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समीक्षा : ‘जंगलगाथा’ कृतिकार लोकबाबू : समीक्षक सुशील यादव
अरण्य गाथा जंगल गाथा लोक बाबू द्वारा रचित कहानी पढ़ने का अवसर मिला.
लोकबाबू की रचना सीधी सरल भाषा में है बिना लागलपेट के लिखी हुई रचना अपना मारक प्रहार करती है उसकी प्रथम तीन कहानियों में मैंने पाया कि,
जंगल गाथा नाम की पहली कहानी का नायक केशव मानसिक रूप से कमजोर है, वह घर से भागकर नागा साधुओं के संगत में जंगल पहाड़ों में निकल जाता है | सामान्य इंसान से नागा बाबा बनने की प्रक्रिया क्या हुई , यह इस कहानी का सार है |
आंचलिक बोली का इस कहानी में प्रयोग पात्र की ग्राह्यता को बढ़ावा देती है |
-जंगल से भाग आए अशांत लोगों का ठिकाना था शांति नगर मगर इस शांतिनगर को लोग दूसरे नाम से जानने लगे और वो था मुखबिर मोहल्ला ।
इसी मोहल्ले का एक पात्र कोसा होडी को पुलिस नक्सली लड़ाई में मारे गए सिपाही की बंदूक मिल जाती है | वह नकली नक्सली के रूप में लोगो से रहबरी – वसूली करता रहता है | नायिका सुकारो से उसे प्रेम हो जाता है |
उसकी कमाई कम होने लगती है या एक्सपोज होने का खतरा दीखता है नक्सल ज्वॉइन करने की सोच लेता है |
अपने साथ सुकारो को शादी के आश्वासन दे मना लेता है|
नक्सली उनको भेदिया की निगाह से पहले दूरी बनाए रखते हैं , कोसा होडी नक्सल सरदार से उनकी और सुकारो की शादी करवा देने को कहता है | सरदार उसको परिवेक्षा के एक साल गुजर लेने को कहता है |
कारण कि शादी के बाद जवान का है सारा जोर जोरू के इर्द-गिर्द हो जाता है |
६ महीने बाद वे नक्सल छोड़ भाग जाते हैं | पुलिस केम्प में कोसा होडी को सरेंडर सम्मान स्वरूप सिपाही बना दिया जाता है | उसकी मुखबिरी और निशानदेही पर नक्सल का असलहा जखीरा बरामद होता है | सुकारो को एक अलग केंद्र में डाल दिया |
सहायक आरक्षक कोसा होडी अपने थाना प्रधान से सुकारो के साथ शादी की बात कहता है | प्रधान जो उसकी मुखबिरी के बाद छापेमारी से विभागीय वाहवाही पता है ,बोलता है अगले सप्ताह बड़े अधिकारी का दौरा है उसमे तुम्हारी शादी बड़े धूमधाम से होगी |
कोसा होडी प्रसन्नता के शिखर पर अपने यार दोस्तों को ले पास की पहाड़ी में मुर्गा दारु की बढ़ी पार्टी करता है | प्रसन्नता के अतिरेक में अपनी बन्दूक ट्रायल करता है , अन्य साथी भी बन्दूक चलते हैं |
अब नक्सल इलाके में बंदूक का चलना –चलाना केवल एक माने देता है , वो कि मुठभेड़ |
नक्सल अपनी पोजीशन , पुलिस अपनी पोजीशन , जिधर से गोली चली उसी पर दोनों ओर का टारगेट बन जाता है |
कहानी के पात्र कोसा होडी का अंत हो जाता है |
नायिका का क्या हश्र हुआ , आप इत्मीनान से लोक बाबू लिखित मुखबिर मोहल्ले का प्रेम पढ़ें |
जंगल से भाग आए अशांत लोगों का ठिकाना था शांति नगर मगर इस शांतिनगर को लोग दूसरे नाम से जानने लगे और वो था मुखबिर मोहल्ला ।
इसी मोहल्ले का ,नायक कोसा होडी नकली नक्सली के नाम पर लोगो से वसूली करता रहता है नायिका सुकारो से उसे प्रेम हो जाता है बस्तर इलाके में एक ऐसी जगह है मुखबिर को दे रखी है उसी इलाके से नक्सली भयभीत खाते हैं नायक को सा होडी कम होने लगती है तो वह सोचता है क्यों न नक्सल को कोई ज्वॉइन कर लिया जाए और इसी सोच के साथ वह साथ लेकर नक्सली कैम्प में जुड़िया आता है नक्सली उनकी परीक्षा लेते हैं कहीं ये भेदिया तो नहीं नक्सलियों से वे रिकवर अनुरोध करता है कि उसकी ओर शु की शादी करवा दें नक्सली बोलते है कि अभी 1 साल तक परीक्षा दे तब हम सोचेंगे शु कारों
-एक अन्य कहानी स्कूटर, माध्यम वर्गी परिवार के दैनिक जीवन के उहापोह को बयां करती है | बहुत मनोयोग से अपने बेटे के लिए ख़रीदे मोटर सायकल को किन परिस्थितियों में दहेज़ न चाहने वाले समधी परिवार के हवाले करने की नौबत आन पड़ी ?
बहुत मनोयोग से लिखी ये लोकबाबू कृति आपको जरुर हिला देगी |
सामान्य घटनाओं में कहानी कहाँ छुपी होती है , यह इस कहानी को पढने के बाद हटात मालुम पड़ता है |
चोर अंकल , दद्दू का बेटा,जश्न, होशियार आदमी ये सब कहानियां हमारे आस-पास की दैनिक हरकतों से उठा कर उकेरी गई हैं |
मार्मिकता इनका पहला केंद्र बिंदु है , सामाजिक सरोकार परिधि में है |
आज के नैनिक पतन के दौर में ऐसी कहानी का पढ़ा जाना पाठको का सौभाग्य है | कभी टी व्ही, मोबैल से समय बच सके तो अपनी आदत में पुस्तक पढना शुमार करें | पुराना दिन कहीं दूर नहीं गया जो वापस लौट के न आ सके.
• संपर्क –
• लोकबाबू : 99770 30637
• सुशील यादव : 70002 26712
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