जिसमें हल्का व्यायाम और ध्यान तो है, साथ ही ध्वनि, श्वसन और मुद्राओं का भी महत्व है। यह शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक चेतना के लिए आवश्यक है। इससे चित्त की चंचलता मिटती और परमात्मा से विलग हुए जीवात्मा को परमात्मा में लीन कर देती, मिलन करा देती। योग का लक्ष्य है वेदना से सर्वथा मुक्त करा देना। शारीरिक स्वास्थ्य की पद्धति है हठ योग और मानसिक उत्थान, संतुलन की पद्धति है राजयोग। यह योग मन पर अधिकार कर लेता और मन पर अधिकार हो जाना ही सर्वस्व की प्राप्ति है, दासता ही सर्वस्व पतन है।
योग ही एक मात्र साधन है जो मानसिक विकारों से मुक्ति देने में समर्थ है | मन और शरीर को स्वस्थ रखने, आत्मा को शक्तिशाली बनाने के लिए योग आवश्यक है | योग का सरल अर्थ है – शरीर और व्यक्तित्व को अनुशासित करना, उसे एक उद्देश्य के लिए तैयार करना | मनुष्य जीवन का लक्ष्य होना चाहिए – आत्मा की निकटता | योग से शरीर और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं | स्वास्थ्य ठीक रहेगा तो बाकी सभी अपने आप सही होती चली जाती हैं | जीवन में दोनों का संतुलन होना चाहिए | जीवन को संयम- नियम, विविक- वैराग्य से भरकर अत्माभिमुख बनाने योग सहज विधि है | अनंत विश्व चेतना के साथ तार जोड़ने का मार्ग योग है | आध्यात्मिक साधना का मार्ग खुल जाने से जीवन आनंद से भर जाता है |
आज संसार में मानव की समस्त चेष्टायें सुख सुविधायें प्राप्त करने की ओर है | हर मनुष्य चाहता है कि उसे स्थायी सुख शांति मिले | उसके सारे यत्न पुरुषार्थ इसी के प्राप्ति के लिए होता है, मगर उसे कहां मिलता है? वास्तविक सुख शांति स्थूल पदार्थों में नहीं, विषयों में नहीं , बल्कि मनुष्य की अपनी आत्मा में है | उसे अंतर्मुख होना होगा, अपनी आत्मा को पहचानना होगा और समस्त सुखों और शांति के केंद्र परमात्मा से योग युक्त होना होगा | इसके लिए योग जरूरी है | योग का पर्याय शांति है |
योग का शाब्दिक अर्थ है- जोड़, संबंध या मिलन |
योग का आध्यात्मिक अर्थ है- आत्मा का जोड़, संबंध या मिलन परमात्मा के साथ |
प्रत्येक व्यक्ति का किसी न किसी व्यक्ति, वस्तु, वैभव से योग होता है | जिस प्रकार अलग होने को ‘ वियोग ‘ कहते हैं, इसी प्रकार मिलन को ‘ योग ‘कहा जाता है |
यद्यपि परमात्मा कार्य कारण भाव से दूर हैं, देश कालातीत हैं, वाणी से परे हैं परंतु शुद्ध, सूक्ष्म और एकाग्र मन के साथ योग के द्वारा उनका साक्षात्कार किया जा सकता है | आत्मा भी तो एक अति सूक्ष्म दिव्य चैतन्य ज्योति बिंदु है | आत्मा का परम पिता परमात्मा के साथ संबंध या मिलन ही योग है | इस मिलन द्वारा आत्मा को परमात्मा से सर्व प्रकार के गुणों और शक्तियों की प्राप्ति होती है | अपनी छुपी हुई आध्यात्मिक शक्तियों को जगाने की विधि ‘ योग ‘ है |
योग के आठ चरण होते हैं –
1 – यम , 2 नियम , 3 आसन , 4 प्राणायाम 5 प्रत्याहार , 6 धारणा , 7 ध्यान , 8 समाधि
योग द्वारा विकारों पर जीत पाकर अष्ट शक्तियों की प्राप्ति तथा दिव्य गुणों की धारणा की जा सकती है | स्वस्थ दीर्घायु जीवन जिया जा सकता है |
योग हमारे देश की प्राचीन विधि है | पूरा विश्व इसके महत्व और लाभ को जानकर आज योगाभ्यास की ओर उन्मुख प्रेरित हुआ है |
योग धर्म नहीं विज्ञान है परमात्मा तक पहुंचने का सोपान है
आधि व्याधि को ठीक रखने का निदान है
तन मन आत्मा को जोड़ने का विधान है
यौगिक जीवन ही मानसिक स्वास्थ्य की उपयोगी समाधान है | पूर्ण यौगिक अवस्था न केवल सभी मनोविकारों से छुटकारा दिलाती है, बल्कि दिव्य गुणों का अभिवर्धन एवं विकास भी करती है | यौगिक जीवन ही स्वस्थ मन दे सकता है | योग से इसी जन्म में दुख से निवृत्ति और सुख, शांति, संतोष, उन्नति जैसे सुपरिणाम की प्राप्ति होती है। आध्यात्मिक शक्तियों को जगाने की विधि है योग। योग भगाए रोग। योग से रोग मुक्त रहा जा सकता है ।
▪️ डॉ. नीलकंठ देवांगन
▪️ संपर्क : 84355 52828
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