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शायर राकेश गुप्ता ‘रूसिया’ की काव्य कृति ‘धरोहर इक ग़ज़ल नामा’ का विमोचन : लेखनी से सुधारने संवारने की गुजारिश का भाव लेखन को ऊंचाई पर ले जाता है- आचार्य डॉ. महेशचंद्र शर्मा : डॉ. परदेशीराम वर्मा ने कहा- साहित्य की गंगा कभी सूखती नहीं
‘छत्तीसगढ़ आसपास’ [ डॉ. नौशाद अहमद सिद्दीकी ‘सब्र’ ]
दुर्ग : 10 नवम्बर :
शायर राकेश गुप्ता ‘रूसिया’ की काव्य कृति ‘धरोहर इक ग़ज़ल नामा’ का विमोचन विगत दिनों दुर्ग के एक निजी होटल में में सम्पन्न हुआ.
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में आचार्य डॉ महेश चन्द्र शर्मा ने कहा कि रचनाकार ने लेखन पूर्व अपनी लेखनी से सुधारने संवारने की गुजारिश की है रचनाओं के प्रति यही समर्पण भाव काव्य कृति को ऊंचाई पर ले जाता है। कवि राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के समाज से हैं उनकी परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं। सामाजिक जनों से उन्होंने दुर्ग भिलाई में मैथिलीशरण गुप्त की प्रतिमा स्थापित करने का आह्वान किया। मुख्य अतिथि डॉ परदेशी राम वर्मा ने कहा कवि को पढ़कर आश्वस्त हुआ कि साहित्य की गंगा कभी सूखती नहीं है। यह शेर कि -‘वहम है तेरी शोहरत के सब कायल हुए, उन्हीं पेड़ों से लिपटे सांप जो संदल हुए’ कवि ने जीवन की हकीकत को बयां किया है। समाजसेवी, राजनेता ब्रजेश बिचपुरिया ने कहा कि रचनाकार ने अपनी शायरी में प्रेम और दर्द के साथ सामाजिक विषयों पर भी शेर कहे हैं यही बात रचना को लोगों से जोड़ती है । कवि विजय गुप्ता ‘मुन्ना’ ने मौन क्यों महफ़िल की जरूरत हो गई को विस्तार देते कहा रूसिया की ग़ज़ल ‘कुछ ज़िन्दगी ने बदला कुछ हम बदल गये’ भाव है कि तकलीफों के बाद इंसान खुद को बदलकर नवसृजन कर सकता है, दर्द जीवन का स्थाई भाव है जिस पर कवि की गहरी पकड़ है।
दीप प्रज्जवलन से शुभारंभ व यश दलवी की सरस्वती वंदना पश्चात हिन्दी साहित्य भारती की उपाध्यक्ष डॉ हंसा शुक्ला ने स्वागत भाषण में कहा ‘धरोहर-इक ग़ज़ल नामा’ दिल की गहराइयों में उतर कर लिखी गई शायरी है, युवा हृदय की भावनाओं को बड़ी खूबसूरती से जिया गया है, यह एक संजोकर रखने योग्य किताब है। डॉ नौशाद सिद्दीकी ‘सब्र’ ने समीक्षा आलेख में बताया किताब में कुल 108 ग़ज़लें हैं, जो ग़ज़लकारों के लिए रौशनी बनेगी,मेरे घर का पता जब ढूंढते आई मुसीबत, न रिश्ता गैरों से कोई न अपना काम आया कोड किया। संस्था सचिव चंद्रकांत साहू ने अध्यक्ष बलदाऊ राम साहू का आलेख कि शायर ने परम्परागत ग़ज़लों के शिल्प को बरकरार रखा है,का वाचन किया। कवि राकेश गुप्ता ‘रूसिया’ जो कि अपेक्स बैंक के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं ‘धरोहर- इक ग़ज़ल नामा’ की रचना यात्रा का जिक्र करते हुए अपनी ग़ज़ल ‘उलझने सुलझाने में कुछ इस तरह उलझे रहे, सामने थी जिन्दगी हम हाथ ही मलते रहे, लौटकर आओगे तुम रौशन किये थे रहगुज़र, बुझ गये सारे चरागाँ बस हमीं जलते रहे’ सुनाईं।
मंच संचालन शेरों-शायरी के साथ डाॅ इसराइल बेग ‘शाद’ ने किया। शाल श्रीफल मोमेंटो से अतिथियों के सम्मान उपरांत कार्यक्रम का समापन हुआ। कार्यक्रम में साहित्य जगत के सुशील यादव, ताम्रकार, मंजूलता शर्मा, बी के वर्मा, शुचि भवि, राम नारायण सुनगरिया, शायर यादव, कवि श्रीवास्तव, सीता गुप्ता, शशि प्रभा गुप्ता, गायिका संगीता सिजारिया, गहोई वैश्य समाज के अध्यक्ष पवन ददरया और उपाध्यक्ष आशीष गुप्ता सहित बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।
• समारोह की कुछ झलकियाँ-
👉 •कृतिकार राकेश गुप्ता ‘रूसिया’
👉 आचार्य डॉ. महेशचंद्र शर्मा
👉 • डॉ. परदेशीराम वर्मा
👉 • कृति का विमोचन करते हुए मंचासीन अतिथि
👉 • आलेख पाठ करते हुए डॉ. नौशाद अहमद सिद्दीकी ‘सब्र’
👉 •सभागार में उपस्थित बुद्धिजीवी
[ रपट व फोटो सौजन्य डॉ. नौशाद अहमद सिद्दीकी ‘सब्र’ ]
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