छग कांग्रेस सह प्रभारी विजय जांगिड़ जी के एकाएक सारंगढ़ दौरे से कांग्रेस खेमे में बढ़ी हलचल
उत्तरी जांगड़े पद्मा मनहर अनिका भारद्वाज विलास सारथी तुलसी बसंत सोनी बंजारे की धड़कने तेज
सारंगढ़ कांग्रेस टिकट को लेकर कई प्रकार की खबरें छनकर सामने आ रही है। सभी अपने-अपने राजनीतिक सूत्रों का हवाला देकर अपना पक्ष रख रखे है। इन दिनों निरंतर मीडिया में सिटिंग एमएलए श्रीमती उत्तरी गनपत जांगड़े की टिकट पक्की होने की खबर वायरल हो रही है वहीं दूसरी तरफ आम जनता राजनेताओं और अन्य दावेदारों में चर्चा है कि जब टिकट फाइनल है तो फिर प्रभारीयो का दौरा क्यों ?
गुटों में बटी कांग्रेस में यह तो फाइनल है कि कोई भी किसी एक का प्रतिनिधित्व स्वीकार करने को तैयार नहीं है वैसे भी कांग्रेस में कार्यकर्ताओं को कहां पद मिलता है, एक-एक व्यक्ति आठ आठ पदों में विद्यमान है, हद तो तब हो जाती है कि उनके साथ-साथ उनके परिवार वाले भी कुर्सियों में कब्जा करके बैठे हैं और लंबे समय से कांग्रेस के पक्ष में कार्य करने वाले कार्यकर्ता वहीं के वहीं रह जाते हैं जैसे जिला कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर हुआ और धीरे-धीरे उनका वजूद समाप्त कर दिया जाता है। आम जनता और कई कांग्रेस के कार्यकर्ता कांग्रेस पर विश्वास करने से झिझक रहे डर रहे है, कि कांग्रेस जीती तो 5 साल फिर वही ढर्रा छोटे चुनाव हो या बड़े चुनाव नियुक्तियां हो या फिर ट्रांसफर ठेकेदारी हो या वसूली सब में 5 साल मलाई खाने वालों का फिर से दबदबा रहेगा और मुंह खोलने वालों को मुंह की खानी पड़ेगी।
राजनीतिक गलियारों के खबरों की माने तो जिला कांग्रेस द्वारा भेजे गए दावेदारों के नाम पर संगठन के कई विभाग प्रकोष्ठ के जिलाध्यक्षों अन्य पदाधिकारी से बीना रायसुमारी के नाम को प्रदेश कांग्रेस भेजे जाने की खबरें हैं। जहां सर्वे में अलग नाम और जिला कांग्रेस से अलग नाम भेजे जाने की चर्चा है। जिस पर प्रदेश स्तर और प्रदेश कांग्रेस के कई समितियो पर शिकायत दर्ज किए जाने की भी खबर है। यह तो साफ है कि जिला संगठन निष्पक्ष न रहकर अपने नेता को टिकट दिलाने में हर संभव प्रयास कर रहा है तो आम कार्यकर्ताओं और अन्य दावेदारों की मंशा को सिरे से नकार कर अलग कर दिया गया है। बात सामने आती है आखिर संगठन के कुछ नेता ऐसा क्यों कर रहे हैं ? उनका इसमें क्या फायदा है ? कांग्रेस की जीत में जहर घोलने का काम कौन कर रहा है ? 5 साल तक सिटिंग विधायक को अन्य कार्यकर्ताओं के नजदीक आने से कौन रोक रहा है ? किसके सामने विधायक का चेहरा छोटा पड़ रहा है ? अब अगर बात विरोधी पार्टी की करी जाए तो भाजपा अपने चुनावी रणनीति में सधी हुई नजर आ रही है। एक तरफ भाजपा सतनामी गैर सतनामी के कार्ड को लेकर जबरदस्त रणनीति के साथ मैदान में उतरना चाहती है कहीं ना कहीं भाजपा को यह सीट कांग्रेस के लिए मजबूत किला नजर आता है और भाजपा के नेता कांग्रेस की एकजुटता, रणनीति, एंटी इनकंबेंसी, कार्यकर्ताओं की नाराजगी जैसे कई तथ्यों पर नजरे जमा कर बैठे हैं।
भले ही कांग्रेस अपने आप को मजबूत और विधानसभा को विनिंग सीट मान रही है लेकिन भाजपा की रणनीति और एक जूटता, एंटी इनकंबेंसी का मुद्दा कहीं ना कहीं कांग्रेस पर भारी पड़ने वाला है। कांग्रेस के कार्यकर्ता इसलिए भी हताश है कि कांग्रेस के कार्यकाल में केवल और केवल भाजपा नेताओं की चांदी रही है, ग्राम पंचायत में भाजपा के सरपंचों को जहां करोड़ों रुपए के काम मिले हैं यहां तक की भाजपा के एक टिक्तार्थी को भी कांग्रेस के मद मिलने की जानकारी है और साक्षात उदाहरण बरमकेला नगर पंचायत है जिसका करोड़ का टेंडर भाजपा ठेकेदार और भाजपा के नेताओं को दे दिया गया था जिसे अंततः कांग्रेसियों के धरने में बैठने के बाद किसी तरह रोका गया। सारंगढ़ नगर पालिका में भी एक भाजपा नेता का वर्चस्व है, सारंगढ़ विधानसभा में ठेकेदारी प्रथा में भी एक ऐसा भाजपा नेता जिसने नगर पालिका चुनाव में कांग्रेस को धूल चटा दी उसका बोलबाला है तो कांग्रेस के अघोषित कार्यालय में भाजपा नेताओं और ठेकेदारों की निरंतर मौजूदगी कांग्रेस के चंद दिग्गज नेताओं पर सवालिया निशान बनकर खड़े हो गए हैं । भाजपा सट्टा जुआ शराब को लेकर पूरे 5 साल मुखर रही है जिसकी काली परछाई कांग्रेस के दामन तक नजर आई है। जिससे आम जनता भी स्वीकार कर रही है, ठेकेदारी प्रथा पर कमीशन बाजी पूरी तरह से हावी रही बल्कि कांग्रेस शासन आने के बाद कमिश्न का परसेंटेज और ज्यादा हाई हो गया। जिसका बोझ ठेकेदारों के साथ-साथ कहीं ना कहीं आम जनता और निर्माण कार्यों पर भी पड़ा है। कुल मिलाकर देखा जाए तो कांग्रेस के विरोध में पिछले चुनाव भाजपा के पास कोई मुद्दा नहीं था और इस चुनाव में मुद्दा ही मुद्दा नजर आ रहा है क्योंकि किसी भी चुनावी जीत के लिए मुद्दे का होना अहम मुद्दा है।
राजनीतिक पंडितों की माने तो विधानसभा सीट में कांग्रेस दावेदारों के नाम पर अंतिम मुहर लगने के ठीक पहले एक बार पुनः छत्तीसगढ़ कांग्रेस सह प्रभारी विजय जांगिड़ का सारंगढ़ आना दावेदारों के लिए बड़ा संकेत है और कहा जा सकता है कि किसी भी एक दावेदार की टिकट अभी भी फाइनल नहीं है।