सुरता : •आज़ लोक संगीत सम्राट स्व.खुमान साव की पुण्यतिथि पर विशेष.
■स्व.खुमान साव
•जनता के प्रेम को सबसे बड़ा पुरस्कार माने, खुमान जी.
•ऊपर से कठोर और अंदर से नम्र स्वभाव के थे,खुमान जी.
•राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ ब्लॉक के ग्राम खुर्सी टिकुल में 5 सितंबर 1930 को जन्में, खुमान जी.
•शिवलोक में लीन हुए 9 जून 1920 को खुमान जी.
-आलेख,ओमप्रकाश साहू ‘अंकुर’
[ सुरगी,राजनांदगांव, छत्तीसगढ़ ]
●स्व.खुमान साव जी :
कोई भी क्षेत्र विशेष की संस्कृति उस क्षेत्र (अंचल) के लोगों की पहचान होती है. उसी में उसकी आत्मा रची बसी होती है. यह जब अभिव्यक्त होकर लोगों के सामने आती है तो लोग भाव विभोर होकर उसका रसपान करने लगते हैं. अपनी संस्कृति का दर्शन कर लोगों को बहुत सुकून मिलता है.
ढाई करोड़ की आबादी वाले छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति, लोक परंपराएं, लोक पर्वों, लोक नृत्यों, लोक कलाओं एवं लोक गाथाओं की एक विशिष्ट पहचान है. छत्तीसगढ़ की माटी की महक को भारत ही नहीं अपितु विदेशों में बिखेरने वाले कला साधकों में स्व. देवदास बंजारे, स्व. हबीब तनवीर, स्व. झाड़ू राम देवांगन, श्रीमती तीजन बाई, स्व. मदन निषाद, स्व. दाऊ रामचंद्र देशमुख, स्व. दुलार सिंह साव मंदराजी, लालू राम साहू, स्व. महासिंग चन्द्राकार, स्व. लक्ष्मण मस्तुरिया, केदार यादव, स्व. गोविन्द राम निर्मलकर, पूना राम निषाद, माला बाई, फिदा बाई ऋतु वर्मा, ममता चन्द्राकार, कविता वासनिक, पूनम विराट, दीपक चन्द्राकार, रामाधार साहू, एवं लोक संगीत सम्राट
स्व. खुमान लाल साव के नाम अग्रणी है.
जब छत्तीसगढ़वासी फिल्मी संस्कृति की चकाचौंध में अपनी समृद्ध लोक संस्कृति को भूलते जा रहे थे. ऐसी स्थिति में नाचा के भीष्म पितामह स्व. दुलार सिंह साव मंदराजी, लोक सांस्कृतिक कार्यक्रम के अग्रदूत स्व. रामचंद्र देशमुख, स्व. महा सिंग चन्द्राकार, केदार यादव, लक्ष्मण मस्तुरिया, स्व. खुमान साव जैसे महामानवों ने हमारी समृद्ध एवं गौरव शाली लोक संस्कृति के संवर्धन एवं संरक्षण में अपने जीवन को समर्पित कर दिया.
संगीत में परिवारिक माहौल मिला
खुमान साव जी का जन्म 5 सितंबर 1930 को राजनांदगाँव जिले के डोंगरगाँव ब्लाक के ग्राम खुर्सीटिकुल में हुआ था. उनके पिता का नाम टीकमनाथ साव था. थे. .खुमान को लोक संस्कृति से जुड़ने में परिवारिक माहौल मिला. उनके पिता टीकमनाथ गौटिया हारमोनियम बजाते थे. बालक खुमान घर पर ही हारमोनियम बजाने का अभ्यास करने लगे. वे रामायण मंडली में हारमोनियम बजाने लगे. उनकी बड़ी मां के बेटे एवं नाचा के पुरोधा पुरुष मंदराजी दाऊ भी उन्हें हारमोनियम बजाने हेतु प्रोत्साहित करते थे. बालक खुमान 13 साल की उम्र में बसन्तपुर के नाचा कलाकारों के साथ खड़े साज में पहली बार हारमोनियम बजाया. मंदरा जी द्वारा संचालित रवेली नाचा पार्टी में वे 14 वर्ष की उम्र में सन् 1944 में शामिल हुए. उन्होंने नाचा में हारमोनियम पर लोक धुनों के माध्यम से छत्तीसगढ़ की सोंधि माटी की खूशबू बिखेरी.
सुरगी में 3 मई 2015 को माँ
कर्मा सामुदायिक भवन में
साकेत साहित्य परिषद् के 16 वें वार्षिक सम्मान समारोह में अपने
अपने उद्बोधन में साव जी ने बताया कि वे अब्दुल रहीम नामक कव्वाल के साथ हारमोनियम बजाने जाते थे. एक बार बालोद जिला के मुजगहन (जेवरतला)में मोजरा करने वाली दो औरतें आई थी. लेकिन उसकी पार्टी के हारमोनियम वादक कमजोर थे. वहां खुमान जी को हारमोनियम वादक का काम मिल गया.
आर्केस्टा के साथ ही सांस्कृतिक मंच का गठन किया
उन्होंने 1950-51 में राजनांदगांव में अार्केस्टा पार्टी भी चलाया. छत्तीसगढ़ के साथ ही महाराष्ट्र एवं मध्यम प्रदेश के विभिन्न शहरों में सफल कार्यक्रम प्रस्तुत किए. 1952 में उन्होंने सरस्वती कला मंडल का गठन किया. कला के क्षेत्र में कुछ कर गुजरने की चाहत में खुमान साव ने भैया लाल हेड़ाऊ, गिरिजा सिन्हा, रामनाथ सोनी इत्यादि लोगों के साथ मिल कर सन 1960 में शिक्षक सांस्कृतिक मंडल का गठन किया. म्युनिसीपल स्कूल राजनांदगांव में शिक्षकीय पद पर रहते हुए लगभग 30 वर्षों तक उनके संगीत निर्देशन में वहां के छात्रों ने प्रतियोगिता में परचम लहराया.
लगभग एक दशक तक अविभाजित मध्य प्रदेश में वहां के विद्यार्थियों ने राज्य स्तरीय लोक सांस्कृतिक प्रस्तुति में धाक बनाए रखा. इस दौरान राजनांदगांव में रहे फिर वे सोमनी के पास ठेकवा गांव में बस गए.
जब दाऊ रामचंद्र देशमुख ने आमंत्रण दिया
साव जी ने बताया कि उनकी घर की नौकरानी समारिन बाई ने भी नाचा में काम किया.
सन् 1952 में पिनकापार (बालोद) निवासी दाऊ रामचंद्र देशमुख के आमंत्रण पर खुमान साव मंडई के अवसर पर आयोजित नाचा में हारमोनियम बजाने पिनकापार गए. साव जी के अनुसार पिनकापार में दो साल मंडई के अवसर पर हुए नाचा कार्यक्रम का असर यह हुआ कि 1953 में रवेली और रिंगनी नाचा पार्टी का विलय हो गया. वीदित हो कि इन दोनों वर्ष ख्यातिलब्ध रवेली और रिंगनी नाचा पार्टी के संचालक के छोड़ बाकी नामी कलाकार आमंत्रित किए गए थे. ( मंदराजी महोत्सव समिति रवेली द्वारा प्रकाशित “गम्मत “1999 के लेख – नाचा के शिखर पुरुष : मंदराजी दाऊ
लेखक – खुमान साव, पृष्ठ 63- 64, संपादन – जय प्रकाश)
1971 में आकाशवाणी रायपुर में उनके संगीत निर्देशन में गाने की रिकार्डिंग हुई. भैया लाल हेड़ाऊ एवं अन्य कलाकारों ने गीत गाए. एक बार बघेरा वाले दाऊ रामचंद्र देशमुख (पिनकापार
वाले जो अब बघेरा में रहने लगे थे) ने आकाशवाणी रायपुर से खुमान साव एवं उनके कलाकारों के गीतों को सुना . उनके संगीत से प्रभावित होकर दाऊ जी ने खुमान साव को बघेरा बुलाया. दाऊ जी उस समय छत्तीसगढ़ के छुपे हुए लोक कलाकारों को तराशने का काम कर रहे थे. वे चन्देनी गोंदा में हारमोनियम वादक के रुप में सम्मिलित कर लिए गए. 1971 में चन्देनी गोंदा का प्रर्दशन बहुत ही शानदार रहा. चन्देनी गोंदा के प्रसिद्धी में संगीत पक्ष का अहम योगदान रहा है जिसमें साव जी की भूमिका स्तुत्य है. खुमान के संगीत एवं लक्ष्मण मस्तुरिया, केदार यादव, कविता वासनिक जैसे अन्य मधुर
आवाज के धनी लोक गायक गायिकाओं के बल पर चन्देनी गोंदा का संगीत पक्ष इतना सुदृढ़ हो गया कि सोने पे सुहागा हो गया.
इस दौरान खुमान साव जी ने अपने कलाकारों के साथ घर में ही 27 गाना रिकार्ड करवाए और रमेश राय के माध्यम से आकाशवाणी रायपुर गया. इस दौरान लोक संगीत के संबंध में प्रसिद्ध उद्घोषक केसरी प्रसाद बाजपेयी से तकरार भी हो गया. बाद में कैसेट को बाजपेयी ने भी सराहा.
बुढ़ापा में भी संगीत का जुनून रहा
दाऊ रामचंद्र देशमुख द्वारा चन्देनी गोंदा को विसर्जित करने के बाद 1980 से 2019 तक (39 वर्ष) वे निर्बाध गति से चन्देनी गोंदा को संचालित करते रहे. उन्होंने जिस प्रकार से लोक संगीत के माध्यम से छत्तीसगढ़ का मान बढ़ाया है वह अतुलनीय है. वे 1990 में शिक्षकीय कार्य से सेवानिवृत्त हुए और पूरी तरह लोक संगीत के लिए समर्पित हो गए.
अनुशासन प्रिय शख्स थे
लोक संगीत सम्राट स्व. खुमान साव जी से प्रथम बार मुलाकात 17 मार्च 2002 को राजनांदगांव के दिग्विजय स्टेडियम में पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग द्वार आयोजित छत्तीसगढ़ी अभिव्यक्ति इतिहास और भविष्य विषय पर आयोजित संगोष्ठी में हुआ था। वहां वह शोरगुल कर रहे कुछ जवान बच्चों को अपनी कड़क आवाज से डाट रहे थे. यह देखकर अग्रज कवि श्री महेन्द्र कुमार बघेल मधु जी ने मुझसे पूछा कि ये शख्स कौन है. बहुत ही कठोर व्यवहार लगता है. मैंने भी पहचानने में असमर्थता जाहिर की. इसी बीच कार्यक्रम की अगुवाई कर रहे गुरुवर डॉ. नरेश कुमार वर्मा जी (प्राध्यापक, हिन्दी, दिग्विजय कॉलेज, राजनांदगांव )हम लोग बैठे थे उस तरफ आए तो मैंने पूछा कि – ऊंचा कद काठी, श्वेत वस्त्र धारण किए एवं रौबदार व्यक्तित्व के धनी यह व्यक्ति कौन है ? तो वर्मा सर जी ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा है कि”- अरे! ओम प्रकाश इसे नहीं जानते? वो सामने खड़ा शख्स कोई व्यक्ति नहीं एक संस्था है. छत्तीसगढ़ लोक संगीत के पुरोधा पुरुष है. अरे भई वे” चंदैनी गोंदा” के संचालक आदरणीय खुमान साव जी है”. फिर साव जी से चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिए।
नारियल की तरह थे साव जी
दूसरी मुलाकात मानस भवन दुर्ग में आयोजित राज्य स्तरीय छत्तीसगढ़ी साहित्य सम्मेलन में हुआ ,कार्यक्रम प्रारंभ नहीं हुआ था. साहित्यकारों और कलाकारों का आगमन हो रहा था. भवन के स्वागत द्वार में आदरणीय खुमान साव जी और अन्य साहित्यकार खड़े हुए थे. मैंने खुमान सर जी सहित वरिष्ठ साहित्यकारों से आशीर्वाद लिया।
इसी बीच एक युवा साहित्यकार आए और जिन साहित्यकारों को पहचानते थे उनके चरण स्पर्श किए. और हम लोगों से खुमान साव जी तरफ इशारा करते हुए पूछने लगे कि ये कौन है? मैं खुमान सब जी का परिचय देने ही जा रहा था कि साव जी ने मेरे हाथ पकड़ते हुए रोक दिया और उस नौजवान रचनाकार से पूछा कि – “पहिली तेहा बता कोन गांव के हरस. नवजवान संगवारी ह बोलिस -मेहा बघेरा (दुरुग) के हरव, खुमान सर जी ह बोलिस -तेहा बघेरा के हरव कहिथस त में कोन हरव तेला तोला जाने ल पड़ही, अऊ मोर नाम नई बता पाबे ते तोला मारहू किहिस, वहू नवजवान ह सकपगागे। ”
फिर इस दौरान चूंकि खुमान साव जी के अख्खड़ स्वभाव से मैं परीचित हो चुका था। देरी न करते हुए बताया कि आपके सामने जो महामानव तन कर खड़ा हुआ है वह और कोई नहीं लोक संगीत के के भीष्म पितामह श्री खुमान साव जी है।वह नए रचनाकार कर यह सुन कर गदगद हो गए और श्रद्धा से पांव छुए और कहा कि आज मैं आपके दर्शन पाकर धन्य हो गया। और साव जी ने पुत्रवत भाव से उसके सर पर हाथ रखते हुए उसे आशीर्वाद प्रदान किया। इस बीच चार पांच वरिष्ठ साहित्यकार इस प्रसंग पर मंद मंद मुस्कुराते रहे.
फिर खुमान साव जी अत्यन्त विनम्र भाव से कहा कि-” तेहा बघेरा के हरो केहेस तेकर सेती तोला केहेंव कि मोला जाने ल पड़ही ।फेर वो नव जवान ल पूछिस कि -दाऊ रामचंद्र देशमुख ल जानथस? वो ह बोलिस हाव. फेर पूछिस विश्वंभर यादव मरहा ल जानथस? त वोहा फेर कहिस कि हाव जानथव।”
“साव जी बोलिस ओकर घर म रिहर्सल चले त महू ह डेरा डारे रहव. हारमोनियम बजाव. तेकर सेती तोला केहेंव रे बाबू कि मोला जाने ल पड़ही?”
तो इस घटना से यह पता चलता है कि साव जी उस नारियल की भांति थे जो बाहर से बहुत ही .कठोर नजर आते थे परन्तु अंदर से बहुत ही नम्र थे.
उनके द्वारा संचालित चन्दैनी गोंदा की प्रस्तुति को देखने का सौभाग्य मुझे भरदाकला (बालोद जिला ) में प्राप्त हुआ था. हमारे गांव सुरगी के बहुत सारे कला प्रेमी भी भरदाकला पहुंच कर विराट सांस्कृतिक प्रस्तुति के दर्शन का पुण्य लाभ उठाए थे। खुमान साव जी के मधुर संगीत से सजे विभिन्न गीतों को जब लोक गायकी में दक्ष गायक- गायिका के कोकिल कंठी आवाज गाते और उसमें नृत्य की मनोहरी छटा मन को झंकृत कर दिए थे. बारहमासी गीत के माध्यम से छत्तीसगढ़ की सोंधि सोंधि माटी की महक को बिखेरे वहीं भारत की आजादी की लड़ाई को प्रस्तुत कर लोगों में शहीदों के प्रति श्रद्धा भाव जगाने के साथ ही
देश प्रेम की अलख जगाए। पूरी रात भर दर्शक टक बांध कर चन्दैनी गोंदा की प्रस्तुति को देखते रहे.
जब साकेत के वार्षिक समारोह में पहुंचे
साकेत साहित्य परिषद के रचनाधर्मीयों के प्रति वे बहुत वात्सल्य भाव रखते थे .वर्ष 2012 में मॉ भवानी मंदिर करेला धारा डोंगरगढ़ के प्रांगण में आयोजित 13 वॉ वार्षिक समारोह में उनका प्रथम बार आगमन हुआ .
अखबारों में साकेत के वार्षिक समारोह के समाचार को पढ़कर वे करेला पहुंचे थे . माता के दर्शन के साथ ही साहित्य के प्रति अनुराग और साहित्यकारों के प्रति सम्मान भाव के चलते वे वहां पहुंचे थे . माता के दर्शन कर वे सीधे श्रोता दीर्घा में पहुंच गए. साकेत में हम सभी जिम्मेदार सदस्य खुमान सर जी के पास पहुंचकर आशीर्वाद लिए और हाथ जोड़कर मंच में विराजमान होने के लिए निवेदन किए.
लेकिन स्वाभिमानी खुमान सर मंच पर जाने से मना कर दिया और ज्यादा जिद करने पर अपनी चिरपरिचित अख्खर स्वभाव में आ गए और बोले” तुमन अपन काम करव अऊ मेहा अपन काम करत हव. तुमन ज्यादा ब्रेक मत लेन. मेहा मंच मा नई जाव क्रेन न मतलब नइ जाव. ”
इतने रौबदार आवाज सुनने के बाद अब किसी की हिम्मत नहीं हुई कि उनसे और निवेदन कर सकें .
इस दौरान साकेत के सदस्यगण असहज महसूस करते रहे छत्तीसगढ़ लोक संगीत के पुरोधा पुरुष मंच के नीचे बैठे हुए हैं लेकिन खुमान तो खुमार ठहरे न. और इस बीच में इत्मीनान से घंटों बैठकर साहित्यकारों के विचार सुनते रहे .इसे हम मां भवानी की कृपा ही कह सकते हैं कि साव जी का सानिध्य हम सबको मिल पाया .
सुरगी में सुनाए अपनी कला यात्रा के साथ रोचक संस्मरण
जनता के प्रेम को ही सबसे बड़ा सम्मान मानते थे
इसी प्रकार वर्ष 2013 में सुरगी के ग्राम पंचायत भवन में आयोजित साकेत के 14 वां वार्षिक समारोह में पहुंचकर सभी साहित्यकारों को अनुग्रहित किए यहां उन्होंने संस्मरण सुनाने के साथ ही साहित्यकारों का उत्साहवर्धन भी किया.
साकेत का 16 वॉ वार्षिक सम्मान समारोह वर्ष 2015 में सुरगी के कर्मा भवन में आयोजित किया गया इस समारोह में खुमान सर जी को साकेत सम्मान 2015 से सम्मानित किया गया .इस दौरान उन्होंने चंदैनी गोंदा से संबंधित मनोरंजक संस्मरण सुना कर घंटों तक बांधे रखा .उत्तरप्रदेश में चन्दैनी गोंदा की प्रस्तुति के दौरान कलेक्टर की पत्नी को देवता आ जाना . फिर दूसरे दिन कलेक्टर द्वारा साव जी को सम्मानित करना. इस प्रसंग को सुनाने का अंदाज ही निराला था. उन्होंने अपने उद्बोधन से सब को भावविभोर कर . खुमार सर किहिस – “मोला जनता से जउन परेम मिलथे उही हा मोर बर सबसे बड़े सम्मान हरे, आज तक मेरा राज्य सम्मान अऊ पद्म सिरी के लिए आवेदन नई करे हंव न भविष्य म कहीं. हॉ शासन हा मोला स्वेच्छा से सम्मान देना चाहय त दे सकथे .
आप मन के बीच ये साकेत सम्मान ले सम्मानित होत हंव वोहा कोनो राज्य अलंकरण अऊ पद्मश्री से कम नइ हे . छत्तीसगढ़ के लाखों जनता के परेम ही मोर सबसे बड़े सम्मान हरे .”
इसी प्रकार वर्ष 2016 में सुरगी के मुख्य सांस्कृतिक मंच (शनिवार बाजार चौक) में 17 वां वार्षिक सम्मान समारोह का आयोजन किया गया. इसमें 87 वर्षीय खुमान साव जी को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार 2015 हेतु चयन किए जाने पर नागरिक अभिनंदन किया. लोक संगीत के इस पुरोधा पुरुष ने 89 वर्ष की अवस्था में 9 जून 2019 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया. लोक कला के इस शिल्पी को उनकी द्वितीय पुण्य तिथि विनम्र श्रद्धांजलि है. शत् शत् नमन है.
●ओमप्रकाश साहू ‘अंकुर’
[ लेखक संपर्क-7974666840 ]