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- ■संस्मरण : •डॉ. डी पी देशमुख.
■संस्मरण : •डॉ. डी पी देशमुख.
[ ●सांस्कृतिक जागरण के नायक डॉ. डीपी देशमुख
छत्तीसगढ़ की कला संस्कृति राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समृद्ध है. प्रदेश की इसी कला संस्कृति को सजाने सवांरने में अनेक माटी पुत्रों, रत्नों का योगदान है. इन्हीं रत्नों में एक नाम है-डॉ. डीपी देशमुख.
डॉ. डीपी देशमुख एक ऐसे विशिष्ट रत्न,जिन्होंने अपनी उपस्थिति से अपनी त्याग,तपस्या से नए सिरे से छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक जागरण का शंखनाद किया और पूरे प्रदेश में छत्तीसगढ़ महतारी की,छत्तीसगढ़ सांस्कृतिक मंजूषा की पुनीत अलख जगाई.
बहुआयामी वयक्तित्व के धनी डॉ. डीपी देशमुख के व्वक्तित्व के बारे में अगली कड़ी में और विस्तृत बातें आपसे शेयर करूँगा, आज़ उनके संस्मरण,उनकी ज़ुबानी पढ़ें औऱ बताएं
-संपादक ]
●छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू ‘कला परंपरा’ के अंक का अवलोकन करते हुए.
●कला परम्परा के अब तक प्रकाशित अंक.
-डॉ. डीपी देशमुख
[ भिलाई-छत्तीसगढ़]
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कला,संस्कृति एवम साहित्य को लेकर बचपन से ही मन में ठान लिया था कि जीवन मे मौका मिले तो लोक विधा पर पुस्तक दस्तावेजीकरण कर छत्तीसगढ़ की माटी का कर्ज उतारने का प्रयास करूँगाऔर अपने इस उद्देश्य पर चल पड़ा।
इस भगीरथ प्रयास के लिए बेहतर शिक्षा जरूरी था।गांव में स्कूल नहीं होने के कारण,पगडंडी से 3 किलोमीटर दूर 1ली से 8 वी तक पैदल स्कूल गया। बरसात में घुटना भर कीचड़ व गर्मी में घुटने के ऊपर तक धूल।सुबह बासी खाकर 8बजे प्रस्थान कर स्कूल से प्रति दिन शाम 5 बजे घर वापासी,इस बीच दोपहर खाने के लिए लगभग 50 ग्राम अंगाकर रोटी से ही गुजारा होता था,फिर आगे की पढ़ाई कस्बो व शहरों में हुई,पढ़ाई का स्तर तो औसतन बेहतर एवम उच्च से उच्चतर रहा,लेकिन जहाँ भी पढ़ने गया देहाती का छाप कभी पीछे नहीं छोड़ा,कारण था प्रायमरी कक्षा के 5 साल बाद शिक्षा के आगामी पढ़ाई मीडिल,हाई स्कूल,स्नातक या स्नातकोत्तर डिग्री के लिए प्रत्येक 2-,3 वषों में स्थान परिवर्तित होने उस नई जगह में स्थानीय विद्यार्थियों के लिए हमेशा देहाती/गवइया ही बनें रहे।इससे कभी लज्जित नही हुए,बल्कि भविष्य में शहरातियों को उनकी औकात दिखाने की प्रेरणा मिलती रही। M.Sc करने के पूर्व ही नौकरी लग गई।नौकरी के माह के बाद परीक्षा दिया,पहली बार प्रावीण्य सूची में द्वितीय स्थान मिलने से मन आल्हादित था,क्योकि कालेज के मेरे सिवाय एक और छात्र हिन्दी माध्यम BSc उत्तीर्ण व देहाती थे अन्य सभी अंग्रेजी माध्यम के शहरी विद्यार्थी थे।यह मेरे लिए यह चैलेंज था,कि हिन्दी मीडियम का ग्रामीण छात्र का अंग्रेजी में पढ़ना व मेरिट में आना।
वर्ष 1979 से भिलाई सयंत्र में 39 वर्ष सेवा के पश्चात 2017 में सेवानिवृत्त हुआ।नौकरी लगने के बाद ड्यूटी से बचे समय मे जीवन के सपनों को पूरा करने में अनवरत लग गया।
मेरी यात्रा नाटकों से प्रारंभ हुई,इस बावत “रिसाली थिएटर्स नाम से सांस्कृतिक संस्था का गठन कर इसके बैनर से लगभग 25 हिन्दी एवम छतीसगढ़ी नाटकों के 100 से अधिक स्थानों में स्थानीय,प्रादेशिक एवम राष्ट्रीय स्तर पर प्रर्दशन में मेरी भागीदारी रही।फिर आगामी पदान में अखिल भारतीय नाट्य स्पर्धा,नाट्य कार्यशाला,लोकनृत्य प्रदर्शन 1987 से 1992 तक किये,जिसे स्थानीय,प्रदेश एवम राष्ट्रीय स्तर पर प्रसंशा मिली।इसी बीच गद्य लेखन से मेरी लेखनी का शुभारंभ हुआ। दैनिक भास्कर के “धरोहर”स्तंभ में राज्य के कला,साहित्य व संस्कृति से जुड़े विभूतियों का व्यक्तित्व एवम कृतित्व पर आधारित आलेख 2-3 वर्षो प्रकाशन हुआ।तत्पश्चात 1 जुलाई 2000 में कलापरम्परा संस्था का गठन कर पुस्तक प्रकाशन एवम दस्तावेजीकरण का कार्य प्रारम्भ किया जो अब तक जारी है।
महामारी कोरोना के दौरान विगत 1 वर्षो से कविता लेखन का मेरा प्रथम एवम अल्प प्रयास है, इस बीच जो भी रचनाएँ बन पाई उसे आपके अवलोकनार्थ सादर प्रस्तुत इस आशय के साथ कर रहा हूँ कि आपका प्रेम आशीष एवम अपेक्षित सुझाव मिल सके,कविता लेखन मेरा विधा नही है फिर भी अल्पज्ञान से मैं प्रयास किया हूँ।गलतियों के लिए पूर्व में ही मैं क्षमा चाहूंगा,,,,,,,,,,,,,। डॉ डी पी देशमुख,प्रदेशाध्यक्ष,कलापरम्परा,छत्तीसगढ़,,,,,,,,।।।।।
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