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लेख : बदलते परिवेश में नारी का स्वरूप – नूरस्सबाह ‘सबा’
हमारा देश, जहाँ नारी को अनंतकाल से देवी स्वरूप मानकर tपूजा जाता रहा है, वहीं उसके साथ सामाजिक अन्याय और शोषण की घटनाएँ भी होती आई हैं। यह एक विरोधाभास ही है कि जिसे शक्ति का स्वरूप माना गया, उसे ही कमजोर और निर्बल मानकर अनेक प्रकार के बंधनों में जकड़ा गया।
समाज सुधारकों के प्रयासों और बदलते समय के साथ नारी की स्थिति में सुधार हुआ। उसने शिक्षा प्राप्त की, आर्थिक स्वतंत्रता हासिल की और हर क्षेत्र में पुरुषों के समकक्ष स्थान बनाया। महिला सशक्तीकरण ने उसे आत्मनिर्भर बनाया, जिससे वह अपने अधिकारों के प्रति सजग हुई और समाज में अपने स्थान को पुनः स्थापित किया।
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बदलते परिवेश में नारी का स्वरूप
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किन्तु, वर्तमान समाज में हो रहे कुछ घटनाक्रम एक नई चिंता को जन्म दे रहे हैं। महिला सशक्तीकरण का अर्थ केवल स्वतंत्रता नहीं, बल्कि नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण भी है। यदि नारी सशक्त होकर अपने नैसर्गिक गुणों को भूलने लगे, तो यह समाज के संतुलन को प्रभावित कर सकता है।
आज के समय में, कई घटनाएँ ऐसी हो रही हैं, जहाँ नारी शक्ति का एक नया और अप्रत्याशित रूप देखने को मिल रहा है। यह प्रश्न उठता है कि इस बदलाव के लिए कौन ज़िम्मेदार है—समाज, आधुनिकता, शिक्षा, या स्वयं महिलाएँ?
सशक्त नारी: श्रद्धा या संघर्ष का प्रतीक?
महाकवि जयशंकर प्रसाद ने अपनी कविता में नारी को श्रद्धा, विश्वास और जीवन का आधार बताया था—
“नारी! तुम केवल श्रद्धा हो,
विश्वास रजत नग पग तल में,
पीयूष स्रोत सी बहा करो,
जीवन के सुंदर समतल में।”
लेकिन क्या यह पंक्तियाँ आज की नारी पर लागू होती हैं? क्या आधुनिक सशक्त नारी केवल श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक रह गई है, या उसने अपने अस्तित्व को पुनर्परिभाषित कर लिया है?
यह एक गहन विचार का विषय है कि सशक्तिकरण का अर्थ क्या केवल समानता प्राप्त करना है, या समाज में संतुलन बनाए रखना भी उतना ही महत्वपूर्ण है? समाज और परिवार की धुरी होते हुए भी क्या महिला को अपने मूल गुणों को सुरक्षित रखना चाहिए?
निष्कर्ष
महिला सशक्तीकरण आवश्यक है, लेकिन इसके साथ यह भी आवश्यक है कि नारी अपने नैसर्गिक गुणों को बनाए रखे। उसे अपनी शक्ति का उपयोग केवल प्रतिस्पर्धा के लिए नहीं, बल्कि समाज और परिवार के उत्थान के लिए करना चाहिए। यदि सशक्तिकरण का अर्थ केवल बाहरी स्वतंत्रता रह जाएगा, तो समाज में असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
इसलिए, महिला सशक्तीकरण का सही अर्थ तभी सार्थक होगा जब नारी अपनी गरिमा, संवेदनशीलता, और सामाजिक जिम्मेदारी को समझे और उसे सकारात्मक दिशा में प्रयोग करे।
• नूरस्सबाह ‘सबा’ प्रतिष्ठित शायरा हैं. ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ में इनकी पहली महिला सशक्तिकरण पर लेख प्रकाशित हो रही है. • संपर्क : 99267 72322
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