देश के इन जंगलों में पेड़ों से निकल रहा पीला सोना, जाने क्या है पूरा मामला
लातेहार जिले के महुआडांड़ के जंगलों में काफी संख्या में महुआ के पेड़ हैं। इनसे पीला सोना टपक रहा है। ग्रामीण कहते हैं कि जंगल के वनपोज में सबसे ज्यादा आय महुआ से है। इसको ग्रामीण पीला सोना भी कहते हैं। महुआ गिर रहा है।
इस कारण सुबह-सवेरे जंगलों में लोगों की चहल-पहल बढ़ जाती है। ग्रामीण लाइट, लाठी और महुआ रखने के लिए टोकरी लेकर निकल पड़ते हैं। पेड़ के नीचे खाना-पीना एवं विश्राम करते ग्रामीणों को देखा जा सकता है। इन्हें जानवरों को महुआ खाने से रोकना पड़ता है. हर साल हजारों ग्रामीण परिवार के जीवनयापन का ये जरिया है। महुआ चुनकर आंगन में सुखाकर फिर उन्हें बेचते हैं।
पीटीआर के जंगल और महुआडांड़ वन प्रक्षेत्र में मार्च से अप्रैल तक हर रोज कहीं न कहीं धुआं अक्सर नजर आ जाता है। नेतरहाट, दूरूप, हामी, अक्सी, कुरुंद, ओरसापाठ, सोहर आदि के जंगल क्षेत्र में इन दिनों महुआ चुनने के लिए ग्रामीण सूखे पत्ते में आग लगा रहे हैं। जंगल में धुआं छाया हुआ है। यही आग कभी-कभी जंगल के बड़े हिस्से फैल जाती है। इससे छोटे पौधे एवं बीज नष्ट हो जाते हैं, जबकि सांप, बिच्छू एवं अन्य जंगली जीव जलकर मर जाते हैं।
आदिवासी जीवन में महुआ रचा बसा है। जन्म से लेकर मृत्यु तक एवं त्योहारों में महुआ शराब की डिमांड होती है। महुआ से कई प्रकार के व्यंजन भी तैयार होते हैं। बीते साल महुआ पांच हजार रुपए प्रति क्विंटल तक बिका था। यह कोरोना में ग्रामीणों के लिए आय का बड़ा स्रोत बना था।