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लघुकथा : डॉ. सोनाली चक्रवर्ती

• बच्चों के प्रवासी होने के बाद बुजुर्गों के अकेलेपन को उजागर करती लघुकथा ‘टाइमपास’
– डॉ. सोनाली चक्रवर्ती
[ छत्तीसगढ़, भिलाई ]
“आंटी जी आप क्यों तकलीफ कर रही है हम कुछ नहीं लेंगे ”
कांपते हाथों से सेंटर टेबल पर मठरी की प्लेट रखते हुए रमादेवी ने कहा-“अरे!ऐसे कैसे कुछ नहीं लोगे।दफ्तर से सीधी आ रहे हो भूख तो लगी होगी रुको मैं चाय बनाती हूं।”
घुटनों का दर्द दबाते हुए वह फिर मुड़ने लगी
मेहमानों ने हड़बड़ा कर कहा-” नहीं नहीं आंटी जी चाय की तकलीफ बिल्कुल ना करें आप तो सिर्फ हमें घर दिखा दीजिये। मेरी मौसी जी आपके सत्संग की सहेली है उन्होंने बताया कि आप अपना घर बेचना चाहती है”।
तब तक घर के मालिक सत्येंद्र जी बोल पड़े -“अरे इतनी भी क्या जल्दी है बैठो आराम से।उसी बहाने मुझे भी चाय मिल जाएगी बच्चों वरना आपकी आंटी जी ने तो मेरे ऊपर राशन लागू कर रखा है” सब लोग हंस पड़ते हैं और उसके साथ ही बातचीत का दौर चल पड़ता है।
उसके बाद रमा जी और सत्येंद्र जी लड़खड़ाते कदमों से अपना पूरा घर दिखाने लगते हैं-“यह कमरा मेरे बेटे का है अमेरिका जाकर बस गया है बार-बार बुला रहा है इसीलिए यह घर बेचना है। यह देखो उसके बचपन की बॉल।इस बॉल को बिस्तर पर रखे बगैर सोता नहीं था।
….. यह कमरा बिटिया का है उसकी बचपन की गुड़िया, उसका पसंदीदा दुपट्टा यह सब उसकी ड्रेसिंग टेबल पर रखे रहते हैं मैं बाई को भी हटाने ही नहीं देती…..”
घंटे भर तक घर दिखाने के बाद मेहमानों ने जब पूछा -“आंटी जी इसका कीमत क्या रखी है कृपया बताएं” तो सत्येंद्र जी हंस के कहते हैं -“अरे इतनी जल्दी क्या है और एक दो बार आओ सब कुछ समझो उसके बाद कीमत भी बता देंगे” युवा
मेहमान असमंजस में पड़े हुए बुजुर्गों के सामने किसी तरह की बहस ना कर पाए व धीरे से चले गए।
सत्येंद्र जी ने गेट का ताला लगा के दो-तीन बार चेक किया, सभी दरवाजों का लॉक अच्छी तरह दोबारा चेक किया व सोने के लिए बिस्तर पर आ गए। खांसी की दवाई लेती हुई रमा जी बोलीं-“चलो आज की शाम तो बड़ी अच्छे से बीत गई। बेटू को तो फोन करने का समय नहीं मिलता। हमको बात करने के लिए आज अच्छे लोग मिल गए। अब देखते हैं कल क्या होता है”
-” चिंता क्यों करती हो मेरे दोस्त के दामाद को मकान खरीदना है कल वह आएगा। हमें कोई घर बेचना थोड़ी है। बस सबसे कह देता हूं कि अब यह घर बेचना है इतने प्राइम लोकेशन पर है तो रोज कोई ना कोई आ जाता है। इन बच्चों को देखकर अपने बच्चों की कमी पूरी हो जाती है ”
दोनों फीकी हंसते हुए बत्ती बुझा देते हैं।
पूरा घर अंधेरे में डूब जाता है।
• लेखिका संपर्क-
• 98261 30569
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