मातृभाषा दिवस पर राष्ट्रीय वेबिनार
●हिंदी साहित्य भारती, छत्तीसगढ़ द्वारा आयोजन
●विषय-‘मातृभाषा औऱ राष्ट्रीयता’
●भाषा का मरना ज्ञान, संस्कृति औऱ चेतना की मौत है-डॉ. केशरीलाल वर्मा
●भाषा न छोटी होती न बड़ी.भाषा तो अभिव्यक्ति का माध्यम है, जिसके माध्यम से हम कल औऱ आज़ को परखते हैं-आचार्य नरेन्द्र देव जी.
●भाषाओं को मनुष्य से अलग नहीं किया जा सकता, वह तो मनुष्य के ह्रदय में वास करती है-डॉ. चितरंजन कर.
छत्तीसगढ़ । हिंदी साहित्य भारती, छत्तीसगढ़ द्वारा अंतरराष्ट्रीय मातृ दिवस पर राष्ट्रीय तरंग गोष्ठी का आयोजन|
दिनांक- 21.02.2021, रविवार को मातृभाषा और राष्ट्रीयता विषय पर किया गया है। जिसके मुख्य अतिथि आचार्य देवेन्द्र देव वरिष्ठ साहित्यकार बरेली, उत्तर प्रदेश थे तथा कार्यक्रम की अध्यक्षता की प्रसिद्ध भाषाविद् डाॅ केशरी लाल वर्मा ,कुलपति, पंडित रविशंकर विश्वविद्यालय, रायपुर ने की।
मुख्य अतिथि के आसंदी से बोलते हुए आचार्य नरेंद्र देव जी ने कहा कि भाषा न छोटी होती न बड़ी। भाषा तो अभिव्यक्ति का माध्यम है जिसके माध्यम से हम कल और आज को परखते हैं। मातृभाषा सुख अलग होता है। जब हम गाँव की ओर लौटते हैं तो उस सुख की अनुभूति करते हैं। अध्यक्षीय उदबोधन देते हुए डाॅ केशरी लाल वर्मा कुलपति पं रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर, छत्तीसगढ़ ने कहा कि भाषा का मरना ज्ञान, संस्कृति और चेतना की मौत है। राष्ट्रीयता के विकास में मातृभाषा की अहम भूमिका रही है।
विषय-प्रवर्तन करते हुए डाॅ चित्तरंजन कर ने कहा कि भाषाओं को मनुष्य से अलग नहीं किया जा सकता। वह तो मनुष्य के हृदय में वास करती हैं। हाँ, किन्तु भाषा की संघर्ष यात्रा को जानने व समझने की आवश्यकता है। कार्यक्रम में वक्ता के रूप में आमंत्रित डाॅ नलिनी पुरोहित पूर्व प्रोफेसर महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय वडोदरा ने विचार रखते हुए कहा कि भाषा संस्कृति और संस्कार बनाती है, भाषा तो हमारी धरोहर है। इसे हर हाल में संरक्षित किया जाना चाहिए।
प्रो नवरतन साव सहायक प्राध्यापक शा. महाविद्यालय कांकेर, ने छत्तीसगढ़ की नाट्यविधा नाचा के कथ्य को विश्लेषित करते हुए कहा कि मातृभाषा छत्तीसगढ़ी के माध्यम से नाचा के कलाकार न केवल समाज के विसंगतियों की ओर ध्यान आकृष्ट कराते थे बल्कि राष्ट्रीय चेतना भी जागृत करते थे। डाॅ वसुदेवन ‘शेष’ पूर्व हिंदी भाषा अधिकारी चेन्नई ने राष्ट्रीय चेतना विकास के लिए हिंदी के महत्व को प्रतिपादित करते हुए कहा कि हिंदी प्रांतीय भाषाओं के साथ समन्वय स्थापित करती हुई देशभर की भाषाओं को एक सूत्र में पिरोती है।पूर्वोत्तर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती हुई डाॅ चुकी भूटिया, सहायक प्राध्यापक सिक्किम केंद्रीय विश्वविद्यालय गंगटोक, ने कहा कि पूर्वोत्तर में अनेक भाषाएँ हैं, कुछ भाषाओं के बोलने वालों की संख्या को ऊँगली में गिना जा सकता है। इस परिस्थिति में मातृभाषा दिवस हमें भाषाओं के संरक्षण के प्रति सचेत करता है ।
हिंदी साहित्य भारती, छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष बलदाऊ राम साहू कहा ने कहा कि भारतीय भाषाओं का हिंदी भाषा के साथ समन्वय स्थापित करते हुए ही हम राष्ट्रीयता की बात कर सकते हैं। मातृभाषा को संरक्षित करने के लिए चेतना विकसित करना और हिंदी को राष्ट्र भाषा के पद पर प्रतिष्ठित करना हम सभी भारतीयों का दायित्व है। कार्यक्रम का संचालन हिंदी साहित्य भारती छत्तीसगढ़ के महामंत्री डाॅ सुनीता मिश्रा एवं आभार प्रदर्शन कोषाध्यक्ष डाॅ बी रघु ने किया। इस कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ के अतिरिक्त देशभर के शिक्षा शास्त्री, साहित्यकार और भाषाविद जुड़े।
[ ●न्यूज़ डेस्क,’छत्तीसगढ़ आसपास’. ●प्रिंट एवं वेबसाइट वेब पोर्टल, न्यूज़ ग्रुप समूह,रायपुर,छत्तीसगढ़. ]
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