■देश-विदेश के प्रतिष्ठापूर्ण मंचों पर हिंदी को स्थापित किया डॉ. महेशचंद्र शर्मा.
[ 14 सितंबर राष्ट्रभाषा एवं राजभाषा हिंदी गौरवदिवस पखवाड़ा एवं मास पर विशेष. वैसे तो हमारा पूरा जीवन ही मातृभाषामय है. हिंदी के बिना हम पारिवारिक और सामाजिक जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते.
14 सितंबर से हिंदी गौरव दिवस, पखवाड़ा और मास भी मनाया जाएगा. ]
♀ एक चिंतनशील लेखक,साहित्य-संस्कृति मर्मज्ञ औऱ शिक्षाविद आचार्य डॉ. महेश चंद्र शर्मा प्रायःआधी शताब्दी से राष्ट्रभाषा-राजभाषा हिन्दी की सेवा में समर्पित हैं। पठन-पाठन और अनुसन्धान कार्य आपने हिन्दी में ही किया है। उनके 500 से अधिक लेख,आलेख,ललितलेख, समीक्षालेख और शोधालेख राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित हैं।
डा.शर्मा की 10 पुस्तकें भी प्रकाशित हैं। छत्तीसगढ़ राज्य हिन्दी ग्रन्थ अकादमी रायपुर,नेशनल बुक ट्रस्ट नयी दिल्ली, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग नयी दिल्ली आदि के अलावा अनेक विश्वविद्यालयों एवं अन्य शिक्षणसंस्थानों ने भी डा.शर्मा के लेखों और पुस्तकों को प्रकाशित किया है। राष्ट्रभाषा अलंकरण से सम्मानित डा.शर्मा की भाषा में जितनी सहजता है,उनके व्यक्तित्व में उतनी ही सरलता है। केन्द्रीय संस्थानों बैंकों,भिलाई इस्पात संयन्त्र, और नेशनल फैरो स्क्रैप निगम भिलाई आदि उनके उद्बोधन प्रभावी एवं मार्गदर्शी रहे हैं।
केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय भारत सरकार नयी दिल्ली , पारिभाषिक शब्दावली कार्यशाला , बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय एवं बख्शी सृजन पीठ भिलाई की तकनीकी शब्दावली कार्यशालाओं के वे विशेषज्ञ भी रहे हैं।
डा.शर्मा का विचार है कि इलैट्रानिक और प्रिण्ट मीडिया के योगदान से भी हिन्दी का विकास होता है। कुछ पत्र-पत्रिकाओं में उनके धारावाहिक लेख-‘भारत की सांस्कृतिक विरासत ‘ एवं ‘ साहित्य में व्यंग्य विनोद’ के प्रकाशन किये।
आकाशवाणी पत्रिका ‘विविधा’ का सम्पादन एवं संचालन का अवसर भी उन्हें मिला। महाविद्यालय की पत्रिका ‘व्यंजना’ के सम्पादक भी वे रहे। डा.शर्मा ने बताया कि भाषा में सरलता, शुद्धता, पारदर्शिता , सार्थकता , स्पष्ट उच्चारण और शब्दकोष की विशेष महत्ता है। व्याख्यानों और लेखों में इससे बहुत लाभ मिलता है।
यहाँ यह विशेष उल्लेखनीय है कि डा.शर्मा ने संस्कृति और साहित्य के प्रसंग में अनेक देशों के सफल भ्रमण किये। लन्दन में 1998 में सम्पन्न अन्तर्राष्ट्रीय जगन्नाथ संगोष्ठी में हिन्दी में अपना शोधालेख पढ़ा। हिन्दी की अन्तर्शक्ति को उन्होंने एकबार पुनः विश्वमंच पर रखा। देश-विदेश उन्हें खूब सराहा गया।
आचार्य डा.शर्मा बताते हैं कि देवनागरी लिपि भी हिन्दी की बड़़ी शक्ति है।उसकी संकृत पृष्ठभूमि भी उसकी ताक़त है।आज हम स्वतन्त्रता वर्ष अमृत महोत्सव मनारहे हैं। भाषायी राष्ट्रीय एकता की बात करें तो सोच बड़े काम का है। अनेकानेक भारतीय भाषाओं से जुड़ी हुई दिखाई देती है।
राष्ट्रकवी मैथिलीशरण गुप्त की पंक्तियाँ याद आ गयीं —
है भव्य भारतभूमि हरी-भरी, हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा और लिपि है नागरी ।
डा. शर्मा लन्दन में दिये अपने हिन्दी भाषण का समर्थन और प्रशंसा करनेवाले ब्रिटिश मित्र श्री डेरिक मूर को अभी तक नहीं भूल पाये। इसीप्रकार विश्वप्रसिद्ध हिन्दीप्रेमी बेल्जियम के निवासी जो बाद में भारत आये और यहीं के होके रह गए। वाल्मिकी और तुलसी के माध्यम से श्रीराम के भक्त होगये –राँची में रचे बसे पद्मविभूषण दादा कामिल बुल्के से में नहीं मिलसका। अब वे दिवंगत हैं। …हाँ उनके प्रिय शिष्य डा.हेल्मुट हायमर से मिल लिया ज़र्मनी में। हिन्दी में खूब बतियाये दौनों। मुझे उनहोंने कुछ साहित्य भी भेंट किया।
डा.शर्मा आगे बताते हैं कि-भारत समेत पूरे विश्व में एसे असंख्य मित्र हैं। भारत में केरल से डा.जी. गंगाधरन नायर प्रोत्साहन देते हैं, तो कश्मीर से डा. बद्रीनाथ कल्ला। उधर भारत में पोलैंड गणतन्त्र के तत्कालीन राजदूत प्रो.मारिया ख़्रिस्तोव बृस्की इस छोटे-से हिन्दी सेवक के “कार्यों से प्रभावित होकर, श्लाघनीय प्रयत्नों पूरी सफलता की शुभकामना ” देते हैं। इस जन के लिये वे यह भी कहते हैं कि – “भारत में मेरा रहना आप जैसे मित्रों के कारण लाभदायक सिद्ध हुआ है।” वस्तुतः ये उनका बड़प्पन हैं, हिन्दी को इसका श्रेय है।
वास्तव में खुसरो के समय से शुरू हुई थी हिन्दी , आज भी प्रायः वैसी है।आईये हम सब अपनी इस भाषा का आदर करें । इसे और अच्छे से जानें और मानें।मन की भषा में मन की बात करें। जय भारत ! जय भारती !!
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