






विशेष : दिल्ली दंगों के 5 साल : किसी को सज़ा, किसी को इनाम – आलेख, मुकुल सरल
दिल्ली दंगे की पांच साल कहानी अगर एक लाइन में समझनी हो, तो सिर्फ़ इतनी है कि एक आरोपी उमर ख़ालिद को अभी तक ज़मानत नहीं मिली है और एक आरोपी (हालांकि दिल्ली पुलिस उन्हें आरोपी नहीं मानती) कपिल मिश्रा विधायक बनकर दिल्ली के क़ानून व न्याय मंत्री बन गए हैं।
पांच साल पहले हुए दिल्ली के दंगे या कहें दिल्ली को जलाने की साज़िश के ज़ख़्म अभी नहीं भरे हैं…इंसाफ़ नहीं मिला है।
कहां खो गया इंसाफ़…! इन पांच सालों में क्या कुछ हुआ। कई बेगुनाह आज भी जेल की सलाख़ों के पीछे हैं और कई आरोपी आज भी बाहर हैं, आज़ाद घूम रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का टिकट लेकर विधायक और मंत्री बन गए हैं।
आज से पांच साल पहले 23 फ़रवरी से 26 फ़रवरी, 2020 के बीच दिल्ली को जलाने की साज़िश की गई थी। दिल्ली के उत्तर-पूर्वी हिस्से को हमले का शिकार बनाया गया था।
इस दंगे में क़रीब 53 लोगों की जान गई थी। सैकड़ों घायल हुए थे। चार दिनों तक चले इस दंगे में जान-माल का भारी नुक़सान हुआ था। कई घर और दुकानें जलाकर ख़ाक कर दी गईं थी।
आम बोलचाल में हम इसे दंगा कहते हैं, लेकिन सही शब्दों का इस्तेमाल किया जाए, तो यह एक हमला था। सीएए के विरोध में चले शाहीन बाग़ आंदोलन का बदला। आंकड़े इसकी गवाही देते हैं।
दिल्ली पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि मरने वालों में 40 मुसलमान और 13 हिंदू थे। लेकिन अफ़सोस इस हमले, इस दंगे के लिए भी सरकार और मीडिया ने एकतरफ़ा मुसलमानों को ही दोषी ठहराया। आज भी यही प्रचारित किया जाता है।
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल और क्राइम ब्रांच का कहना है कि दिल्ली दंगों के पीछे एक गहरी साज़िश थी, जिसकी नींव 2019 में सीएए और एनआरसी के प्रदर्शनों के दौरान पड़ी। इस साज़िश का ज़िक्र एफ़आईआर नंबर 59/2020 में किया गया है। दिल्ली पुलिस जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर ख़ालिद को दिल्ली दंगों का मास्टर माइंड मानती है। विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने दलील दी कि यह दंगा उस वक्त के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के भारत दौरे के वक्त हिंसा पैदा करने की साज़िश का हिस्सा था।
दंगों की शुरुआत उत्तर-पूर्वी दिल्ली के जाफ़राबाद में हुई थी, जहां सीलमपुर-जाफराबाद-मौजपुर मार्ग पर नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 के ख़िलाफ़ महिलाएं धरना दे रहीं थीं। उस समय भाजपा के नए नवेले नेता, कपिल मिश्रा ने दिल्ली पुलिस से सड़कों को खाली करने का आह्वान किया, जिसमें उन्होंने अपने समर्थकों की मदद से ख़ुद ऐसा करने की धमकी दी। इसके बाद ही दिल्ली में हिंसा भड़क उठी।
इसके अलावा फ़रवरी 2020 में ही हुए चुनाव में भाजपा ने तमाम कोशिशों के बाद भी मुंह की खाई थी। तमाम जानकार कहते हैं कि इस हार से भी भाजपा बौखला गई थी। (इस बार इस हार का बदला ले लिया गया है। और 27 साल बाद भाजपा पूर्ण बहुमत से एक बार फिर दिल्ली की सत्ता में आ गई है।)
इस तरह दंगों की भूमिका पहले ही बन चुकी थी लेकिन इसकी बलि चढ़े कई निर्दोष लोग।
दिल्ली दंगों की हक़ीक़त पर 2022 में चार पूर्व जजों और देश के एक पूर्व गृह सचिव ने फ़ैक्ट फ़ाइडिंग रिपोर्ट जारी की थी। रिपोर्ट ने दिल्ली पुलिस की जांच पर गंभीर सवाल उठाए थे। साथ ही केंद्रीय गृह मंत्रालय, दिल्ली सरकार और मीडिया की भूमिका पर भी सख़्त टिप्पणियां की गई थीं। इसी फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग रिपोर्ट में बीजेपी नेताओं, जैसे कपिल मिश्रा के दिए हुए भाषण के लिए कहा गया था कि उन्होंने भी लोगों को उकसाया था, जिससे हिंसा भड़की थी। सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर ने दिल्ली के पटियाला कोर्ट में एक याचिका डाल कर कहा था कि कपिल मिश्रा के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज होनी चाहिए। ये याचिका अभी कोर्ट में लंबित है।
वहीं जुलाई 2020 में दिल्ली पुलिस ने दिल्ली हाई कोर्ट में कहा था कि बीजेपी नेता कपिल मिश्रा और बाक़ी बीजेपी नेताओं के ख़िलाफ़ ऐसे कोई सबूत नहीं मिले हैं कि उनके भाषण से दंगा भड़का हो।
अब यही कपिल मिश्रा दिल्ली चुनाव में भाजपा के टिकट पर करावल नगर से चुनाव लड़कर विधायक और मंत्री बन गए है। लेकिन मीडिया में दंगों में उनकी भूमिका पर कोई चर्चा नहीं है।
तमाम मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक पुलिस ने दंगों से जुड़ी कुल 758 एफ़आईआर दर्ज की है। 2024 में छपी रिपोर्टों के मुताबिक इनमें तब तक कुल 2619 लोगों की गिरफ़्तारी हुई थी, जिनमें से 2094 लोग ज़मानत पर बाहर हैं। अदालत ने अब तक सिर्फ़ 47 लोगों को दोषी पाया है और 183 लोगों को बरी कर दिया। वहीं 75 लोगों के ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत ना होने के कारण कोर्ट ने उनका मामला रद्द कर दिया है।
दिल्ली दंगों में ड्यूटी के दौरान मारे गए हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल के मामले में दिल्ली पुलिस ने अब तक कम से कम 24 लोगों को गिरफ़्तार किया, जिनमें से 10 ज़मानत पर रिहा हो गए हैं।
वहीं इंटेलिजेंस ब्यूरो में काम करने वाले अंकित शर्मा की हत्या मामले में 11 अभियुक्त फ़िलहाल गिरफ़्तार हैं। अंकित शर्मा का शव चांद बाग़ के एक नाले में 26 फ़रवरी, 2020 को मिला था।
लेकिन जैसे फैक्ट फाइडिंग टीम का कहना है कि दिल्ली दंगों में एक और आरोपी है और वह है दिल्ली पुलिस। इन दंगों को होने देने और रोकने में देरी के लिए दिल्ली पुलिस की भूमिका पर लगातार सवाल उठे हैं। साथ ही उस पर बर्बरता के भी आरोप हैं।
सितंबर 2024 में दंगों के एक मामले में कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की ‘थ्योरी’ पर सवाल उठाते हुए 10 अभियुक्तों को सभी मामलों से बरी कर दिया था। यह सभी मुस्लिम समुदाय से थे। इन सभी अभियुक्तों पर आरोप लगाए गए थे कि दंगों के दौरान उन्होंने उत्तर पूर्वी दिल्ली के गोकुलपुरी थाने क्षेत्र के एक घर और दुकान पर हमला किया था।
दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्या प्रमचाला ने कहा कि ‘अभियुक्तों के ख़िलाफ़ लगे आरोप संदेह से परे साबित नहीं हुए।’ इन चार-पांच सालों में कई बार अदालत में सुनवाई के दौरान ऐसे मौक़े आए, जब कोर्ट ने दिल्ली पुलिस पर सख़्त टिप्पणी की और उनकी जाँच के स्तर को ख़राब बताया।
अगस्त, 2023 में दयालपुर पुलिस थाना की एफ़आईआर नंबर 71/20 केस में तीन लोगों की दंगा फ़ैलाने के मामले में हुई गिरफ़्तारी पर सुनवाई करते हुए कड़क़डूमा कोर्ट ने कहा था, ”इन घटनाओं की ठीक से और पूरी तरह से जांच नहीं की गई है। मामले में चार्जशीट पूर्वाग्रह और ग़लत तरीक़े से दायर की गई है ताकि शुरुआत में हुई ग़लतियों को छिपाया जा सके।”
सितंबर 2021 में दिल्ली के कड़कड़डूमा अदालत ने टिप्पणी की थी, ”आज़ादी के बाद हुए दिल्ली के सबसे भीषण सांप्रदायिक दंगे को इतिहास देखेगा, तो इसमें जांच एजेंसियों की नाकामी पर लोकतंत्र समर्थकों का ध्यान जाएगा कि किस तरह से जाँच एजेंसियां वैज्ञानिक तौर तरीक़े का इस्तेमाल नहीं कर पाईं।” पुलिस की इस जांच और रवैये की वजह से कई नौजवान आज भी जेलों में बंद हैं।
नवंबर 2024 की ख़बर है कि सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली दंगों की आरोपी गुलफ़िशा फातिमा को अपनी तरफ से जमानत देने से मना किया, लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट से कहा कि वह गुलफ़िशा की बेल याचिका पर जल्द सुनवाई करे। गुलफ़िशा के लिए पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल का कहना था कि वह 4 साल से जेल में है। काफी समय से हाई कोर्ट में जमानत याचिका लंबित है।
इससे पहले 25 अक्टूबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने दंगों के एक और आरोपी शरजिल इमाम के मामले में भी यही आदेश दिया था। हालांकि मार्च 2022 में ही दंगों में आरोपी पार्षद इशरत जहां को जमानत मिल गई। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने इशरत जहां को यू ए पी ए के तहत गिरफ्तार किया था। कांग्रेस की पूर्व पार्षद इशरत जहां की तरफ से अदालत में जमानत याचिका दायर की गई थी। इस याचिका में कहा गया था कि पुलिस के पास इशरत के ख़िलाफ़ एक भी सबूत नहीं है।
इससे पहले जून 2021 में दंगे के ही आरोप में यूएपीए की धाराओं में गिरफ्तार पिंजरा तोड़ कार्यकर्ता देवांगना कलीता, नताशा नरवाल और जामिया के छात्र आसिफ इक़बाल तन्हा को दिल्ली हाईकोर्ट ने जमानत दे दी थी। उस समय हाईकोर्ट ने कहा था कि भड़काऊ भाषण देना या चक्का जाम करना उस समय असामान्य बात नहीं है, जब सरकार व संसद के कार्यों का व्यापक स्तर पर विरोध हो रहा हो। अगर हम मान भी लें कि भड़काऊ भाषण, चक्का जाम, महिलाओं को प्रदर्शन के लिए उकसाना और अन्य कार्य जिनका आरोप हैं, अगर संविधान में दिए गए शांतिपूर्ण प्रदर्शन के अधिकार की सीमा का उल्लंघन करते हैं, तब भी आतंकी कृत्य, उसकी साज़िश या उसकी तैयारी के दायरे में नहीं कहे जाएंगे।
लेकिन ऐसी सुविधा, टिप्पणियां और ज़मानत उमर ख़ालिद के नसीब नहीं हुई। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल और क्राइम ब्रांच उमर ख़ालिद को दिल्ली दंगों का मास्टर माइंड मानती है। उमर सितंबर 2020 से जेल में हैं। उनके ऊपर यूएपीए के तहत आतंकवाद, दंगा फैलाने और आपराधिक साज़िश रचने जैसे कई आरोप लगे हैं। इस केस में अब तक मुक़दमा शुरू नहीं हो पाया है। उमर ख़ालिद की ज़मानत याचिका दो बार दो अलग-अलग अदालतों से ख़ारिज हो चुकी है।
सुप्रीम कोर्ट में उनकी ज़मानत याचिका मई 2023 से जनवरी 2024 तक लंबित रही, लेकिन एक बार भी उस पर बहस शुरू नहीं हो पाई। इसके बाद हारकर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अपनी ज़मानत की अर्ज़ी वापस ले ली है और ये कहा है कि वो अब वापस ट्रायल कोर्ट जाएंगे।
अब 20 फ़रवरी 2025 को दिल्ली हाईकोर्ट में उमर ख़ालिद की ज़मानत याचिका पर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान उमर के वकील ने दिल्ली हाईकोर्ट में कहा कि महज व्हाट्सऐप ग्रुप का सदस्य होना किसी अपराध में शामिल होने का सबूत नहीं है।
उमर के वकील त्रिदिप पेस ने अदालत से कहा कि उमर ख़ालिद लंबे समय से विचाराधीन कैदी के रूप में हिरासत में है। उन्होंने कहा कि ट्रायल में देरी भी एक वजह है, जिसके चलते उमर ख़ालिद को ज़मानत मिलनी चाहिए। पेस ने कहा कि इस मामले के जिन चार आरोपियों को ज़मानत मिली है, उनसे समानता के आधार पर उमर ख़ालिद को भी ज़मानत मिलनी चाहिए। जस्टिस नवीन चावला की अध्यक्षता वाली बेंच ने अब जमानत याचिका पर अगली सुनवाई 4 मार्च को करने का आदेश दिया है।
तो इस तरह देखा जाए कि दिल्ली दंगे के बाद पांच साल कैसे आगे बढ़े और इंसाफ़ कहां पहुंचा तो सिर्फ़ इतना ही कहा जा सकता है कि एक आरोपी उमर ख़ालिद या फिर गुलफ़िशा या शरजील इमाम को अभी तक ज़मानत नहीं मिली और एक आरोपी (हालांकि दिल्ली पुलिस उन्हें आरोपी नहीं मानती) कपिल मिश्रा विधायक बनकर दिल्ली सरकार में क़ानून व न्याय मंत्री बन गए हैं। इसी के साथ उन्हें विकास, कला और संस्कृति विभाग, भाषा विभाग, पर्यटन विभाग, श्रम विभाग और रोज़गार विभाग मिला है।
24 फ़रवरी से दिल्ली की नई विधानसभा का सत्र शुरू हो गया है। और सबसे पहले सदन के पटल पर सीएजी की रिपोर्ट रखी जानी हैं, अच्छा होता कि सबसे पहले दिल्ली दंगों में जांच की प्रगति की रिपोर्ट रखी जाती और बताया जाता कि इन पांच सालों में देश के गृहमंत्री अमित शाह के अंडर में आने वाली पुलिस ने इंसाफ़ के लिए क्या किया।
[ • लेखक मुकुल सरल स्वतंत्र पत्रकार और साहित्यकार हैं. • साभार : न्यूज़ क्लिक ]
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