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पर्व विशेष लेख : साल भर के एकादशियों में देवउठनी एकादशी है सबसे श्रेष्ठ व खास- डॉ. नीलकंठ देवांगन
हमारे पर्व त्यौहारों में एकादशी तिथि का बहुत महत्व है, चाहे वह शुक्ल पक्ष का हो या कृष्ण पक्ष का। ये सभी अपने आप में खास होती हैं। एकादशी को उपवास किया जाता है और भगवान श्री हरि विष्णु की आराधना की जाती है। यह उपवास बलवर्धक, शांति प्रदाता व संतति दायक है। जो एकादशी का व्रत करते हैं, श्री विष्णु का अभिनंदन करते हैं, वे समस्त दुखों से मुक्त होकर जन्म मरण के चक्र से छूट जाते हैं। एकादशी को श्रेष्ठ व्रत माना जाता है। जैसे सर्पों में शेषनाग, पक्षियों में गरुड़, यज्ञों में अश्वमेध यज्ञ, नदियों में गंगा, देवों में भगवान विष्णु, मनुष्यों में ज्ञानवान मनुष्य श्रेष्ठ हैं, वैसे ही समस्त व्रतों में एकादशी व्रत श्रेष्ठ है।
इस व्रत को करने से मनुष्य को जीवन में सुख, शांति, समृद्धि की प्राप्ति होती है। मृत्यु पश्चात विष्णु के धाम का वास प्राप्त होता है। एकादशी के महात्म्य को सुनने मात्र से सहस्त्र गौदान का पुण्य फल प्राप्त होता है। इस दिन उपवास करने, रात्रि जागरण करने वाला श्री हरि विष्णु की अनुकंपा का पात्र बन जाता है। इस दिन अन्न का त्याग करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। इस व्रत से जीवन को अनुशासित करने की सीख मिलती है।
नियम – एकादशी व्रतधारियों को नियमों का पालन करना पड़ता है, तभी व्रत का फल प्राप्त होता है।पहले दिन से इसका पालन करना जरूरी है। दशमी, एकादशी और द्वादशी तीनों दिन नियमों में रहना चाहिए। मांस, मदिरा, लहसुन, प्याज, मसूर की दाल निषिद्ध है। भोग विलास से दूर रहें, ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें, झूठ न बोलें, क्रोध न करें, कटु वचन न बोलें। दशमी के दिन सात्विक हल्का भोजन करें। सुबह ब्रह्म मूर्ति में उठ स्नानादि से निवृत्त हो व्रत का संकल्प लें, व्रत को पूरा करने दृढ़ रहें। व्रत के दिन साफ वस्त्र पहन भक्ति भाव में रहें। मंदिर में जाकर गीता पाठ करें या पुरोहित पंडित से गीता सुनें। द्वादश मंत्र ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ का जाप करें। विष्णु के सहस्त्र नाम का पाठ करें, राम, कृष्ण, नारायण का नाम जपें। इस दिन किसी का दिल न दुखाएं, किसी को नाराज न करें। शुद्ध सकारात्मक भाव रखें। रात्रि जागरण कर कीर्तन करें। किसी चोर, निंदक, दुराचारी, पाखंडी से बात न करें। एकांत में एकाग्र चित्त हो श्री हरि का स्मरण करें, उन्हें याद करें। यदि भूलवश ऐसे लोगों से बात हो जाय तो भगवान सूर्य नारायण का दर्शन कर विष्णु के सहस्त्र नाम का जप कर क्षमा मांगे।
इस दिन दिन बाल न कटवाएं, नाखून न काटें, झाड़ू न लगाएं। चींटी आदि सूक्ष्म जीव की मृत्यु का भय रहता है। इस दिन अधिक न बोलें, हो सके तो मौन रहें, बोलना हो तो धीरे बोलें, कम बोलें, मधुर बोलें। इस दिन दान का विशेष महत्व है किंतु किसी का दिया हुआ अन्न आदि ग्रहण, सेवन न करें।
व्रत खोलते समय शुद्धता पवित्रता का ख्याल रखें। भगवान को याद करते भोग लगाएं, फलाहार करें। केला, आम, सेव, अंगूर, अनार , बादाम, आदि अमृत फलों, मेवा, तुलसी दल का भोग लगा, सेवन कर व्रत तोड़ें। गाजर, गोभी, पालक, हल्का, कुलफा का साग न खाएं।
प्रकार – एकादशी दो प्रकार की होती है –
1 संपूर्णा , 2 विद्धा
संपूर्णा – संपूर्णा एकादशी में केवल एकादशी तिथि होती है। अन्य किसी तिथि का उसमें मिश्रण नहीं होता।
विद्धा – यह दो प्रकार की होती है –
पूर्व विद्धा – जिस एकादशी में दशमी मिश्रित हो, उसे पूर्व विद्धा एकादशी कहते हैं। यह एकादशी दैत्यों का बल बढ़ने वाली होती है।
पर विद्धा – द्वादशी मिश्रित एकादशी को पर विद्धा एकादशी कहते हैं। यही एकादशी सर्वदा ही ग्रहण करने योग्य होती है। इसलिए व्रती को पर विद्धा एकादशी ही रखनी चाहिए। इसी से भक्ति में वृद्धि होती है। दशमी मिश्रित एकादशी से पुण्य क्षीण होते हैं।
वर्ष में पड़ने वाली सभी एकादशियों के अलग अलग नाम हैं –
पौष कृष्ण एकादशी – सफला एकादशी
पौष शुक्ल एकादशी – पौष पुत्रदा एकादशी
माघ कृष्ण एकादशी – षट्तिला एकादशी
माघ शुक्ल एकादशी – जया एकादशी
फाल्गुन कृष्ण एकादशी – विजया एकादशी
फाल्गुन शुक्ल एकादशी – आमलकी एकादशी
चैत्र कृष्ण एकादशी – पाप मोचनी एकादशी
चैत्र शुक्ल एकादशी – कामदा एकादशी
बैशाख कृष्ण एकादशी – वरुथिनी एकादशी
बैशाख शुक्ल एकादशी – मोहिनी एकादशी
जेठ कृष्ण एकादशी – अपरा एकादशी
जेठ शुक्ल एकादशी – भीमसेनी एकादशी
आषाढ़ कृष्ण एकादशी – योगिनी एकादशी
आषाढ़ शुक्ल एकादशी – देव शयनी एकादशी
सावन कृष्ण एकादशी – कामदा एकादशी
सावन शुक्ल एकादशी – श्रावण पुत्रदा एकादशी
भादों कृष्ण एकादशी – जया एकादशी
भादों शुक्ल एकादशी – पद्मा एकादशी
क्वांर कृष्ण एकादशी – इंदिरा एकादशी
क्वांर शुक्ल एकादशी – पापांकुशा एकादशी
कार्तिक कृष्ण एकादशी – रंभा एकादशी
कार्तिक शुक्ल एकादशी – देव उठनी एकादशी
अगहन कृष्ण एकादशी – उत्पन्ना एकादशी
अगहन शुक्ल एकादशी – मोक्षदा एकादशी
चार बड़े एकादशी – 1 निर्जला एकादशी (जेठ शुक्ल)
2 विजया एकादशी (फाल्गुन कृष्ण)
3 पाप मोक्षणी एकादशी (चैत्र कृष्ण)
4 देव उठनी एकादशी (कार्तिक शुक्ल)
सावन पुत्रदा एकादशी एवं पौष पुत्रदा एकादशी को संतान प्राप्ति के लिए समान माना गया है।
देव शयनी एकादशी – आषाढ़ शुक्ल एकादशी को देव शयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्णु चार माह क्षीर सागर में शेषनाग की शैय्या पर शयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल देव उठनी एकादशी को जागते हैं। सृष्टि का कार्यभार संभालते हैं।
देव उठनी एकादशी ( निर्जला व्रत) – कार्तिक शुक्ल एकादशी देव उठनी एकादशी के दिन निर्जला व्रत रहते, विष्णु स्तुति, तुलसी महिमा का पाठ व व्रत करना चाहिए। इस दिन तुलसी एवं शालिग्राम का विवाह रचाया जाता है। पूर्ण विधि विधान से बाजे गाजे के साथ तुलसी के बिरवे की शालिग्राम के फेरे एक सुंदर मंडप के नीचे किए जाते हैं। जिन दंपत्तियों के संतान नहीं होते, वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करें। इस महादान में अपनी आहुति अवश्य देवें कन्या दान का पुण्य फल पाएं।
छत्तीसगढ़ी में इसे जेठउनी एकादशी कहते हैं। जेठ माने बड़ा। जेठ शब्द ज्येष्ठ का अपभ्रंश है। यह सभी एकादशियों में बड़ा माना जाता है। सबसे श्रेष्ठ एवं सबसे खास होता है। इस दिन श्री हरि विष्णु चौमासा के योग निद्रा से जागते हैं और सृष्टि का संचालन पालन करते हैं। देव शयनी एकादशी से रुके शुभ व मंगल कार्य इस दिन से फिर शुरू हो जाते हैं। नई जागृति आ जाती है।
उत्पन्ना एकादशी – इस दिन भगवान के शरीर से एकादशी उत्पन्न हुई थीं। इस तिथि पर जो व्रत उपवास, जागरण करते, उनको अक्षय पुण्य मिलता और समृद्धि प्राप्ति होती है।
एकादशी से जुड़ी कई पौराणिक प्रासंगिक कथाएं हैं। जो नियम पूर्वक व्रत करते, कथा सुनते उन्हें इस व्रत का पुण्य फल अवश्य मिलता है। इसका केवल धार्मिक महत्व ही नहीं, मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी यह महत्वपूर्ण होता है।
• डॉ. नीलकंठ देवांगन
• संपर्क : 8435552828
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