▶️ जब चले दिवाने तिरंगा फहराने : 11 सितम्बर 1990 को विद्यार्थी परिषद की कशमीर बचाओ रैली की यादें – अनंत थवाईत [चांपा, छत्तीसगढ़]
जम्मू-कश्मीर की चर्चा आते ही 32 वर्ष पूर्व आज ही के दिन 11 सितंबर को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की जम्मू-कश्मीर रैली का दृश्य आंखों मे किसी चलचित्र की भांति सजीव हो उठता है ।
एक ओर नब्बे के दशक मे तत्कालीन वी पी सरकार के मंडल कमीशन को लेकर आरक्षण के खिलाफ देश मे युवाओं का गुस्सा बढ़ रहा था । जगह जगह हिंसक घटनाएं हो रही थी तो दूसरी ओर कश्मीर की घाटी से हिन्दुओं को निकाला जा रहा था । माताओं बहनों पर अत्याचार तथा बालात्कार की घटनाएं बढ़ती जा रही थी । ऐसे समय मे विद्यार्थी परिषद ने पूरे देश का ध्यान कश्मीर की ओर खींचने के लिए “कश्मीर चलो ” का नारा देते हुए 11 सितंबर को श्री नगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने की घोषणा की । विद्यार्थी परिषद के आव्हान पर पूरे देश से लगभग दस हजार की संख्या मे कार्यकर्ता जम्मू पहुंचे । चूंकि मैं उस समय विद्यार्थी परिषद चांपा इकाई अध्यक्ष था इस नाते अपनी जिम्मेदारी को महसूस करते हुए जम्मू रैली मे शामिल होने का निर्णय किया और विद्यार्थी परिषद के चांपा इकाई सचिव संतोष थवाईत के साथ जम्मू रवाना हुआ। जम्मू-कश्मीर रवाना होने के पहले अविभाजित मध्यप्रदेश के तत्कालीन केबिनेट मंत्री बलिहार सिंह जी , जिला संघ चालक छोटे लाल स्वर्णकार जी जांजगीर के पूरनमल अग्रवाल जी तथा विद्यार्थी परिषद एवं युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं परमेश्वर स्वर्णकार , कार्तिकेश्वर स्वर्णकार , प्रदीप नामदेव, सलीम मेमन, महावीर सोनी , अतुल पटेल ,संजय केसरवानी ,संतोष सोनी आदि ने हमें फूलमाला पहनाकर विदा किया था । उस वक्त कश्मीर जाने वालों के साथ कब क्या घटना घट जाए कुछ कहा नहीं जा सकता था । इसलिए कश्मीर जाने वाले विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं को “बलिदानी जत्था” के नाम से पुकारे जाने लगा था ।
10 सितंबर को जब जम्मू की सड़कों पर विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं ने “देश है पुकारता पुकारती मां भारती ,रक्त से तिलक करो गोलियों से आरती ” का गगन भेदी नारा लगाते हुए रैली निकाली तो जम्मू के लोगों ने फूलों की वर्षा से उनका स्वागत किया । घाटी से जबरन भगाए गए लोग जो जम्मू मे आकर रुके थे वे भी परिषद के कार्यकर्ताओं के स्वर मे स्वर मिलाते हुए रैली मे शामिल हुए । जम्मू मे रैली निकालने के बाद कार्यकर्ता रात्रि मे ही उधमपुर रवाना हुए । फिर 11 सितंबर को उधमपुर में रैली निकाली गई । और कार्यकर्ता श्रीनगर के लाल चौक मे तिरंगा फहराने की घोषणा करते हुए आगे बढ़े तो आठ दस किलोमीटर बाद सुरक्षा बलों ने कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ने से रोक लिया । और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करके अस्थाई जेलों मे रोक दिया । उधमपुर मे ही परिषद के राष्ट्रीय पदाधिकारियों ने निर्णय लिया कि लाल चौक पर जब हमें तिरंगा फहराने के लिए रोका जा रहा है तो क्यों न इस तिरंगा को प्रधानमंत्री के हाथों सौंप कर उन्हें ही तिरंगा फहराने का अनुरोध किया जाय । दूसरे दिन विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता दिल्ली आए और दिल्ली मे रैली निकालकर तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह को उनके निवास मे उनके हाथों मे तिरंगा सौंपा गया ।
कश्मीर से धारा 370 हटाने की मांग करते हुए तथा लाल चौक मे तिरंगा फहराने के लिए आयोजित उक्त रैली मे शामिल होने की बात भले ही आज तीस इकतीस वर्ष हो गए हैं लेकिन जब जब कश्मीर की चर्चा होती है तो ऐसा लगता है कि कुछ दिन पहले की ही बात हो । इसका एक कारण यह भी है कि 1990 के बाद मैं अपने मित्रों के साथ दो बार जम्मू-कश्मीर का भ्रमण कर चुका हूं । खैर…..!
अब तो प्रधानमंत्री मोदी जी के दृढ़ निर्णय के चलते कश्मीर से धारा 370 हटा दी गई है । और कश्मीर की फिजा बदल रही है । अब बदली हुई कश्मीर को देखने की इच्छा मेरे मन मे जरुर है ।
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