गुजरात आसपास
●सोशल मीडिया वर्तमान में बिग बॉस : बी एन कुमार
●पारुल विश्वविद्यालय में संचालित फेकल्टी ऑफ आर्ट्स डिपार्टमेंट ऑफ जनर्लिज़्म एंड मॉस कम्युनिकेशन का आयोजन
वड़ोदरा स्थित पारूल विष्वविद्यालय में संचालित फेकल्टी ऑफ आर्टस, पारूल इंस्टीट्यूट ऑफ आर्टस के तहत डिपार्टमेंट ऑफ जर्नलिज्म एंड मॉस कम्यूनिकेषन की आरे से विगत दिनों अंडर स्टेंडिंग द मीडिया लैंड स्केप पर वेबीनार का आयोजन किया गया। वेबीनार के मुख्य अतिथि एवं मीडिया वेटेरेन एंड एडिटर एंड चीफ, द कनेक्ट सीरिज, मुम्बई ने पारूल विष्वविद्यालय में संचालित डिपार्टमेंट ऑफ जर्नलिज्म एंड मॉस कम्यूनिकेषन के फेकल्टी सदस्यों, विद्यार्थियों एवं प्रतिभागियों को संबोधित किया।
मीडिया वेटेरेन बी. एन. कुमार ने कहा कि मीडिया का कार्य हमेषा से डेमोक्रेसी से जुड़ा हुआ है एवं मीडिया ने डेमोक्रेसी में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चीन एवं रूस जैसे एकाधिकारी सरकारी एवं सरकारी नियंत्रण होने से मीडिया भी सरकारी नियंत्रण में रहा है। इसलिये आम जनता अपनी आवाज ठीक तरीके से नहीं उठा पाती है। समय-समय पर मीडिया के माध्यम से आलोचनाएं भी डेमोक्रेसी एवं राजनेताओं के संबंध में होती रही है। उन्होंने कहा कि सोषल मीडिया वर्तमान में बिग बॉस है। प्रधानमंत्री से लेकर छोटे-से छोटा नेता भी सोषल मीडिया पर अपनी बात कहने के लिये एवं संवाद कायम करने के लिये निर्भर है। मीडिया लोकतंत्र के चार स्तभों में से एक है। भारत में स्वतंत्रता के समय फ्री मीडिया ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वेबीनार में आप ने भारत में ब्रिटिष काल से लेकर अब तक मीडिया के विकास यात्रा पर विस्तार से प्रकाष डाला। बी. एन. कुमार ने गांधी युगीन पत्रकारिता की बात करते हुये उनके भारत की आजादी में पत्रकारिता के माध्यम से दिए गए उनके योगदान की भूरी-भूरी प्रषंसा की। इसके साथ ही 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से लगाई गई इमरजेंसी के बारे में भी अपने विचार रखें। इसके साथ ही इमरजेंसी के दौरान मीडिया पर लगे प्रतिबंध के बारे में बताया कि उस समय मीडिया के सामने यह चुनौति थी कि क्या लिखे एवं क्या नहीं लिखे। इमरजेंसी में इंदिरागंाधी ने सरकार के खिलाफ नहीं लिखने के आदेष जारी किये एवं कोई ऐसा करता है तो उस पर कार्यवाही की बात भी कही। इमरजेंसी के परिणाम स्वरूप 1977 में इंदिरागांधी को चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा। इमरजेंसी के दोरान इंदिरा गांधी ने पीटीआई, यूएनआई, हिन्दुस्तान समाचार एवं समाचार भारती पर प्रेषर भी क्रिएट किया एवं सभी का एक ही संस्था अर्थात समाचार में विलय कराने के लिये मजबूर कर दिया। वह मीडिया मेें किसी भी प्रकार का कॉम्पीटीषन नहीं चाहती थी कि मीडिया सरकार के खिलाफ लिखने में प्रतिस्पर्धा को बरते। 1977 मंे फिर से जनता पार्टी सत्ता मंे आई ओर इमरजेंसी के दौरान मीडिया पर लगे प्रतिबंध हटे एवं मीडिया को लिखने की स्वतंत्रता फिर से बहाल हो सकी। वर्तमान में सैकड़ों टीवी चैनल, हजारों समाचार पत्र विभिन्न भाषाओं में समाचारों का प्रसारण एवं प्रकाषन कर रहे है। उन्होंने विगत 30 सालों में राष्ट्रीय एवं अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर मीडिया में हुए परिवर्तनों की बात कही। इसके साथ स्मार्ट फोन एवं सोषल मीडिया के प्रभावों पर भी विस्तार से प्रकाष डाला। वेबीनार के दौरान उन्होंने कहा कि देष के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता मंे आने के बाद कोई प्रेस कांफ्रेस नहीं की है एवं उनका संवाद सोषल मीडिया या रेडियो पर मन की बात कार्य क्रम से ही रहता है। साथ ही मीडिया की एक अलग पॉलिसी उनकी रही है। यह अपने आप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संवाद कायम करने की एक अद्भुद कला है। सेलिब्रेट्री भी अब सोषल मीडिया पर ही अपने कमेंट डाल देते है। सोषल मीडिया पर किसी प्रकार का कंट्रोल नहीं है कोई सेंसर नहीं है। प्रेस काउंसिल का भी इलेक्ट्रिोनिक एवं सोषल मीडिया पर किसी प्रकार का कोई कंट्रोल नहीं है। उन्होंने मीडिया लॉ एवं मीडिया रेग्यूलेषन की बात करते हुये इसमें बदलाव की बात भी कही। उन्होंने देष में न्यायपालिकाओं मंे लंबित मामलों पर भी अपने विचार रखे। न्यायलय में अवमानना संबंधी मामलो पर भी प्रकाष डाला। साथ ही हाल ही में अरनव गोस्वामी सहित अनेक प्रकरणों के उदाहरण दिये। ओटीटी, नेट फिल्क्स आदि सहित अनेक प्लेट फार्म के सदंर्भ मंे बेबाक टिप्प्णी की। उन्होंने यूट्यूब पर उपलब्ध कंटेट को लेकर वैष्वीक स्तर पर बने नियमों के संदर्भ में जानकारी दी। इसके साथ ही बच्चों पर यूट्यूब पर उपलब्ध कंटेट को लेकर पड़ने वालों प्रभावों पर चर्चा की। साथ ही इस संदर्भ में एक सेप्रेट लॉ बनाने की आवष्यकता पर बल दिया। साथ ही समाचार पत्रों में विभिन्न प्रदषों की सरकारों की ओ से सरकारी विज्ञापनों के समाचार पत्रों में विज्ञापन दिये जाने को लेकर भी सवाल खड़े किये। उन्होंने अमेरिकन मीडिया की कार्यप्रणाली पर विचार रखे एवं अमेरिकन मीडिया से सीखने की आवष्यकता पर बल दिया। उन्होंने हाल ही में ट्रंप चुनाव को लेकर अमेरिकन मीडिया की ओर से खुले रूप से आलोचनात्मक प्रकाषन एवं प्रसारण की सराहना की एवं अमेरिकन मीडिया को बतौर रॉल मॉडल अपनाने पर बल भी दिया।
पारूल विष्विद्यालय के डीन, फेकल्टी ऑफ आर्टस, प्रिंसिपल पारूल इंस्टीट्यूट ऑफ आर्टस एवं प्रोफेसर जर्नलिज्म एंड मॉस कम्यूनिकेषन, प्रो. डॉ. रमेष कुमार रावत ने वेबीनार के आरंभ में मीडिया वेटेरीयन बी. एन. कुमार का स्वागत उद्बोधन के माध्यम से स्वागत किया एवं वेबीनार के अन्त में आभार जताया। वही बेबीनार के आरंभ में डिपार्टमेंट ऑफ जर्नलिज्म एंड मॉस कम्यूनिकेषन के असिस्टेंट प्रोफेसर अचलेंद्र कटियार ने मीडिया वेटेरियन बी. एन. कुमार का परिचय दिया। वेबीनार में स्टूडेंट मोडरेटर के रूप में डोना भट्ट एवं गायत्री पाठक ने प्रष्न भी पूछे। वेबीनार में देष के विभिन्न प्रदषों से सैकंडो विद्यार्थियों, षिक्षकों, शोधार्थियों एवं पत्रकारों ने भाग लिया।