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■प्रयास ■स्वयंसिद्धा ए मिशन
■स्कूल खोलने के पूर्व ‘स्वयंसिद्धा’ ने कुछ माताओं से चर्चा कर तसवीरें औऱ साझा की गई बातचीत.
■’स्वयंसिद्धा’ गृहणियों की अग्रणी संस्था ने जागरूकता का परिचय देते हुए, इस वर्ष 8 मार्च को ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ पर कोई भी सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं किया.
■’स्वयंसिद्धा’ ने ऑनलाइन कार्यक्रम में बच्चों की माताओं से उनके विचारों का जाना.
■’स्वयंसिद्धा’ की डायरैक्टर डॉ. सोनाली चक्रवर्ती ने कहा-“सार्वजनिक स्थानों के कार्यक्रमों को बंद करके स्कूल खोलने की दिशा में कदम बढ़ते तो बेहतर होता”.
छत्तीसगढ़ । भिलाई । कोरोना के दुष्चक्र ने बच्चों के बचपन एवं शिक्षा के बुनियादी अधिकार को ही चपेट में ले लिया है। हम कितने भी जतन कर ले बच्चे को वह शिक्षा नहीं दे सकते जो वह स्कूल जाने पर सीखता है जैसे दूसरे बच्चों के साथ सामंजस्य बिठाना, जो कि एकल परिवार के बच्चों के लिए अत्यावश्यक है, अनुशासन, आत्मनिर्भरता,अपनी पेंसिल पकड़कर अक्षर बनाना,समय पर मिल बांट कर खाना,नए खेल सीखना, नई शैली विकसित करना ऐसी बहुत सारी चीजें हैं जो डीजिटल क्लास के माध्यम से कभी पूरी नहीं हो सकती। बच्चों के संपूर्ण संज्ञानात्मक विकास के लिए शिक्षकों का प्रत्यक्ष मार्गदर्शन एवं सुरक्षा की प्रत्यक्ष उपलब्धता अत्यंत आवश्यक है।
हम सब बेसब्री से उस दिन की प्रतीक्षा में है जब यह कोरोनावायरस का साया हमारे जीवन से हट जाए और बच्चों को उनके बुनियादी अधिकार प्राप्त हो और देश और भविष्य को उनके जागरूक नागरिक मिल सके।
इसी सोच के साथ
स्वयंसिद्धा ए मिशन ने एक ऑनलाइन कार्यक्रम में माताओं से उनके विचार जानने की चेष्टा की और इसके बदले में 150 से अधिक माताओं ने अपने बच्चे के स्कूल के पहले दिन की तस्वीरें साझा करके अपना दुख लिखा। बच्चे का स्कूल जाना प्रत्येक माता के लिए एक बेहद अनोखा अनुभव होता है ।साथ ही हमारे देश में हजारों लाखों माताएं इंतजार कर रही है कि इस साल से उनका बच्चा स्कूल जा पाए।
स्वयंसिद्धा समूह में ऐसी बहुत सी माताओं ने भी अपना दुख जाहिर किया कि इस साल उनका बच्चा स्कूल जाने वाला था जिसके बदले में उन्होंने अपने घर को ही स्कूल बना रखा है कोषाध्यक्ष श्रीमती स्मिता चौहान अपने घर के एक कोने को ही स्कूल का रूप देकर अपने तीन साल के बच्चे को स्कूल जाने की प्रैक्टिस करवा रही हैं जिससे स्कूल खुलने पर उसे किसी मुश्किल का सामना ना करना पड़े।
संस्था की डायरेक्टर
डॉ. सोनाली चक्रवर्ती का कहना है कि हमको थोड़ा और जागरूक होना चाहिए जिस प्रकार हम सिनेमा हॉल, पिकनिक, पार्टी, शादी विवाह, रेस्टोरेंट में जो भीड़ का सामना कर रहे हैं वहां पर अगर बच्चों की आवाजाही में किसी को तकलीफ नहीं हो रही है तो स्कूल खोलने में क्या दिक्कत है ??
हमें चाहिए कि हम यह सार्वजनिक स्थानों के कार्यक्रमों को बंद करके स्कूल खोलने की दिशा में काम करते तो बेहतर होता।
सभी महिलाओं ने अपने बेबाक विचार रखें कि बच्चों की सुरक्षा को लेकर हम सभी चिंतित हैं लेकिन स्कूल ना खुलने पर इसके नतीजे अच्छे नहीं होंगे। बच्चों के जीवन से अनुशासन नाम की चीज बिल्कुल ही कम होती जा रही है क्योंकि केवल स्कूल खुले रहने से ही संभव है।
अंजू चंदनिहा, मेनका वर्मा, मंजू मिश्रा, मंजू जैन, संगीता जायसवाल, विनीता गुप्ता, पुनीता कौशल, वंदना नाडंबर, आरती तिवारी, दीपा तिवारी, कल्पना मिश्रा, मधुरिमा राय,गीता चौधरी, अर्चना सेनगुप्ता यही नहीं निशा ठाकुर, आशावरी परांजपे और त्रिलोकी साहू ने अपने पोते पतियों के स्कूल जाने के पहले दिन की तस्वीरें साझा करते हुए अपने अनुभव लिखें ।
हुबली (कर्नाटक) जमशेदपुर ,मुंगेली, आदि से भी महिलाओं ने अपनी बात रखी।
[ ●सामाज़िक डेस्क,’छत्तीसगढ़ आसपास’. ●प्रिंट एवं वेबसाइट वेब पोर्टल, न्यूज़ ग्रुप समूह,रायपुर,छत्तीसगढ़. ]
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