■दिल की भी सुनो : ■डॉ. नीना छिब्बर.
[ दिल्ली में जन्मी डॉ. नीना छिब्बर की पहली रचना ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ में प्रकाशित की जा रही है. डॉ. नीना जी की प्रकाशित संग्रह- ‘आकांक्षा की ओर'[काव्य]., ‘हिंदी के मनोवैज्ञानिक उपन्यासों में असामान्य पात्र'[शोध प्रबंध], टच स्क्रीन और अन्य लघुकथायें, ‘नदी खिलखिलायी’ [हाइकु संग्रह].
50 से अधिक साझा लघुकथा संग्रह और काव्य संग्रहों में संकलित. उपलब्धि- •’कथादेश’ में अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता में पांचवा स्थान. •देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्रों एवं ई-पत्रिकाओं में निरन्तर लेखन. डॉ. नीना छिब्बर वर्तमान में जोधपुर राजस्थान में निवासरत हैं. ]
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♀ आलेख
♀ दिल की भी सुनो
♀ डॉ. नीना छिब्बर
दिल,जिगर हृदय,हार्ट चाहे जिस नाम से पुकारों यह छोटा सा शारीरिक अंग सब को तिगनी का नाँच नचा देता है ।ईश्वर ने मनुष्य ही नहीं जीवमात्र में हृदय की संरचना की है और उसमें भावनाओं और संवेदनाओं का अंंतरजाल बनाया है। हर दिल की अपनी भाषा,अपनी लिपि और अपनी दृष्टि होती है।वैज्ञानिक और चिकित्सय परिभाषाएं चाहे कुछ भी हों पर आधुनिक युग में जब 25 से 40तक के युवा हृदयाघात के कारण जीवन को जीने की आयु में दूसरे लोक में जा रहें हैं तो सचमुच जीवन की आपाधापी में थोड़ी देर रूक कर दिल को सुनने की जरूरत है ।हृदयाघात की घटनाएं मध्यम और निम्न वर्ग में कम हैं और संपन्न ,अति धनाढ़य,सुप्रसिद्ध युवाओं में अधिक हैं। हृदय की संरचना को तो विधालय में ही सबने पढ़ा और जाना पर आज फिर पुनः याद कर लेते हैं।
मानव हृदय छाती के मध्य में थोड़ी बाँई ओर स्थित है ।एक दिन में लगभग 1लाख बार धड़कता है। 1 मिनट में 60-90 बार । हर धड़कन के साथ शरीर में रक्त को पम्प करता है। हृदय को पोषण और आक्सीजन रक्त से मिलता है। हृदय दो भागों मे विभाजित होता है..दाँया और बाँया। कुल मिलकर हृदय में चार चेम्बर होते हैं। दाहिना भाग शरीर से दूषित रक्त प्राप्त कर फेंफड़ों को सौंपता है और फेफड़े रक्त को शोधित करके बाँये भाग में वापस लौटाता है ।यहीं से वापस पंप करके शरीर को मिलता है। हृदय में चार वाल्व होते हैं जो दिशा द्वार की तरह काम करते हैं ।हृदय में जो धमनियाँ हैं जिन्हें कोरोनरी आर्टरीज कहते हैं ।अत्याधिक महत्वपूर्ण हैं ।यदि इन धमनियो में रूकावट आ जाती है तो हृदय की माँसपेशियों को रक्त नहीं मिलता तो वो रूक जाती हैं अर्थात मर जाती हैं । इसे ही हृदयाघात कहते हैं।
इसके मुख्य कारण हैं जकड़न के साथ छाती में दर्द,साँस लेने में तकलीफ, पसीना आना, चक्कर और बेहोशी महसूस होना।छाती में भारीपन या छाती में आगे या पीछे की हड्डी में दर्द जो कभी- कभी गर्दन और फिर बाँई भूजा तक पहुँच जाता है। सामान्यतः यह दर्द 20 मिनट से ऊपर रहता है। अधिक लो बी.पी होने से भी मृत्यु हो जाती है।
हृदयाघात के अलावा दिल की अन्य बीमारियाँ निम्न हैं।
1.परिहार्दिक सूजन..इस बीमारी के कारण हमारे दिल की झिल्ली में सूजन आ जाती है। दिल में हल्का हल्का दर्द होता है। इसके साथ हमारी नर्व्स भी तेज चलती है।कभी -कभी झिल्ली में पानी भर जाता है और बुखार होता है।
2. दिल.की माँसपेशियों का फैलना…
दिल की माँसपेशियों के ज्यादा काम करने के कारण ये फैल जाती हैं।इसमें अक्सर उच्च रक्त चाप होता है ।
3. रक्तगाँठ बनना….. इस बीमारी में मरीज की धमनियों में कैलशियम, कोलोस्ट्रोल और फैट की परत जमने लगती है जो बीमारी का रूप ले लेती है ।
4. आमवातिक हृदय रोग… ये हड्डी के जोडों में बुखार होने से होता है। इस रोग में हड्डी के जैडं और दिल के वाल्व अधिक प्रभावित होते हैं । ये रोग 5 से–15 साल तक के बच्चों में पाया जाता है।
5. वाटवूलर हार्ट डिजिज़…. इस में किन्हीं वजह से हार्ट के वाल्व में रक्त का रिसाव होता है तब वाल्व क्षतिग्रस्त हो जाते हैं ।
लैसंट गलोबल बर्डन आफ डिजिज रिपोर्ट 2020 के अनुसार बिमारियों से होने वाली कुल मौतों में 20% ब्लडप्रेशर के कारण होती हैं।कम उम्र में रक्तचाप के कारण हृदयाघात अधिक होते हैं । तो हम इसकी प्रवृत्ति भी जान लेते हैं। उच्च रक्तचाप के स्पष्ट लक्षण नहीं हैं। 50% हृदयरोग और 60%स्ट्रोक का कारण रक्तचाप है। इसमें ऊपरी संख्या सिस्ट्रोलिक प्रेशर है ।यानि वह ताकत जिससे दिल पूरे शरीर में खून भेजता है। निचली संख्या डायस्टोलिक प्रेशर है। जिस से दिल रिलेक्स होता है। पहले कार्डियोवस्कुलर मेड़ीसिन विशेषज्ञ निचली संख्या को समस्या मानते थे।पर अब मानते हैं कि ऊपरी संख्या महत्वपूर्ण है। आमतौर पर स्वस्थ नसें बढ़ते घटते रक्तचाप के मुताबिक फैलती और सिकुड़ती हैं। ज्यादा रक्तचाप से नसों का लचीलापन समय के साथ खत्म हो जाता है। वे सख्त और संकरी हो जाती हैं। जब उच्च रक्तचाप के कारण नसें सिकुड़ जाती हैं । दिल के लिए खून पंप करना मुश्किल हो जाता है और इससे घातक तनाव उत्पन्न होता है।
हृदय संवेदनशील है। सारा जीवन क्षण भर भी रूके बिना काम करता है। जब वो अत्याधिक दबाव सह नहीं सकता है तो हृदय की धड़कन इतनी बढ़ जाती है कि नियंत्रण कठिन हो जाता है और हृदयघात हो जाता है ।
सब से महत्वपूर्ण यक्ष प्रश्न वहीं का वहीं है। युवाओं में हृदयघात की अधिक संख्या क्यों?
अति आधुनिक युग में जब मानव चाँद और मंग
ल पर आवास की बातें ही नहीं करता ,प्रयास करता है । जीवनशैली भी आज में जीने में विश्वास करती है। उन्नति और व्यक्तिगत प्रगति और नाम के लिए सभी सीमाएं लाघने के लिए तैयार रहते हैं। कार्यालय में अधिकतर बैठ कर काम करते हैं। रात देर.तक जाग कर काम और दिन में बेवक्त सोना, पौष्टिक भोजन की तो बात ही छोड़ दीजिए ।धैर्य से बैठकर कुछ स्वाद से खाया है ।यह पूछना उन्हें.मूर्खता लगता है । एक ही बात समय कहाँ है.? प्रोजेक्ट ,मिटिंग , प्लांनिग, उच्च अधिकारियों को खुश रखने के लिए, पदोन्नति पाने के लिए ना जाने कितने हथकंडे अपनाते हैं । जब दिन.में 15-16 घंटे शारीरिक और मानसिक काम करना पडता है तो वो उर्जा जो अप्राकृतिक है ।उसे पाने के भी अनोखे ढंग और ढ़ब हैं।काफी ,चाय सिगरेट तक तो फिर भी शरीर सह ले पर स्टेरॉइड जो हमारे शरीर में.पहले से ही मौजूद होता है जैसे टेस्टेस्टेरोन।पर कुछ युवा माँसपेशियों को बढ़ाने के लिए इसके इंजेक्शन लेते हैं । इसी तरह पेप्टाइड हारमोन जो शरीर में मौजूद है जो एक तरह का इंसूलिन है जो डायबिटीज के लिए तो प्राण रक्षक है पर स्वस्थ व्यक्ति के लिए खतरनाक। युवा इसे लेते हैं जिस से शरीर.का फैट कम होता है और मसल्स बढ़ती हैं । अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों में युवा,फुर्तीले, चालाक, षट् बुद्धि वाले जो नैतिकता , आत्मा, सद्भावना, जैसी भावनाओं को नकारें सिर्फ टारगेट पर ध्यान दें युवा ही चाहिए। येन केन प्रकरेण जीत,नंबर वन रहने के लिए “कुछ भी कभी भी, कहीं भी ” इनका सिद्धांत होता है । इससे भी खतरनाक है अपनी शक्ति को युवा बनाने के लिए कम उम्र के लोगों का खून अपने शरीर में चढ़वाना। ऐसे रक्त मे लाल रक्त कण ज्यादा होते हैं जो ज्यादा आक्सीजन खींच कर जबरदस्त ताकत देते हैं । इसी तरह नार्कोटिक्स /मार्फिन जैसी दर्दनाशक दवाईयाँ
अधिकतर युवा मानसिक शांति के लिए लेतें हैं ।परंतु इसका आदि हो जाने पर हृदय के रोग, रक्तचाप, हृदयघात आम बात है।
जीवन की एक गति होती है। सूर्योदय और सूर्यास्त का एक समय होता है । मानव शरीर के बढ़ने और पुनः क्षीण होने की भी निश्चित प्रकृति होती है। पर यह इस बात को नहीं मानते। मेरी दुनिया ,मेरे नियम।
युवाओं में हृदयघात या स्टोक आम हो गया है क्योंकि हृदयगति को भूल कर प्रगति पथ की आभासी अंधी सड़कों पर दौड़ रहे हैं । सबको जीतना है, प्रथम आना है और शीघ्रातिशीघ्र।
युवक युवतियाँ, किशोरावस्था में ही इंटरनेट , ब्लाग से वो सब जान लेते हैं जो छिपा रहने से ज्यादा सुंदर होता है ।फेसबुक के लाईक अनलाइक ने रिश्तों में सात समुद्र की दूरी ला दी है। एकाग्रता से, शांति से, आत्मिक आनंद लेने की सोच यह सब भूल गये हैं ।युवाओं के अधिकतर रिश्ते भी मायावी होते हैं । वे ब्रेकअप की पार्टी मनाते हैं। मिलना बिछुड़ना शतरंज की बिसात हो गया है । काम निकल गया तो चेक और मेट। युवा ये भूल.जाते हैं कि जिस शान शौकत के लिए वो दिन रात भाग रहे हैं । दिल की नहीं सुन रहे हैं वो कब चुपके से रेत की मानिंद.उन के हाथ से फिसल जाएगा और प्राणपखेरू उड़ जायेंगें पता ही नहीं चलेगा। यथार्थ को समझ कर ,अपने लक्ष्य की और बढ़ने में ही समझदारी है। काम के साथ उचित व्यायाम, योग, प्रकृति का सानिध्य, परिवार और मित्रों से दिल की बातें साझा करें तो दिल भी खुश और दिल्ली दूर.भी नहीं लगेगी। पर यह उन्हें मंजूर नहीं है।
अब दिल बेचारा अपनी संवेदनशीलता, नजाकत, कल्पनाएं, बादली उड़ाने कहाँ ले जाए। बस एक दिन ना चाहते हुए भी रूक जाता है।
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