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- ■आव्हान : •’कोविड प्रोटोकॉल’ के संदर्भ में, छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ कवि एवं साहित्यकार शरद कोकास द्वारा निवेदन.
■आव्हान : •’कोविड प्रोटोकॉल’ के संदर्भ में, छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ कवि एवं साहित्यकार शरद कोकास द्वारा निवेदन.
शासन द्वारा संक्रमण से बचने के लिए कोविड प्रोटोकॉल जारी किया गया है जिसमें दुकानों के खुलने का समय सोशल डिस्टेंसिंग इत्यादि बातों का जिक्र है।
यह अच्छी बात है लेकिन विडंबना यह है कि इसका पालन जनता पूरी तरह से नहीं करती है । अभी भी आप बस्तियों के अंदर जा कर देखिए , लोग बिना मास्क के घूम रहे हैं , झुंड बनाकर घूम रहे हैं ,सब्जी आदि के ठेले वाले भी बिना मास्क लगाए सामान बेच रहे हैं , उनसे खरीदने वाले भी झुंड लगाकर समान खरीद रहे हैं , चाट के ठेले पर भीड़ है, चार में से एक आदमी मास्क लगाता है और लोग गले में हाथ डाले खड़े रहते हैं ।
यही नहीं दुकानों में भीड़ लगी रहती है । मैरिज हॉल में 50% जगह का उपयोग किया जाए , ऐसा कहने मात्र से कुछ नहीं होगा । अगर हाल में 50% जगह का उपयोग हो रहा है लेकिन अनुमति प्रदान किए हुए सारे 50 लोग वहीं पर इकट्ठे हो गए तो संक्रमण तो फैलेगा ही । ऐसे मैरिज हॉल के किचन में जाकर देखिए , केटरर्स और वेटर ही 25 से अधिक हो जाते हैं।
अब दुकानों में देखिए । वहां भी एक साथ भीड़ घुसती है। आप जगह जगह देख सकते हैं किस तरह सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाई जा रही है। पुलिस वाले चौक पर अवश्य तैनात हैं , लेकिन देखिए फिर भी लोग छह फीट दूरी पर नहीं खड़े रहते ।
अफसोस की बात यह है कि यही लापरवाही पिछली बार भी हुई थी । और उसकी वजह से दुर्ग जिले में सबसे पहले संक्रमण फैला और दुर्ग का नाम पूरे देश में हॉटस्पॉट के रूप में टॉप पर पहुंच गया ।
यही नहीं नेशनल न्यूज़ में दुर्ग का नाम आ गया । न जाने कहां-कहां के रिश्तेदारों ने फोन करके पूछा कि भैया आप के दुर्ग का नाम खूब चमक रहा है …” उस वक्त शर्म से सर झुक गया जब लोगों ने कहा कि ” इतनी समझ आपके जिले के लोगों को नहीं है ?” बाद में तो हमारा जिला क्या पूरा छत्तीसगढ़ हो गया ।
कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी यदि इसी लापरवाही और नासमझी की वजह से तीसरा दौर भी यहां सबसे पहले आए । शायद देश में नंबर वन रहने की हमारी इच्छा है, उन्नति में विकास में , संक्रमण में और मृत्यु में भी ।
फिर इसका क्या उपाय है ? इसके लिए जरूरी है की सख्ती से इस प्रोटोकॉल का पालन करवाया जाए । पुलिस द्वारा बाज़ार के अलावा भीतरी क्षेत्रों में , मैरिज हॉल , स्कूल कॉलेज , आदि में लगातार गश्त की जाए । जो लोग इस प्रोटोकॉल को तोड़ रहे हैं, बिना मास्क के घूम रहे हैं , उन पर जुर्माना किया जाए साथ ही उनको एक सस्ता वाला सर्जिकल मास्क भी उन्हें दिया जाए ।
भले ही अपनी नासमझी या “हमे कुछ नही होता ” जैसे अहम भाव के कारण उसे फेंक दें फिर भी उन पर जुर्माना किया जाए ।
जब तक इस तरह की सख्ती नहीं होगी तब तक लोग समझेंगे नहीं । लेकिन एक महत्वपूर्ण बात यह कि केवल सख्ती से काम नहीं चलेगा । उनमें समझ भी पैदा करनी होगी ।
मेरा सुझाव है कि सामाजिक कार्यकर्ताओं को , पत्रकारों को, बुद्धिजीवियों को , कवियों और लेखकों को यह चाहिए कि वे नुक्कड़ पर जाकर या ऐसे बाजारों में जाकर पूरी सावधानी के साथ लोगों को संबोधित करें । प्रशासन द्वारा बुद्धिजीवियों , नेताओं , वार्ड के पार्षदों , पक्ष विपक्ष दोनों के नेताओं तथा कलेक्टर , एस पी , व अन्य प्रशासनिक अधिकारियों की ऐसी छोटी-छोटी एक 1 – 2 मिनट की वीडियो क्लिप जारी की जाए जिसमें वे जनता को वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ संक्रमण के विरुद्ध समझाएं । वे उन्हें बताएं कि प्रोटोकॉल का पालन क्यों जरूरी है और पालन न करने की स्थिति में क्या नुकसान हो सकता है ।
ऐसी स्थिति में जब हम सारे नियम खुद तोड़ेंगे हमारा क्या नुकसान होगा।
यह पूरा दौर जिसे हम दूसरा दौर या दूसरी लहर का समय कहते हैं हम सब के लिए बहुत दुखद रहा । ऐसा कोई परिवार नहीं है जिसने अपने किसी परिजन को ना खोया हो। ऐसा कोई परिवार नहीं है जहां पर कोई ना कोई व्यक्ति इस संक्रमण से ना गुजरा हो , जिसने अस्पताल या आइसोलेशन का सामना ना किया हो । ऐसा कोई नही ह जो कहे कि नहीं हमारे परिवार का कोई हमारा सगा इस दौर में नहीं मरा । मृत्यु के अलावा आर्थिक रूप से भी जाने कितने लोग भी बर्बाद हो चुके हैं , कितनी नौकरियां खत्म हो गई है , कितने लोग बेरोजगार हो गए हैं ।
क्या हम चाहते हैं कि दोबारा हमारे साथ ऐसा घटित हो ? अगर नहीं , तो हम फिर से उन सब चीजों का पालन करें जिनसे हम सुरक्षित रहते हैं।
इस बात को बिल्कुल दिमाग से निकाल दें कि कोविड के वायरस का खतरा अब पूरी तरह समाप्त हो चुका है और अब यह नहीं आएगा । जब तक हम जीवन शैली में इस बात को नहीं अपनाएंगे इस संक्रमण से कैसे बचा जाए नहीं सीखेंगे खतरे नए-नए रूप में आते रहेंगे और हम इसी तरह अपने प्रिय जनों को खोते रहेंगे । अपनी आर्थिक और सामाजिक स्थिति की विपन्नता भी बढ़ती रहेगी।
इसलिए शासन को सख्ती के साथ-साथ जनता द्वारा नियमों के पालन करवाए जाने और जनता द्वारा खुद पालन करने की भी सख्त जरूरत है । अर्थात सख्ती और समझ दोनो जरूरी हैं।
उम्मीद है कि कभी न कभी जनता इस बात को जरूर समझेगी ही लेकिन कुछ नुकसान होने से पहले समझ जाए तो ज्यादा अच्छा है । हम क्यों न इसे एक आव्हान की तरह स्वीकार करें ?
●लेखक संपर्क-
●88716 65060
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