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लोकार्पण- आचार्य डॉ. महेशचंद्र शर्मा की दशमी कृति ‘सटीक शुकनासोपदेश’ का लोकार्पण गो सेवा आयोग के अध्य्क्ष महंत डॉ. रामसुंदर दास ने किया
■ ‘सटीक शुकनासोपदेश’ लोकार्पित.
■डॉ. महेशचंद्र शर्मा ने संस्कृत का अलख जगाया-डॉ. रामसुंदर दास.
■डॉ. महेशचंद्र शर्मा, अपने लेखन से संस्कृत को उसका पुराना गौरव दिलायेंगे-डॉ. अरुणा पल्टा, कुलपति हेमचंद यादव विश्वविद्यालय, दुर्ग.
छत्तीसगढ़ । रायपुर । संस्कृति मर्मज्ञ आचार्य डा.महेशचन्द्र शर्मा की दशमी कृति ” सटीक शुकनासोपदेश” का लोकार्पण विगत दिनों रायपुर में सम्पन्न हुआ गो सेवा आयोग ,छ.ग.शासन केअध्यक्ष एवं संस्कृत विद्वान् महन्त डा. रामसुन्दर दास के मुख्यातिथ्य और हेमचन्द यादव विश्वविद्यालय दुर्ग की कुलपति डा.अरुणा पल्टा की अध्यक्षता में सम्पन्न इस भव्यसमारोह में महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय वर्धा के पूर्व प्रो.शम्भू गुप्त, छत्तीसगढ़ के संस्कृत-हिन्दी विद्वान् प्रो.बालचंद कछवाह, पं.रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर के संस्कृत अध्ययन मण्डल के अध्यक्ष डा.सत्येन्दु शर्मा एवं कल्याण कालेज भिलाई के प्रो.सुधीर शर्मा समेत अनेक विशिष्ट गणमान्य साहित्यकार उपस्थित थे। लोकार्पित पुस्तक विश्वविद्यालयीन पाठ्यक्रम का अंग है। कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन किया गया। अनावश्यक भीड़भाड़ इकट्ठी न कीगई , किंतु चुनिंदा साहित्यकारों ने गरिमामय उपस्थिति दी।
विद्या की देवी को नमन करने बाद विद्वान् अतिथियों ने पुस्तक का लोकार्पण किया । विगत 14 वर्ष में रचित इस दशवीं पुस्तक के प्रणेता आचार्य डा. महेशशर्मा का शाल-श्रीफल एवं पुष्पहारों से,अभिन्दन मंचस्थ विशिष्ट जनों द्वारा किया गया।संयोजक एवं संचालक डा.सुधीर शर्मा ने बताया कि लेखक अनेक देशों की सफल शैक्षिक-सांस्कृतिक यात्रायें कर चुके हैँ।उनकी कृतियाँ क्रमशः “साहित्य और समाज” एवं”गागर में सागर” का लोकार्पण क्रमशः मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल एवं उच्चशिक्षा मन्त्री श्री उमेश पटेल द्वारा गत वर्ष किया गया। आज के समारोह के मुख्य अतिथि एवं संस्कृत अध्ययन मण्डल , छ.ग.शासन के पूर्व अध्यक्ष महन्त डा.रामसुन्दर दास ने कहा कि डा.शर्मा ने संस्कृत का अलख जगाया है। संस्कृत लेकर देश – विदेश की अनेक यात्राओं द्वारा प्रशंसनीय संस्कृत सेवा की है।प्रदेश के एक मात्र संस्कृत डी.लिट्.होने के बाद भी उनका लेखन कार्य निरन्तर
जारी है। अध्यक्षीय उद्बोधन में डा.अरुणा पल्टा ने कहा संस्कृत मे संस्कृतिऔर संस्कारों की सुगन्ध है।पाठक की ब्लडप्रेशर बीमारी को रोकने वाली ये भाषा अन्तरिक्ष विज्ञान मे भी फिट मानी जाने लगी है।उसकी पुरानी। गरिमा लौटाने हेतु डा.शर्मा द्वारा लेखन द्वारा किये गये प्रयास प्रशंसनीय और अनुकरणीय हैं।पुस्तक पर आलेख प्रस्तुत करते हुए डा.सत्येन्दु शर्मा ने लेखक की प्रतिभा की सराहना की और कृति को विद्यार्थियों के लिये बहुत उपयोगी बताया। कहा कि शुकनासोपदेश का बाणभट्ट की कादम्बरी मे वही महत्त्व है ,जो महाभारत में गीता का।डा.शम्भू गुप्त ने उसे उपभोक्तावाद से लड़ने में कारगर बताया। प्रो.बालचंद कछवाह ने कहा कि डा. महेश ने डा.दिनकरजी की शैली में भी पुस्तकें लिखीं हैं।विद्यार्थी डुबकी लगाकर ज्ञान-संस्कृति के मोती खोज सकते हैं। लेखककीय वक्तव्य में डा.शर्मा ने कहा कि इस पुस्तक के प्रकाशन से उनकी 14 वर्षीय तपस्या सफल होगयी।इस कार्य में सहयोगियों का आभारी हूँ।
[ ●साहित्यिक डेस्क,’छत्तीसगढ़ आसपास. ●प्रिंट एवं वेबसाइट वेब पोर्टल, न्यूज़ ग्रुप समूह,रायपुर,छत्तीसगढ़. ]
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