• Chhattisgarh
  • 10 फरवरी भगवान श्री विश्वकर्मा प्रकाटय दिवस पर विशेष : भगवान श्री विश्वकर्मा माहात्म्य – डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’

10 फरवरी भगवान श्री विश्वकर्मा प्रकाटय दिवस पर विशेष : भगवान श्री विश्वकर्मा माहात्म्य – डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’

2 months ago
417

वैदिक साहित्य ने सृष्टि का कर्ता भगवान विश्वकर्मा को माना है, उनके अनेक रूप बताए जाते हैं- दो बाहु वाले, चार बाहु एवं दस बाहु वाले तथा एक मुख, चार मुख एवं पंचमुख वाले। भगवान श्री विश्वकर्मा ने सदैव कर्म को ही सर्वोपरि बतलाया है। यह सर्वविदित है कि धन- धान्य और सुख-समृद्धि की अभिलाषा बाबा विश्वकर्मा की पूजा करने से पूरी होती है। पौराणिक साहित्य में उल्लेख है कि प्राचीन काल में जितनी राजधानियां थी, प्राय: सभी भगवान विश्वकर्मा द्वारा ही बनाई गई थीं। यहां तक कि इन्द्रलोक, नर्क लोक, ‘स्वर्ग लोक’, रावण की ‘लंका’, ‘द्वारिका’, ‘हस्तिनापुर’ धर्मराज युधिष्ठिर का राजभवन, शिव का दिव्य रथ,अर्जुन की ध्वजा सहित अनेक देव स्थल , पुष्पक विमान,भवनों, कर्ण का कुण्डल, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र, शंकर भगवान का त्रिशूल और यमराज का कालदण्ड तथा विभिन्न देवताओं के दिव्य अस्त्र एवं शस्त्र भगवान विश्वकर्मा द्वारा ही निर्मित किए गए । बिना भगवान विश्वकर्मा की सहायता के देव लोक एवं पृथ्वी लोक में कोई भी कार्य सफल एवं पूर्ण नहीं हो पाता।सुदामापुरी की तत्क्षण रचना ,ब्रह्मांड, पाताल एवं संपूर्ण विश्व की रचना भगवान विश्वकर्मा ने की है जिसका उल्लेख वेद एवं पुराणों में मिलता है। भगवान विश्वकर्मा अनेक नामों से जाने जाते हैं किसी भी एक का स्मरण करने से दरिद्रता का नाश होता है, अभावों से मुक्ति मिलती है एवं मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं।भगवान विश्वकर्मा जी की माता का नाम भुवना हैं जिसके कारण उन्हें भौवन विश्वकर्मा भी कहा जाता हैं। उनके प्रसन्न होने पर ही इन्द्र देव वर्षा करते हैं।भगवान विश्वकर्मा सर्वशक्तिमान, सर्वगत एवं सर्वव्याप्त हैं। वे समस्त ब्रह्मांडों एवं लोकों का निर्माण क्षणभर में कर देते हैं। सृष्टि का संपूर्ण रहस्य उन्हें ज्ञात है। प्रलय होने पर संपूर्ण विश्व को ख़ुद में विलुप्त कर लेते हैं। भगवान विश्वकर्मा द्वारा रची गई सृष्टि ब्रह्मा द्वारा रची गई मानी जाती है। जब विश्वकर्मा सृष्टि की रचना करते हैं तब ब्रह्मा कहलाते हैं, क्योंकि ब्रह्मा एवं विश्वकर्मा दोनों ही सृष्टिकर्ता का रूप हैं। एक कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ में सर्वप्रथम ‘नारायण’ अर्थात साक्षात विष्णु भगवान सागर में शेषशय्या पर प्रकट हुए। उनके नाभि-कमल से चर्तुमुख ब्रह्मा दृष्टिगोचर हो रहे थे, ब्रह्मा के पुत्र ‘धर्म’ तथा धर्म के पुत्र ‘वास्तुदेव’ हुए। कहा जाता है कि धर्म की ‘वस्तु’ नामक स्त्री से उत्पन्न ‘वास्तु’ सातवें पुत्र थे, जो शिल्पशास्त्र के आदि प्रवर्तक थे। उन्हीं वास्तुदेव अष्ठम वसु प्रभास की भुवना नामक पत्नी से विश्वकर्मा उत्पन्न हुए। पिता की भांति विश्वकर्मा भी वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य बने। भगवान विश्वकर्मा का जन्म ऋषि कुल में हुआ था। भगवान विश्वकर्मा के पाँच पुत्र – मनु, मय, त्वष्टा, दैवज्ञ (विश्वज्ञ) एवं शिल्पी नामक हुए। जो पंच पुत्र एवं पंच विधाता के नाम से सुविख्यात हैं। मनु-लोहे के, मय-काष्ठ के, त्वष्ठा-ताम्र धातु के, शिल्पी-पाषाण स्थापत्य के एवं दैवज्ञ-स्वर्ण धातु के अधिष्ठाता थे। भगवान विश्वकर्मा की पाँच पुत्रियाँ – सिद्धि ,बुद्धि (रिद्धि), उर्जस्वती , संज्ञा एवं पद्मा थीं। इन पाँचों में से दो सिद्धि और बुद्धि का भगवान श्री गणेश से विवाह हुआ।उनके लक्ष्य (शुभ) और लाभ नामक दो पुत्र हुए।ऊर्जस्वती श्री शुक्राचार्य को, संज्ञा सूर्य को एवं पाँचवी कन्या पद्मा का विवाह मनु के साथ हुआ। भगवान विश्वकर्मा और उनके पाँचों पुत्रों ने विश्व को अभियांत्रिकी के वो आयाम दिए हैं जो आज भी वैज्ञानिकों एवं अभियंताओं की समझ से परे है। किसी भी निर्माण एवं अनुष्ठान से पहले भगवान विश्वकर्मा की पूजा मात्र से वह कार्य सफल एवं संपूर्ण होने की भावना जागृत हो जाती है। निर्माण कार्य में वास्तु शास्त्र का दोष नियमित विश्वकर्मा पूजन से दूर हो जाता है।देवताओं द्वारा उपयोग किए जाने वाले पुष्पक विमान का निर्माण ब्रह्मा जी की प्रेरणा से भगवान विश्वकर्मा ने किया था। आज सार्वजनिक रूप से पूरे विश्व में इनकी पूजा होती है। भगवान विश्वकर्मा के वंशजों एवं भक्तों को कभी भीख मांगते नहीं देखा गया। जो लोग अपने धर्म और कर्म पर विश्वास करते हैं माँ लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है। संसार में प्रलय का आना एवं उसका पुनः जीर्णोद्धार होना विश्वकर्मा भगवान की मर्ज़ी के बगैर नहीं होता। भगवान विश्वकर्मा की महत्ता स्थापित करने वाली एक कथा बहुत प्रचलित है। इसके अनुसार वाराणसी में धार्मिक व्यवहार से चलने वाला एक रथकार अपनी पत्नी के साथ रहता था। अपने कार्य में निपुण था, परंतु विभिन्न जगहों पर घूम-घूम कर प्रयत्न करने पर भी भोजन से अधिक धन नहीं प्राप्त कर पाता था। पति की तरह पत्नी भी पुत्र न होने के कारण चिंतित रहती थी। पुत्र प्राप्ति के लिए वे साधु- संतों के यहां जाते थे, लेकिन यह इच्छा उसकी पूरी न हो सकी। तब एक पड़ोसी ब्राह्मण ने रथकार की पत्नी से कहा कि तुम भगवान विश्वकर्मा की शरण में जाओ, तुम्हारी इच्छा पूरी होगी और अमावस्या तिथि को व्रत कर भगवान श्री विश्वकर्मा माहात्म्य को सुनो। इसके बाद रथकार एवं उसकी पत्नी ने अमावस्या को भगवान विश्वकर्मा की पूजा की, जिससे उन्हें धन-धान्य और पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और वे सुखी जीवन व्यतीत करने लगे। देश के कई हिस्सों में इस पूजा का काफी महत्व है। हम अपने प्राचीन ग्रंथो, उपनिषद एवं पुराण आदि का अवलोकन करें तो पायेगें कि आदि काल से ही भगवान विश्वकर्मा शिल्पी अपने विशिष्ट ज्ञान एवं विज्ञान के कारण ही न मात्र मानवों अपितु देवगणों द्वारा भी पूजित और वंदित है। हमारे धर्मशास्त्रों और ग्रथों में विश्वकर्मा के पांच स्वरुपों और अवतारों का वर्णन है. विराट विश्वकर्मा, धर्मवंशी विश्वकर्मा, अंगिरावंशी विश्वकर्मा, सुधन्वा विश्वकर्मा और भृंगुवंशी विश्वकर्मा। विश्वकर्मा वैदिक देवता के रूप में मान्य हैं। उनको गृहस्थ जैसी संस्था के लिए आवश्यक सुविधाओं का निर्माता और प्रवर्तक माना गया है। वह सृष्टि के प्रथम सूत्रधार कहे गए हैं। विष्णुपुराण के पहले अंश में विश्वकर्मा को देवताओं का देव कहा गया है तथा शिल्पावतार के रूप में सम्मान योग्य बताया गया है। यही मान्यता अनेक पुराणों में आई है। जबकि शिल्प के ग्रंथों में वह सृष्टिकर्ता भी कहे गए हैं। स्कंदपुराण में उन्हें देवायतनों का सृष्टा कहा गया है। कहा जाता है कि वह शिल्प के इतने ज्ञाता थे कि जल पर चल सकने योग्य खड़ाऊ तैयार करने में समर्थ थे। उनके संदर्भ में कुछ धार्मिक ग्रन्थों का उल्लेख दृष्टव्य है –
* किंस्विदासो दधिष्ठानमाख्म्मण कर्मात्स्त्रत्कथासीत ।
यतो भूमिजनयन् विश्वकर्मा विद्या मौणोन्महिन विश्वचक्षा ( ऋग्वेद)
* आहूय विश्वकर्माणां कारयमास सदारम ।
मंडपं च सुविस्तीर्णा वेदिकावि मनोहरम ।।
अनेक चुक्षणर्चित नानाश्चार्य समन्वितम् ।।
स्थावर अंगम सार्व उद्दशन्तैमैनहिरम् ।।
जंगम विजितन्यत्र स्थावेरणां विशेषत।
जंगमेन च तत्रा सीज्जितम् सथावरमेवहि ।।
( शिव पुराण )
* विश्वकर्मा हः यज्ञनिष्ट देव आदिद्द गन्धवेदि अभवद द्वितीय / तृतीय पिता जनिर्तोधीनामपां गर्भ व्यदधात्पुरुत्रा (यजुर्वेद )
* त्वष्टा नौ दैव्यंवच पर्जन्यो ब्राह्मणस्पति ।
पुत्रे भ्राति भिरदितिर्नु पातु तो दुष्टर त्रामणवच।। (सामवेद)
* अर्थवणव वैदणु प्रभाव विश्वकर्मण।
तदहते प्रवक्ष्यामि ऋणु त्वबै षडानन ।। (अथर्ववेद)
कि बहुत्रते न यत्स्वर्गे यतपातालेयदत्र च।
* अति लोकोत्तर कर्म सत्सर्व वेतस्पमि स्वयम्।।
विश्वेषां विश्वकर्माणि विश्वेषु भुवशेषु च।
* यत्तो ज्ञस्यसि तन्नाम विश्व कर्मेति डनध।। (स्कंद पुराण)
भगवान श्री विश्वकर्मा के अर्थ , महिमा और देव होने के प्रमाण को शास्त्रों में उल्लेखित निम्नलिखित श्लोक,सूक्त एवं मंत्रों के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है ।तथा –
* यो विश्वं सर्वकर्म क्रियामाणस्य स विश्वकर्मा: अर्थात जो एकमात्र ब्रह्म परमात्मा समस्त संसार की उत्पत्ति से लेकर प्रलय के साथ समस्त कर्म करने की योग्यता रखता है उस परमपिता परमेश्वर को ‘ विश्वकर्मा ‘ कहा जाता है।
* परब्रह्म विश्वकर्मा को ही सर्वदृष्टा, सर्वपालक, सर्वश्रेष्ठ औऱ सर्वस्तुत्य पिता कहा है। वे परमात्मा ही विश्वपति, विश्वरूप, नियामक, पालक, सभी यज्ञों के भोक्ता , स्वामी तथा धाता-विधाता कहे गए हैं। यथा –
विश्वकर्मा विमना आद्विहाया धाता विधाता परमोत संदृक् / तेषामिष्टानि समिषा मदन्ति यत्रा सप्तऋषीन्पर एकमाहुः ॥ (ऋग्वेद मंडल -१०, सूक्त -८२, मंत्र -२)
अर्थात – वो महान विश्वकर्मा जिसका समस्त जग को निर्माण करने का कार्य है और जो अनेक प्रकार के विज्ञान से युक्त ,समस्त पदार्थों में व्याप्त ,सबका धारण पोषण करनेवाला एवं रचने वाला, सबको एक समान देखने वाला , सबसे उत्तम जो है और जो परमात्मा अद्वितीय है वैसा कोई और नहीं है।
* विद्वान लोग कहते हैं वो सप्तऋषियों से भी ऊंचे स्थान पर स्थापित है और उनकी अभिलाषाओ को हव्यान्न द्वारा पूर्ण करते हैं। विश्वकर्मा परमात्मा ही विष्णु , कृष्ण ,वैकुंठ, विश्वात्मा , पुरुषोत्तम भगवान हैं। यथा प्रमाण – विश्वकर्मनमस्तेस्तु विश्वात्मा विश्वसंभव।
विष्णो विष्णो हरे कृष्ण वैकुंठ पुरुषोत्तम ॥-(महाभारत शांतिपर्व युधिष्ठिर उवाच अध्याय-४३ श्लोक – ५)अर्थात – तुम ही विष्णु, विष्णु हो, तुम ही हरे कृष्ण हो, वैकुंठ हो , तुम ही पुरुषोत्तम हो, तुम ही विश्वात्मा हो और जगत को उत्पन्न करने वाले हों । इससे हे विश्वकर्मा आपको नमस्कार है।
* देवाचार्य देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा के कुल का शास्त्रीय प्रमाण एवं उनका दिव्य स्वरूप – बृहस्पतेस्तु भगिनी वरस्त्री ब्रह्मचारिणी ।योगसिद्धा जगत्कृत्स्नमसक्ता विचरत्युत ।प्रभासस्य तु सा भार्या वसूनामष्टमस्य तु ॥विश्वकर्मा महाभागस्तस्यां जज्ञे प्रजापतिः।कर्ता शिल्पसहस्राणां त्रिदशानां च वार्धकिः॥
– (विष्णुपुराण/प्रथमांश:/अध्याय -१५,श्लोक – ११८- ११९) अर्थात – देवगुरु बृहस्पति की बहन वरस्त्री (भुवना), जो ब्रह्मचारिणी थी और सिद्ध योगिनी थी तथा अनासक्त भाव से समस्त भूमंडल में विचरती थी, वो आठवें वसु प्रभास की धर्मपत्नी हुई। उन्हीं के पुत्र रूप में सहस्त्रों शिल्पों के कर्ता ,देवताओं के शिल्पी एवं आचार्य महाभाग अर्थात महाभाग्यशाली प्रजापति देवाचार्य देवशिल्पी विश्वकर्मा प्रकट हुए।
* देवाचार्य देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा जी का दिव्य स्वरूप लक्ष्मीनारायण संहिता में वर्णित हैं यथा –
विश्वकर्मा चतुर्बाहुरक्षमालां च सूत्रकम् ।/गजं कमण्डलुं धत्ते त्रिनेत्रो हंसवाहनः ।। – (लक्ष्मीनारायणसंहिता/खण्ड-२/अध्याय- १४२, श्लोक- १०) अर्थात – चार भुजाओं वाले देवाचार्य देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा जी ने रक्षमाला और एक धागा (जनेऊ या सूत का धागा) धारण किया है। उनके पास एक हाथी और एक जलपात्र है, उनकी तीन आंखें हैं और उनके पास एक हंस वाहन स्वरूप भी है।
* भगवान विश्वकर्मा का शास्त्रों में देवाचार्य , श्रेष्ठ देवता और श्रेष्ठ ब्राह्मण होने का प्रमाण भी दिखाई देता है –
देवाचार्यस्य महतो विश्वकर्मस्य धीमतः।विश्वकर्मात्मजश्चैव विश्वकर्ममयः स्मृतः॥- (वायुपुराण/उत्तरार्धम्/अध्याय – २२, श्लोक – २०)अर्थात – महान और बुद्धिमान विश्वकर्मा देवताओं के आचार्य (गुरु) हुए हैं और उनके पुत्र भी उन्हीं के समान गुणों वाले हुए।
तस्मिन्नेव ततः काले शिल्पाचार्यो महामतिः।विश्वकर्मा सुरश्रेष्ठः कृष्णस्य प्रमुखे स्थितः॥(हरिवंशपुराण/पर्व २ (विष्णुपर्व)/अध्यायः ०५८,श्लोक -२२) अर्थात – उसी क्षण देवताओं में श्रेष्ठ महान बुद्धिजीवी देवताओं के शिल्प के आचार्य विश्वकर्मा जी भगवान कृष्ण के सामने प्रकट हुए।
* शातनं तेजसो मेऽद्य क्रियतामिति भास्करः।
तञ्चाह विश्वकर्माणं संज्ञायाः पितरं द्विज॥ – (मार्कण्डेयपुराण/अध्याय – ७७/श्लोक – ४१) अर्थात – संज्ञा के पिता विश्वकर्मा जी से सूर्य ने कहा – हे ब्राह्मण , आप मेरा तेज घटा दीजिये।
यहाँ मैं इस बात का उल्लेख करना उचित मानता हूँ कि सन 1909 में श्री रत्न रेवल रत्न वारिया की एक कृति को एल्वर्ड एडवर्ड रोक्टर्स ने विश्वकर्मा एंड हिज डिसैंन्डैंट’ के नाम से जब प्रकाशित करवाया तो विश्व के श्रेष्ठ अविष्कारकों एवं विद्वानों के मन में भगवान श्री विश्वकर्मा के बारे में सोच की नयी लहर पैदा हो गई। इस पुस्तक का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है । तब लोगों को इस रहस्य का भी पता चला कि विश्वकर्मा धर्म के राजा ने लंका पर शासन भी किया था। प्राचीन ग्रन्थों को पढ़ने से पता चलता है कि विश्वकर्मा ब्राह्मणों के शत्रुओं ने भगवान विश्वकर्मा से संबंधित महत्वपूर्ण साहित्य को नष्ट कर दिया और सहीं जानकारी लोगों तक नहीं पहुंचने दिया। विश्व मे पहला तकनीकी ग्रंथ विश्वकर्मीयम् ग्रंथ को ही माना गया हैं। शिल्प शास्त्र के सैकड़ों ग्रंथ रचे गये, जिसमें न केवल वास्तुविद्या बल्कि रथादि वाहन और रत्नों पर विमर्श है।‘विश्वकर्मा प्रकाश’ एवं नरेन्द्र शर्मा द्वारा रचित भगवान विश्वकर्मा महा पुराण को विश्वकर्मा के मतों का जीवंत ग्रंथ है। विश्वकर्मा प्रकाश को वास्तुतंत्र भी कहा जाता है। इसमें मानव और देववास्तु विद्या को गणित के कई सूत्रों के साथ बताया गया है, ये सब प्रामाणिक और प्रासंगिक हैं। धर्म एवं कर्म के प्रणेता भगवान श्री विश्वकर्मा को जिन्होंने अपने धर्म एवं कर्म को सदैव सर्वोपरि माना कोटिशः नमन है। अक्सर प्रश्न पूछा जाता है कि 17 सितंबर को ही क्यों मनायी जाती है विश्वकर्मा पूजा ? इस पर कुछ धर्मशास्त्रियों का मानना है कि भगवान श्री विश्वकर्मा का जन्म अश्विन मास की कृष्णपक्ष को हुआ जबकि कुछ का मत है कि उनका जन्म माघ माह के शुक्ल पक्ष के तेरहवें दिन अर्थात माघ शुक्ल त्रयोदशी के दिन हुआ था। एक अन्य मान्यता में विश्वकर्मा पूजा को सूर्य के परागमन के अनुसार तय किया गया और यह दिन बाद में सूर्य संक्रांति के दिन माना जाने लगा। प्रतिवर्ष सत्रह सितंबर को औद्योगिक प्रतिष्ठानों, कारख़ानों, लोहे की दुकानों, वाहन विक्रय केन्द्रों,शोरूम्स, सर्विस सेंटर्स, कंस्ट्रक्शन एवं अभियांत्रिकी से संबंधित कार्यशालाओं में वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य भगवान श्री विश्वकर्मा की जयंती धूमधाम से मनाई जाती है। सभी धर्म -जाति के लोगों द्वारा मिलजुलकर उनकी भव्य मूर्ति स्थापित करके पूजा -अर्चना की जाती है एवं मशीनों, औज़ारों की सफ़ाई तथा रंगरोगन किया जाता है। इस दिन ज्यादातर कल- कारख़ाने बंद रहते हैं और लोग हर्षोल्लास के साथ भगवान विश्वकर्मा की आराधना करते है। जबकि विश्वकर्मा वंश से जुड़े लोग शिल्पी के रूप में देवाचार्य देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा का प्राकट्य दिवस प्रतिवर्ष माघ मास के शुक्ल पक्ष के तेरहवें दिन अर्थात माघ शुक्ल त्रयोदशी के दिन मनाते हैं क्योंकि इसी दिन देवाचार्य भगवान विश्वकर्मा प्रकट हुये थे। इस दिन विश्वकर्मा यज्ञ, हवन एवं पूजन के साथ हर्षोल्लास से मनाया जाता है। कुछ विद्वानों की मान्यता ये भी हैं कि इसी दिन राजा पृथू को भगवान विश्वकर्मा ने स्वप्न में आकर दर्शन दिये थे जिस कारण उनका प्रकट दिवस या उत्सव के रूप में मनाया जाता है। अथर्ववेद का उपवेद शिल्पवेद हैं जिस कारण कार्मिक दृष्टिकोण से समस्त भारतवर्ष में अथर्ववेदीय विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मण सिद्द होते हैं। आज देशभर में विश्वकर्मा – आचार्य , शर्मा , धीमान , पांचाल , जांगीड़, मैथिल ,ओझा ,झा ,विश्वकर्मा ,विश्वब्राह्मण , मालवीय , वेदपाठक , महामुनि , धर्माधिकारी , दीक्षित , पंडित , महाराणा , राणा सहित २०० से ज्यादा उपनामों से जाने जाते हैं। यही वजह है कि विभिन्न समाजों के बीच विश्वकर्मा वंश के लोगों की जाति को लेकर अनेक भ्रांतियां आज भी फैली हुई हैं। आधुनिकीकरण के युग में किस तरह ये वर्ग अपने कौशल और शिक्षा से वंचित होने एवं राजनीति का शिकार होने के कारण न ऊपर की श्रेणी में रह पाया न नीचे की। जबकि उसके पांचाल ब्राह्मण होने के प्रमाण निम्नलिखित ग्रंथों में स्पष्ट रूप से दिए गये हैं-
* ब्राह्मणोत्पत्तीमार्तण्ड ‘ ग्रंथ (पृष्ठ ५६२ – ५६८ तक) विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों का उल्लेख ‘ अथ पांचालब्राह्मणोंत्पत्ती प्रकरण ‘ बताकर दिया गया है।
* ब्राह्मणोंत्पत्ति दर्पण ‘ (पृष्ठ क्रमांक ३५८ से ३६१ तक) विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है और उन्हें ब्राह्मण स्वीकार किया गया हैं।
* काशी से प्रकाशित ‘आदित्य पंचांग’ के विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को अथर्ववेदीय ब्राह्मण बताकर जांगिड़ ब्राह्मण एवं पांचाल ब्राह्मण से संबोधित किया गया है। (इसके पुराने संस्करण के पृष्ठ ४६ और नवीन संस्करण (२०२२- २३)के पृष्ठ ४४ पर प्रमाण देखा जा सकता हैं)
यह लेख भगवान श्री विश्वकर्मा की महिमा एवं उनकी वंशावली को ध्यान में रखकर महज इसलिए तैयार किया गया है ताकि जनमानस को इस बार की पूरी जानकारी मिल सके।

👉 • डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘ नवरंग’
[ छत्तीसगढ़ रायपुर के डॉ. माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’ वरिष्ठ साहित्यकार,कवि एवं समीक्षक हैं. संपर्क- 94241 41875 ]

०००००

विज्ञापन (Advertisement)

ब्रेकिंग न्यूज़

कविता

कहानी

लेख

राजनीति न्यूज़