रियासत
●कांकेर
●दूसरे को न्याय देने वाला आज़ ख़ुद बना असहाय
●खंडहर हो चुका रियासत कालीन किला
●राजा का यह किला कभी बुलन्द हुआ करता था
●चारमीनार किला के रूप में प्रसिद्ध रियासत कालीन भवन शहर के मध्य है.
छत्तीसगढ़ । कांकेर । आज खण्डहर हो चुका रियासत कालीन किला कभी बुलंद था जहां राजा स्वयं अपराधियों को सजा देते थे। इन्हें पहले यहां निर्मित जेलखाने में आरोपियों को रखा जाता है। यह जेल खाना भले ही ध्वस्त हो चुका है लेकिन इसमें लगी लोहे की मोटे मोटे छड़ इस बात का आज भी गवाह है कि प्रजा के हित में राजा या फिर उनके मंत्री या कारिंदे सजा देने में कमी नही करते थे। रियासत काल में राजा को भगवान का दर्जा मिला हुआ था। वे मृत्युदण्ड या सजा माफ करने का अधिकार रखते थे। चारमीनार किला के रूप में प्रसिद्ध रियासत कालीन भवन शहर के मध्य में स्थित है। कभी इंसाफ का मंदिर रह चुके इस किला का स्वरूप कचहरी में बदल चुका है। आज भी तहसील प्रशासन के नुमाइन्दे यहां बैठते है और मजिस्ट्रीयल अधिकार का उपयोग करते हुए सजा या दण्ड भी देते है। आज इस कचहरी को नगर पालिक प्रशासन या फिर जिला प्रशासन ने असहाय बना कर रख दिया है। इस भवन को मरम्मत एवं रंग रोगन की जरूरत थी लेकिन चारमीनार से चंद दूर रहने वाले पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष एवं वर्तमान पालिकाध्यक्ष की नजरे इस पर नही पड़ी। अपनी दुर्दशा का रोना रोए इसके पहले ही यदि इस किले कचहरी को नया स्वरूप दे दिया जाए, पूरी तरह तहसील कार्यालय के अतिरिक्त कई विभाग का कार्यलय प्रारंभ कर दिया जाए तो यह स्थल नगर की चांदनी चौक बन सकता है। बस केवल ढृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत है। जिले के चार विधायकों एवं एक सांसद से सहमति लेकर दो ढ़ाई करोड़ की लागत से भव्य परिसर बन सकता है। पुरातन पहचान के लिए इस नए भवन का नाम चारमीनार रखा जा सकता है जिस महल में कभी माल खाना, न्यायालय, नगर पालिका कार्यालय, रोजगार कार्यालय , उद्योग विभाग, संचालित होता था तथा आज भी जनपद पंचायत बन लोकसेवा केन्द्र वकील एवं अर्जिनिवेश स्टाम्प वेण्डरों की बैठने की व्यवस्था (घटिया) है तथा मजबूरी में सब समय काटते रहते हैं।
【 ●शमशीर शिवानी, ब्यूरो प्रमुख,’छत्तीसगढ़ आसपास’. ●प्रिंट एवं वेबसाइट वेब पोर्टल, न्यूज़ ग्रुप समूह,रायपुर,छत्तीसगढ़. 】