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■सेल कर्मचारियों की 30 जून की सफ़ल हड़ताल के बावजूद सरकार व प्रबंधन के कानों में जूं तक नहीं रेग रही.
■श्यामलाल साहू,महासचिव, सेंटर ऑफ़ स्टील वर्कर्स यूनियन [ऐक्टू] के महासचिव ने कहा-
■कर्मियों की जायज़ मांग [15%,35%,9%] हासिल करना NJCS के लिए शेर के मुंह से उसका शिकार छीनने जैसा है.
भिलाई
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अभी तक श्रम-संघों की शिकायत रही थी कि सेल और खाशकर बीएसपी भिलाई के कर्मचारी आंदोलनों में श्रम-संघों का साथ नहीं देते जिसके कारण प्रबंधन से अपनी मांगें पूरी करवाने में श्रम-संगठन असहाय महसूस करते हैं।
उनकी यह शिकायत भी गलत नहीं थी, क्योंकि पिछले लगभग 28 सालों में भिलाई की श्रमिक बिरादरी ने ट्रेडयूनियनों के आव्हान पर कभी भी जमीनी संघर्षों में उतरने या हड़तालों में भाग लेने का ज़हमत नहीं उठाया था और न ही ट्रेडयूनियन की राजनीति को कभी समझने का प्रयास किया। जबकि हक़ीक़त यही है कि ट्रेडयूनियनें ही श्रमिक राजनीति के वाहक होते हैं और श्रमिकों कुछ भले-बुरे का चिंतन कर श्रमिकों को जमीनी हक़ीक़त से अवगत कराकर उन्हें सजग करते हैं और ज़रूरत पड़ने पर आंदोलन के लिए तैयार रहने के लिए सावधान करते हैं। लेकिन इसमें श्रम-संघों द्वारा कर्मियों को समझने-समझाने में भी कमी रही है।
वस्तुतः इसके पहले के आंदोलनों में जितने भी मुद्दे रहे, प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से कर्मियों के हित में रहते हुए भी कर्मियों को प्रभावित व उद्वेलित नहीं कर सके थे। यही नहीं, यहाँ के कर्मचारी श्रम-अधिकारों की जानकारी से हमेशा वंचित रहे और अपने अधिकारों के लिए संघर्षों में उतरने की परंपरा ही खत्म हो गई थी और यह सब भिलाई में लंबे समय तक एमपीऔर बाद में सीजी आईआर एक्ट के तहत् एकछत्र मान्यता में रही इंटक यूनियन की प्रबंधनपरस्ती और श्रमिकविरोधी कारस्तानियों का नतीजा था। किंतु इस बार मुद्दा ही कुछ ऐसा था जो कर्मियों को प्रत्यक्ष और अंदर तक उद्वेलित कर रहा था।
कर्मियों में लंबे समय से लंबित वेतन समझौता सम्मानजनक तरीके से न हो पाने और प्रबंधन के अड़ियल और कर्मचारी विरोधी रवैय्ये से जबर्दस्त नाराजगी और आक्रोश फैल चुका था। 30 जून को हड़ताल की तारीख़ मुकर्रर होने के बाद सेल प्रबंधन का रवैय्या कुछ नरम होने के बजाय और भी ज्यादा सख्त व टालू बन गया था और उसके इस रवैय्ये ने पहले से आक्रोशित कर्मियों को और भी आक्रोशित कर आग में घी डालने का काम किया।
अगर हड़ताल के अंतिम क्षणों में भी सरकार और सेल प्रबंधन चाहता कि कर्मियों की जायज मांग उन्हें दे दिया जाये, और आश्वस्त कर देता तो भी यह हड़ताल टल गई होती और उत्पादन ठप होने से हुए एक बड़े नुकसान को रोका जा सकता था। किंतु लंबे समय तक देश भर के आंदोलित किसानों के आंदोलन से न पिघलने वाली सरकार को यह गवारा कैसे हो सकता था कि सेल कर्मियों को उनका वाजिब हक दे दिया जाये। सो उसने और उसके कार्पोरेट आक़ाओं ने सेल प्रबंधन को स्पष्ट निर्देश दे रखा था कि कर्मियों को बिल्कुल भी भाव न दें। सेल प्रबंधन ने भिलाई प्रबंधन को निर्देशित कर रखा था कि हड़ताली कर्मियों के साथ हर तरह की सख्ती बरतें।
और इस तरह भिलाई प्रबंधन ने पुलिस प्रशासन का बेज़ा इस्तेमाल करते हुए कर्मियों को डरा-धमकाकर हड़ताल में शामिल होने से रोकने और हड़ताल को को बाधित करने की अपने तईं भरपूर कोशिश की। लेकिन इस बार कर्मियों में प्रबंधन के रवैय्ये से इतना जबर्दस्त आक्रोश फैल चुका था कि प्रबंधन के सारे दुष्प्रयास असफल रहे और भिलाई के इतिहास के नजरिए से देखें तो हड़ताल शत्-प्रतिशत सफल रही जिसके लिए भिलाई के कर्मी हार्दिक बधाई व धन्यवाद के पात्र हैं।
इस तरह भिलाई के कर्मियों सहित सेल की तमाम इकाइयों में हड़ताल 90% से ज्यादा सफल रही। इस बार कर्मियों ने एनजेसीएस में शामिल यूनियनों की यह शिकायत दूर कर दी है कि वे अपने अधिकारों के लिए संघर्षों में नहीं उतरते। अब कर्मियों ने गेंद पूरी तरह एनजेसीएस के पाले में डाल दिया है और प्रबंधन के आगे किसी भी तरह न झुकने की पूरी जुगत कर दी है और अब एनजेसीएस में शामिल यूनियनों में जरा भी ग़ैरत है और वे अपनी साख और कर्मियों में अपनी पकड़ बनाए रखना चाहते हैं, कर्मियों के विश्वास को बनाए रखना चाहते हैं तो उन्हें भी कुर्बानियांँ देनी होंगी। उन्हें सेल प्रबंधन की छाती पर चढ़ जाना होगा। और अगर वे ऐसा करने में हिचकते हैं तो उन पर से कर्मियों का विश्वास हमेशा के लिए खत्म भी हो सकता है। और अगर ऐसा हुआ तो यह श्रमिक बिरादरी के भविष्य के लिए बहुत बड़ी क्षति होगी।
हालॉकि केंद्र में बैठी बेरहम, बेशरम, पूर्णतः कर्मचारी व श्रमिक विरोधी और क्रूर सरकार और उनके कार्पोरेट आक़ाओं से निर्दशित सेल प्रबंधन से कर्मियों का वाज़िब हक हासिल करना बहुत आसान नहीं लगता। हड़ताल की शत्-प्रतिशत सफलता के बावजूद सेल प्रबंधन की आश्चर्यजनक चुप्पी यही बता रही है कि कर्मियों की ज़ायज़ मांग (15%, 35%, 9%) हासिल करना एनजेसीएस के लिए शेर के मुँह से उसका शिकार छीनने जैसा है।
[ ●प्रेस नोट समाचार विभाग,’छत्तीसगढ़ आसपास’. ●प्रिंट एवं वेबसाइट वेब पोर्टल, न्यूज़ ग्रुप समूह,रायपुर, छत्तीसगढ़. ]
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