इलाहबाद हाईकोर्ट : अग्रिम विवेचना से समाप्त नहीं होती पूर्व में की गई विवेचना..
प्रयागराज [छत्तीसगढ़ आसपास न्यूज़] : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी आपराधिक मामले में अग्रिम विवेचना का आदेश होने से पूर्व में की गई विवेचना का प्रभाव समाप्त नहीं हो जाता है। अग्रिम विवेचना एक तरीके से पूर्व में की गई विवेचना की निरंतरता है। यदि दोनों विवेचनाए परस्पर विरोधाभासी है तो मजिस्ट्रेट का यह कर्तव्य है कि वह दोनों विवेचनाओं को बराबर सम्मान दें। मजिस्ट्रेट को दोनों जांच रिपोर्ट एक साथ पढ़नी चाहिए और यदि वह इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि अभियुक्त द्वारा अपराध नहीं किया गया है तो वह अभियुक्त को उन्मोंचित कर सकते हैं।
आगरा के सुमित अग्रवाल व अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति डॉ गौतम चौधरी ने दिया। याची के खिलाफ दहेज हत्या व दहेज उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज है। जिसमें यूपी पुलिस चार्जशीट दाखिल कर चुकी है, जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से इस मामले की जांच सीबीआई ने भी की और सीबीआई ने जांच के बाद फाइनल रिपोर्ट लगा दी। याची का कहना था कि सीबीआई की जांच में उसके खिलाफ अपराध साबित नहीं हुआ इसलिए मुकदमे की कार्रवाई को रद्द किया जाए।
जबकि सरकारी वकील का कहना था कि इस मामले में सीबीआई की रिपोर्ट आने से काफी पहले मजिस्ट्रेट द्वारा पुलिस की चार्जशीट पर संज्ञान लिया जा चुका है। यह भी कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने अग्रिम विवेचना का आदेश देते हुए पूर्व में की गई विवेचना को खारिज नहीं किया है।
कोर्ट ने कहा कि अग्रिम विवेचना का एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है इसका पूर्व में की गई विवेचना पर प्रभाव नहीं पड़ता है। यह एक प्रकार से पूर्व में की गई विवेचना की निरंतरता है। मजिस्ट्रेट को दोनों रिपोर्ट साथ में पढ़ करके निर्णय लेना चाहिए।कोर्ट ने कहा कि इस स्थिति में अदालत के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत इस मामले में हस्तक्षेप करने का औचित्य नहीं बनता है। यदि चाहे तो उचित स्तर पर धारा 227 सीआरपीसी के तहत हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर सकता है। इस निष्कर्ष के साथ कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
मामले के अनुसार मृतका प्रीति के पिता ने आगरा के ताज गंज थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि उनकी बेटी की शादी अभियुक्त सुमित के साथ हुई थी। शादी में डेढ़ करोड़ रुपए उन्होंने खर्च किए थे। इसके बावजूद ससुराल वाले दहेज की मांग को लेकर प्रीति को प्रताड़ित करते थे। उसे मारा पीटा जाता था। 3 अगस्त 2020 को भी प्रीति को ससुराल वालों ने मारा पीटा था। उसे गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती किया गया जहां 6 अगस्त 20 को उसकी मृत्यु हो गई। इस मामले में हाईकोर्ट ने पति सुमित के अतिरिक्त अन्य ससुराली जनों की अग्रिम जमानत स्वीकार कर ली थी। मगर शिकायतकर्ता की ओर से मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रकरण की अग्रिम विवेचना सीबीआई को करने का आदेश दिया। सीबीआई ने जांच पूरी कर फाइनल रिपोर्ट लगा दी जबकि इससे पूर्व यूपी पुलिस इस मामले में जांच कर चार्जशीट दाखिल कर चुकी थी। जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी।
[ •राजन कुमार सोनी, छत्तीसगढ़ हेड न्यूज़ प्रभारी ]
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