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- ‘मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य है – एक शाम साहित्य के नाम’ : डॉ. बीना सिंह रागी के संयोजन में साहित्यिक विचार-विमर्श काव्य गोष्ठी नव वर्ष में यादगार रहा : मुख्य अतिथि रहे साहित्यिक चिंतक समाजसेवी कैलाश बरमेचा जैन ने कहा कि ‘हम हैं तो भाषा है, हम होंगे तो भाषा में होंगे’
‘मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य है – एक शाम साहित्य के नाम’ : डॉ. बीना सिंह रागी के संयोजन में साहित्यिक विचार-विमर्श काव्य गोष्ठी नव वर्ष में यादगार रहा : मुख्य अतिथि रहे साहित्यिक चिंतक समाजसेवी कैलाश बरमेचा जैन ने कहा कि ‘हम हैं तो भाषा है, हम होंगे तो भाषा में होंगे’
👉 • आयोजन के बाद फोटो सेशन का एक दृश्य
‘छत्तीसगढ़ आसपास’ [19, जनवरी 2025 : स्थान- जोन 2, भिलाई : रिपोर्टिंग डॉ. नौशाद अहमद सिद्दीकी ‘सब्र’]
‘एक शाम साहित्य के नाम’ की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार उजियार सिंह पवार ने की. मुख्य अतिथि थे उद्योगपति व समाजसेवी कैलाश बरमेचा जैन और विशिष्ट अतिथि थे – पुलिस अधिकक्ष सीआईडी,कवि नरेंद्र कुमार सिक्केवाल, अंतर्राष्ट्रीय शायर डॉ. रौनक जमाल और ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ ग्रुप के एडिटर-इन-चीफ प्रदीप भट्टाचार्य. स्वागत भाषण चर्चित कवयित्री डॉ. बीना सिंह रागी और कुशल संचालन रायपुर से पधारे संजय शर्मा ने की.
प्रारंभ में अतिथियों ने माँ सरस्वती की पूजा अर्चना की एवं सरस्वती वंदना श्रीमती रुनाली चक्रवर्ती, बलजीत कौर और श्रीमती माला सिंह द्वारा सामूहिक रूप से किया गया.
👉 • कैलाश बरमेचा जैन और अन्य अतिथि सरस्वती पूजन करते हुए…
👉 • सरस्वती वंदना करती हुई माला सिंह, बलजीत कौर और रुनाली चक्रवर्ती
डॉ. बीना सिंह रागी ने स्वागत भाषण देते हुए बोली कि-
▪️ • ‘एक शाम साहित्य के नाम’ कार्यक्रम की संयोजिका डॉ. बीना सिंह रागी स्वागत भाषण देते हुए…
‘एक शाम साहित्य के नाम’ की सूत्रधार पतिश्री डॉ. ए.के.सिंह के बिना संभव नहीं था. इस आयोजन के लिए मैं आज के समारोह के सभी अतिथियों कैलाश बरमेचा जैन,उजियार सिंह पवार,नरेंद्र कुमार सिक्केवाल,डॉ. रौनक जमाल और प्रदीप भट्टाचार्य का हृदय से स्वागत करती हूँ कि मेरे एक छोटे से सादर आमंत्रित पर आप ने काव्य शाम की शोभा बढ़ाये. उपस्थित सभी कवि-कवयित्रीयों का भी पुष्प गुच्छ देकर स्वागत की, डॉ. रागी ने.संचालक संजय शर्मा का भी स्वागत किया डॉ. दम्पति ने.
डॉ. रौनक जमाल ने आयोजन की प्रशंसा की और चुनिंदा कुछ शेरो-शायरी, ग़ज़ल पढ़कर सुनाए-
👉 • डॉ. रौनक जमाल
अर्ज है कलाम से पहले/मुस्कुरा दो सलाम से पहले/बस इतनी सी दुवा दे दीजिये/थक ना जाऊँ मुकाम से पहले…
नरेंद्र कुमार सिक्केवाल ने आयोजन के संदर्भ में बोले कि रचनाकारों को कविता सिर्फ पढ़ना ही नहीं, सुनना भी चाहिए. साहित्य सभा की गरिमा इसी में है. उन्होंने एक-दो गंभीर कविता का पाठ भी किया-
👉 • नरेंद्र कुमार सिक्केवाल
उजियार सिंह पवार ने अपने उद्बोधन में कहा कि डॉ. बीना सिंह रागी प्रतिमाह ऐसे काव्य कुंभ किया करें. कुछ कविता का पाठ भी किए-
👉 • उजियार सिंह पवार
नीरज को थाम जो सामने सरिता है.
सबके मन को बांध ले वो कविता है.
कैलाश बरमेचा जैन ने मुख्य आसंदी पर अपने उद्बोधन में कहा कि-
ऐसे आयोजन से रचनाकारों को लिखने की प्रेरणा मिलती है. आयोजक को बहुत-बहुत बधाई. कविता जल्दबाजी की जगह नहीं, धीरज का मुकाम है. हम हैं तो भाषा है, हम होंगे तो भाषा में होंगे. मेरी शुभकामनाएं रचना सृजन के सदा है और रहेगी.
प्रदीप भट्टाचार्य ने कहा कि-
आजादी के पहले साहित्य का अर्थ होता था,अभिव्यक्ति की आजादी. आजादी के पहले साहित्य आजादी के लिए याने ‘सत्ता’ परिवर्तन के लिखा जाता था. आज का साहित्य सत्ता को बचाने के लिए लिखा जा रहा है. रचनाकारों के कलम में वो ताकत होनी चाहिए जो दीवार/पीलर को भी छेद कर दे. ‘खोजता तुझे था, जब मंदिरों मस्जिदों में, तू खोजता मुझे था तब दीन के वतन में.
▪️ उपस्थित प्रमुख रचनाकार, जिन्होंने अपनी-अपनी प्रतिनिधि रचनाओं का पाठ किया, वे हैं-
• डॉ. बीना सिंह रागी
माँ भारती पुकारती/है आज लल कारती/उबाल हो शिराओं में/खून यही चाहिए/रुद्ध हो अवरुद्ध हो/पर भाव विशुद्ध हो/फ़ना हो वतन पर/जनूं यही चाहिए/रण भेरी हुँकार हो/या शंख की पुकार हो/गगन को भेद डालें/धुन यही चाहिए/जन गण राष्ट्रगाण/जन जन करें मान/कंठ कंठ गीत गुन/गुन गुन यही चाहिए.
• बलजीत कौर [रायपुर]
पावन-पावन माटी है अपनी/ये हिंदुस्तान हमारा है/आन-बान और शान है अपनी/इसका ध्वज तिरंगा है.
• रुनाली चक्रवर्ती [रायपुर]
आजादी के लिए हमारी/सालों चली लड़ाई थी/खूब लड़ी मर्दानी वो तो/झांसी वाली रानी थी/ वंदे मातरम्.. वंदे मातरम्..
• किशन केवलानी [रायपुर]
टूट कर बिखर गए सारे/सपने, एक छोटी सी आँधियों से/वादा था, ताउम्र साथ मिलकर चलने का जमाने से/अब भी दिल में, तेरे कशिश है, मेरे नाम की/वरना यूँ ही नहीं चक्कर लगाते,सुबह- शाम मेरी गली के…
• नीता कम्बोज ‘शीरी’
सत्य अहिंसा प्यार की बातें
करते नहीं भ्रष्टाचार की बातें
• माला सिंह
बाबुल तेरे ख्वाबों का मैं जो आसमां हूँ/तो फिर से कहो ना, मैं ही परिंदा, मैं ही उड़ान हूँ.
• नीलम जायसवाल
करूँगी माफ कब तक/मैं यशो दा लाल के जैसे/मुसीबत जो मिले मुझको/सदा भूचाल के जैसे/मेरी मजबूरियाँ देखी नहीं/ देखी है जीवटता/कटेंगे सर तुम्हारे भी/सुनो शिशुपाल के जैसे.
• सत्यवती शुक्ला
पेशे से वकील सत्यवती शुक्ला ने आधुनिकता के अंधी दौड़ में शामिल अपनी कविता ‘यथार्थ’ में
व्यक्त करते हुए पाठ की.
• ठाकुर दशरथ सिंह भुवाल
अक्षर का नक्काश कलम की स्याही/भावों का विन्यास/कलम की स्याही/कागज पर ये फैल, बिखर जब जाए/कर के सत्यानाश, कलम की स्याही
• रियाज खान गौहर
साथ मिलता रहे आपका रात- दिन/बस यही मांगता हूँ दुआ रात-दिन/हम तो करते हैं यारों वफ़ा रात-दिन/हम से रहते वो फिर भी खफ़ा रात-दिन
• रामबरन कोरी ‘कशिश’
औरों को जाने क्या-क्या तोहफ़ा दिया गया/हम थे गरीब, हमको तो टरका दिया गया/सब लोग पी रहे थे, अंगुर की शराब/मुझको तो ठर्रा दे के बहला दिया गया.
• ऋतु कमल मिश्रा
अभी कोशिश में हूँ/पूरी मेहनत और कशिश से/सीखता हूँ कुछ हालात की धूप से/कुछ अश्कों की बारिश से
• व्ही. नाथ
हम बूंद नहीं वह जल की/जो आँसू बनकर बह जाये/हम अविरल धारा हैं जल की/जो बन प्रलय फिर छा जाये.
• डॉ. यशवंत ‘यश’ सूर्यवंशी
झूका देती है, तिरंगे की शान
ऐ जवान, ऐ जवान.
• ओमवीर करन
फर्क बहुत है तेरी और मेरी तालीम में
तूने उस्तादों से सीखा है और मैंने हालातों से.
• बृजेश मल्लिक
पिता उफनती नदी की नाव
पिता बड़गद के पेड़ की छाँव.
• डॉ. यशवंत ‘यश’ सूर्यवंशी
झूका देती है, तिरंगे की शान
ऐ जवान, ऐ जवान.
• वीरेंद्रनाथ सरकार
माँ अब मुझे हर मोड़ पर तेरी पंख की जरूरत नहीं/मुझे अपना छाता खोलना आ गया/तू जहाँ है, वहीं पर खुश रह/तेरे बेटे को उड़ना आ गया.
• प्रदीप कुमार पाण्डेय
आजादी कब मिल पाती है/बिना खड़क बिन ढ़ालों के/आजादी तब मिली हमें/जब काल बने हम कालों के/आजादी की दुल्हन केवल जान लुटाकर मिलती है/शीश काटकर मिलती है या शीश कटाकर मिलती है.
• डॉ. इकबाल खान ‘तन्हा’
बेसबब बढ़ी दूरियाँ/सोच के पछतानी तो होगी/तन्हाई के आलम में उसे/मेरी याद आती तो होगी/उसे एहसास है मेरी/बे इंतिहा मुहब्बत का/’तन्हा’ रह न सकूँगा मैं/सोच के सिसक जाती तो होगी.
• डॉ. नौशाद अहमद सिद्दीकी ‘सब्र’
नया साल भरे दामन आप सबका/जो हर तरफ गुंजता अमन का कलाम हो/न हो किसी को दर्द न हो किसी को गम/मुस्कुराओ खुशियों से लिपट/जो गमगीन शाम हो.
लगभग 4 घंटे तक चली ‘एक शाम साहित्य के नाम’ का कुशल संचालन संजय शर्मा ने किया. आभार व्यक्त ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ के संपादक प्रदीप भट्टाचार्य और आयोजन आभार डॉ. ए. के. सिंह ने किया.
▪️ आयोजन की कुछ प्रमुख सचित्र झललियाँ-
👉 मंचस्थ अतिथि {बाएँ से} प्रदीप भट्टाचार्य, कैलाश बरमेचा जैन, डॉ. बीना सिंह रागी, उजियार सिंह पवार और नरेंद्र कुमार सिक्केवाल
👉 • संचालन करते हुए संजय शर्मा
👉 डॉ.बीना सिंह रागी का सम्मान करते हुए {बाएँ से} डॉ.ए.के.सिंह, बृजेश मल्लिक, प्रदीप भट्टाचार्य, डॉ. बीना सिंह रागी और डॉ. नौशाद अहमद सिद्दीकी ‘सब्र’
👉 प्रदीप भट्टाचार्य ने कलम देकर कलमकार डॉ. बीना सिंह रागी का अभिवादन किया
👉 • डॉ. बीना सिंह रागी द्वारा प्रदीप भट्टाचार्य का पुष्प गुच्छ देकर स्वागत करते हुए
👉 डॉ. दम्पति द्वारा कैलाश बरमेचा जैन का स्वागत करते हुए
👉 संयोजक द्वारा उजियार सिंह पवार का स्वागत करते हुए
👉 डॉ. रौनक जमाल का अभिवादन करते हुए
👉 डॉ. बीना सिंह रागी द्वारा नरेंद्र कुमार सिक्केवाल का अभिनंदन करते हुए
👉 • अतिथियों के साथ रचनाकार
[ • रपट और फोटो सौजन्य डॉ. नौशाद अहमद सिद्दीकी ‘सब्र’ ]
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