बची हुई टहनियों पर अटकी बरबादियां- तारन प्रकाश सिन्हा.
बाढ़ जैसे-जैसे उतरती है, तबाही का असली मंजर वैसे-वैसे प्रकट होने लगता है। कोरोना की नदी भी उतर रही है। चरम को छूकर संक्रमण दर लगातार कम हो रही है। छत्तीसगढ़ में यह 6 प्रतिशत से नीचे आ चुकी है। नये संक्रमितों का आंकड़ा भी 3 हजार प्रतिदिन के आस-पास आ चुका है। उम्मीद है कि जल्द ही सब कुछ ठीक हो जाएगा। हम अपनी सामान्य दिनचर्या की ओर लौट आएंगे।…लेकिन तब क्या सचमुच सब कुछ सामान्य हो चुका होगा ?
बाढ़ के उतरने के बाद के बाद भी जो वृक्ष बचे रह जाते हैं, उनकी शाखाओं में बरबादी का कहानियां अटकी रह जाती हैं।
हम सबको अकल्पनीय पीड़ाएं देकर कोरोना लौट रहा है। संक्रमण में सिर से पांव तक डूबे रहने के बाद हमारे जीवन की शाखाएं फिर प्रकट होने लगी हैं। इन शाखाओं में उन जिंदगियों की निशानियां रह गई हैं, जो अब कभी प्रकट नहीं होंगी। छत्तीसगढ़ में ही कोरोना ने हम सबसे 12 हजार से ज्यादा लोगों को छीन लिया। ये हजारों लोग जिस दिन इस धरती पर आए रहे होंगे, धरती ने उनके आने की खुशियां मनाई होगी। इनकी विदाई में उसी धरती के आंसू कम पड़ गए।
एक जीवन का मिट जाना केवल एक व्यक्ति का चले जाना नहीं होता। यह एक दुनिया का तबाह हो जाना होता है। ऐसे ही हजारों-लाखों दुनियाओं से मिलकर एक पूरी-दुनिया बनती है।
जो लोग चले गए, वे अपने पीछे उजड़ी हुई दुनियाएं छोड़ गए हैं- बिलखती हुई माताएं, रोती हुई बहनें, अनाथ हो चुके बच्चे। इन छूटे हुए लोगों के सामने अब जीवन के नये सवाल उपस्थित हैं। घर का कमाने वाला चला गया, तो घर कैसे चलेगा। बच्चों की पढ़ाई कैसे होगी। बेटियों और बहनों का ब्याह कैसे होगा। बुजुर्गों की देखभाल कैसे होगी….ये दुख अपनों को खो देने से कहीं ज्यादा बड़ा है।
कोरोना-संकट का हम सबने मिलकर सामना किया है। समाज ने सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर इस चुनौती का मुकाबला किया है। हम जीत रहे हैं, लेकिन इस जीत के बाद हमें जश्न मनाने की इजाजत यह समय नहीं देने वाला। तब हमारी लड़ाई दूसरे मोर्चे पर शुरु हो चुकी होगी, और जाहिर है कि हम इसके लिए तैयार भी हैं।
बचे हुए लोगों को बचाए रखना तभी संभव हो पाएगा, जब हम पुरानी गलतियों को न दोहराएं। कोरोना एप्रोप्रिएट बिहेवियर का ध्यान रखें, ताकि संक्रमण को दुबारा फैलने से रोका जा सके। टीकाकरण के लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों को प्रेरित करें, ताकि हम सबको एक मजबूत सुरक्षा कवच मिल सके। चुनौती इसलिए भी बड़ी है क्योंकि इस वायरस की वापसी गांवों की गलियों और सड़कों से हो रही है, जहां अशिक्षा और अज्ञानता का अंधकार है। हमें वहां भी रौशनी करनी होगी। छत्तीसगढ़ में टीकाकरण अब काफी तेजी हो रहा है। शासन ने पंजीकरण की प्रक्रिया को आसान करने के लिए सीजी-टीका पोर्टल भी तैयार किया है। ज्यादा से ज्यादा लोग टीकाकरण करवाएं, यह जिम्मेदारी हम सबको उठानी पड़ेगी, ताकि बचे हुओं को बचाया जा सके।
कोरोना-संकट ने हम सबको मानसिक रूप से भी चोट पहुंचाई है। समाज इस समय सामूहिक अवसाद का सामना कर रहा है। जो लोग कोरोना-मुक्त हो चुके हैं, उन्हें पोस्ट-कोविड इफेक्ट झेलना पड़ रहा है। कोरोना के समानांतर अब ब्लैक-फंगस के संक्रमण जैसी चुनौतियां भी उपस्थित हो रही हैं। लाकडाउन का अर्थव्यवस्था पर बुरा असर होना ही था। हजारों लोगों का व्यवसाय चौपट हो चुका है। सैकड़ों लोग रोजगार गंवा चुके हैं। बच्चों से उनका बचपन ही छिन गया है। और भी बहुत कुछ….इसीलिए संक्रमण-दर में कमी की खबरें हमारे लिए केवल एक फौरी राहत हैं, असल चुनौतियों से उबरने के लिए हमें अभी बहुत कुछ करना होगा।
हमने अब तक जैसे एक-दूसरे का हाथ कसकर थाम रखा है, वैसे ही आगे भी कस कर थामे रखना होगा। अनाथ हो चुके बच्चों, उजड़ चुके परिवारों को संभालनें के लिए हमें मिलजुलकर कुछ करना होगा। छत्तीसगढ़ शासन ने इस दिशा में कदम बढ़ाया है। कोरोना की वजह से जिन बच्चों ने अपने माता-पिता को खो दिया है, छत्तीसगढ़ सरकार ने उनकी पढ़ाई का खर्च उठाने का निर्णय लिया है, साथ ही इन बच्चों को छात्रवृत्ति भी देने की घोषणा की है, चाहे ये बच्चे किसी भी स्कूल में पढ़ते हों। उन बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा भी सरकार लेगी जिनके परिवार के कमाने वाले सदस्य को कोरोना ने छीन लिया है। यदि ऐसे बच्चे स्वामी आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूल में प्रवेश के लिए आवेदन करते हैं तो उन्हें प्राथमिकता दी जाएगी, उनसे कोई फीस नहीं ली जाएगी। छत्तीसगढ़ के प्राइवेट स्कूलों ने भी एक संवेदनशील पहल करते हुए उन बच्चों की फीस माफ करने का निर्णय लिया है, जिनसे कोरोना ने उनके माता-पिता को छीन लिया है।
ये बच्चे हमारे भविष्य की धरोहर हैं, इन्हें सहेजना-संवारना हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है। इसी तरह की दृष्टि और संवेदना की जरूरत प्रत्येक क्षेत्र में है। न केवल बच्चों के लिए, बल्कि कोरोना से बरबाद हो चुकी हरेक जिंदगी के लिए भी।