विचार

4 years ago
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●करें सादगीपूर्ण जीवन शैली का विकास
●राजकुमार जैन ‘राजन’

सिकन्दर को एक महात्मा ने पूछा कि, ‘तुम भारत को जीतकर क्या करोगे?’ ‘फिर मैं अफगानिस्तान, चीन जीतूंगा।’ सिकंदर का जवाब था। महात्मा ने पूछा, ‘फिर?’ ‘मैं उज्बेकिस्तान, रूस आदि जीतता-जीतता पुरी दुनिया जीत लूँगा।’ महात्मा ने फिर पूछा, ‘उसके बाद?’ सिकन्दर बोला, फिर मैं आराम करूँगा?’ महात्मा ने कहा कि, ‘तुम इतना सब- कुछ करने के बाद भी आराम ही करने वाले हो , तो आज ही आराम करो तो क्या कठिनाई है? यह सब खून खराबा, दुश्मनी किसके लिए?’ सिकन्दर कोई उत्तर नहीं दे सका। आज हर व्यक्ति जरूर चाहता है की उसका मान-सम्मान हो। उसके जीवन में सुख -समृद्धि हो। शांति हो। हर मनुष्य अपने जीवन में सफल होने के इंद्रधनुषी सपने देखता है और चाहता है कि उसका जीवन ज्योतिर्मय बन जाए। धन-वैभव मनुष्य को भौतिक सुख-सुविधा, रोटी-कपड़ा और मकान सुलभ करा सकता है ,पर सुख व शांति नहीं। यदि मन व्यथित, उद्वेलित, संत्रस्त, अशांत है तो सुख-शांति कहाँ से मिलेगी? वैभव व ऐश्वर्य का आकर्षण चरम पर है। जिंदगी की सारी ऊर्जा एक ही दिशा में नियोजित हो रही है। बाहरी विकास के तो नए-नए कीर्तिमान स्थापित होते जा रहे हैं। विज्ञान द्वारा दुनिया के किसी भी कोने में घटित घटना से हम कुछ ही पलों में अवगत हो जाते हैं। हम सीधा प्रसारण भी देख सकते हैं। लेकिन स्वयं में भीतर क्या घट रहा है, उसका कुछ भी अता-पता हमें नहीं है। बाहर उजाला फैलाया जा रहा है पर अपने भीतर अंधकार ने अपना साम्राज्य स्थापित कर रखा है। इसके चलते सामाजिकता, धार्मिकता, राष्ट्रीयता और मानव मूल्यों की अवमानना हुई है। भला इससे जीवन में सत्यं, शिवं, सुन्दरं की स्थापना कैसे हो पाएगी ? यदि जीवन मे संयम अवतरित हो जाता है, तो मनुष्य सुखमय जीवन जी सकता है, क्योंकि संयम की उपज है-सादगी!
भारतीय संस्कृति का आदर्श वाक्य है,- ‘ सादा जीवन, उच्च विचार ‘। यही स्वस्थ समाज रचना का प्रारूप है यदि सुखमय जीवन का रहस्य जानना चाहते हैं, तो वह है-सादगी पूर्ण जीवन शैली का विकास। संयम, सादगी, सदाचार जैसे जीवन मूल्यों की पुनः प्रतिष्ठा की जाए। लालसाओं को असीमित होने से रोका जाए, आकांक्षाओं का विस्तार कम किया जाए। यही वह सुंदर, सुखद राजमार्ग है, जिस पर चलकर मनुष्य सुख और शांति की अनुभूति को प्राप्त हो सकता है। मानव-प्रतिभाओं का विकास साधन सुविधाओं पर ही आधारित है, यह सत्य नहीं है। इसके लिए आत्म विश्वास और कार्य करने की सम्यक विधि ये ही मुख्य आवश्यकता है। साधन-सुविधाओं की आवश्यकता इसके बाद आती है।ऐसे अनेक उदाहरण हैं कि अनेक साधन-सुविधाओं , सम्पन्नता के बाद भी कई व्यक्ति अपना विकास नहीं कर पाते। और जिनके पास पर्याप्त साधन नहीं हैं, जो संयमी और सादगी पूर्ण जीवन जीते हैं फिर भी वे अपनी प्रतिभा का पूर्ण विकास कर पाये और इतिहास बनकर चले गए। इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों में कितनी-कितनी महान हस्तियों के नाम अंकित है, जिन्होंने अपने सादगी पूर्ण जीवन से सफलता हासिल करने का सुख प्राप्त किया। बीरबल और चाणक्य की सादगी जग विख्यात है, जिन्होंने अपनी बुद्धि के बलबूते विश्व में भारत की गरिमा मंडित संस्कृति को महिमा मंडित किया था। लाल बहादुर शास्त्री की पूर्ण जीवन से कोई अनभिज्ञ नहीं है। मिसाइलमेन पूर्व राष्ट्रपति ऐ. पी.जे. अब्दुल कलाम ने अपने सादगीपूर्ण व्ययवहार से सभी का दिल जीता है। स्वर कोकिला लता मंगेशकर की सादगी ने उन्हें सफलता की बुलंदियों पर पहुंचा दिया।
हमारा जीवन चेतना और देह का मिला जुला रूप है। देह जड़ है किंतु चेतना के कारण इसमें जीवंतता है।आस्ट्रेलिया में एक जनजातीय कबीला है, जिसकी सादगी बेमिसाल है, उनके पास न कोई मनोरंजन का साधन है न ही शिक्षा- दीक्षा का कोई तनाव ! न साइबर दुनिया का झमेला, ना सुख सुविधाओं के आधुनिक उपकरण! न बैंक न पोस्ट ऑफिस! फिर भी इतने सुखी कि दूसरे देख कर ईर्ष्या करने लगें। क्योकि इस सुख-संतुष्टि के कारण न कोई बीमारी, न धन छिपाने का भय, केवल खुशहाल जीवन! यह सादगी पूर्ण जीवन का एक करिश्मा है, जिससे तेजस्विता प्राप्त हो जाती है। यदि मनुष्य वास्तविक सुख चाहता है तो सादगी को अपनाना होगा। व्यक्तिगत स्वामित्व का दायरा सीमित होने से संग्रह की वृत्ति नहीं बढ़ेगी। संग्रह के अभाव में सादगी सहज आ सकती है। अभाव के कारण कोई दुखी है, समझ में आता है। किंतु वैभव के अंबार पर बैठा व्यक्ति दुःख की साँसें लेता व्यथित रहता है। सुकून से नींद भी नहीं ले सकता है। यह बताता है कि सुख संग्रह में नहीं त्याग में हैं। संयम-सादगी में हैं। साधन-सुविधाएं, वैभव मुख्य नहीं है।आवश्यकता की अपनी उपयोगिता हो सकती है, किंतु वे भी जब लालसाओं से जुड़ जाती हैं तो असीम हो जाती हैं। कुछ आवश्यकताएं बुनियादी हैं, किंतु अधिक आवश्यकताएं तो लालसा प्रेरित हैं, जो मात्र उपभोक्तावाद का पोषण हैं, दिखावा है, छलावा है। उनके पीछे भागना ना समझदारी है। प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति को इस मानसिक व्याधि से बचना चाहिए। बिना सोचे -विचारे अनेकों महानुभाव मात्र पद-प्रतिष्ठा पाने की धुन में अपना कीमती समय बर्बाद कर रहे हैं। प्रदर्शन उनका मुख्य ध्येय है। वे अपने को अग्रिम पंक्ति में खड़ा रखने के लिए अनेक आडंबर करते हैं। उपयोगिता वाद की जगह उपभोक्ता वाद को बढ़ावा देते हैं। वे अपना धन प्रदर्शन में व्यय करेंगे, किंतु समाज व राष्ट्र हित में कोई योगदान नहीं करेंगे। उनके पास इस तरह की दृष्टि ही नहीं है। सुख तो आंतरिक चेतना की शुद्धि का प्रतिफल है, बाहर की चकाचौन्ध में नहीं। सादगी का मतलब गरीबी नहीं, बल्कि चेतना के सुंदर व स्वस्थ भाव हैं जो सम्पन्नता में भी बाधक नहीं । आम सामान्य मनुष्यों को चाहिए कि वह अपनी जरूरतों की समीक्षा करते हुए जो उपयोगी व आवश्यक हो उसे ही अपना लक्ष्य बनाएं।
‘सादगी की की कोख से विवेक जन्म लेता है’। सादगी वह सम्पदा है, जो निरन्तर आत्म संतोष देती है। शीमक एक धन-दौलत से सम्पन्न व्यक्ति थे। प्रदर्शन से कोसों दूर रहते थे। आडंबर के अभाव में लोग उन्हें गरीब ही समझते थे। बिना किसी की परवाह के अपनी मस्ती में मस्त रहते थे। उन्हीं दिनों आचार्य महीधर ने वेदों पर भाष्य की रचना की, जो धन की कमी के कारण प्रकाशित नहीं हो पाए और लोगों को नहीं मिल सके। शीमक को जब यह पता चला कि धनाभाव में ज्ञान का प्रचार-प्रसार रुक गया है, तत्काल उन्होंने अपनी सारी संपत्ति इस कार्य के लिए समर्पित कर आदर्श स्थापित कर दिया।। लेकिन वर्तमान की चमक-दमक ने हर किसी को गुमराह कर दिया है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों व बाजारवाद ने सुविधाओं के इतने साधन उपलब्ध करवाए हैं, जिससे ‘सादगी’ शब्द मात्र शब्दकोश तक सीमित होने लग गया है। पारिवारिक व्यवस्थाएं, ख़ुशियाँ सब कुछ लालसाओं की अग्नि में स्वाहा हो रहे हैं। विलासिता पूर्ण जीवन पद्धति ने बेटे को पिता का, भाई को भाई का दुश्मन बना दिया है। आये दिन समाचार पत्रों में छपी घटनाएं, रिश्तों में आ रही कड़वाहट और भयावह स्थिति को बयां कर रही है। महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति हेतु अवांछित तत्वों को खुलेआम प्रोत्साहन मिलता है। जिसके चलते चोरी, डकैती, अपहरण,भ्रष्टाचार, हिंसा जैसी वारदातों को भी बढ़ावा ही मिल रहा है। इसलिए जरूरत है जागने की, सँभलने की! अपने साधनों, अपनी योग्यता, और अपने सामर्थ्य का पुनर्मूल्यांकन आवश्यक है।
सादगी पूर्ण जीवन कथनी-करनी में समानता का भाव दर्शाता है। तनावमुक्त जीवनशैली, सुखमय वातावरण का उपहार, हर क्षण प्रसन्न रहने का विश्वास, सफल जीवन जीने का आदर्श प्रदान करती है- सादगी। सादगी मय जीवन की शुरुआत कर हम फिर से सच्चे आत्मिक सुख, सुकून व सफलता को प्राप्त कर सकते हैं।

[ राजकुमार जैन ‘राजन’,चित्रा प्रकाशन के संपादक हैं. ‘छत्तीसगढ़ आसपास’ के वीवर्स के लिए उनकी पहली आलेख, ‘करें सादगीपूर्ण जीवन शैली का विकास’. राजस्थान,चितौड़गढ़ से,लेखक ने विशेष रूप से मौलिक रचना ‘छत्तीसगढ़ आसपास, वेब पोर्टल’ के लिए भेजी हैं, पढ़ें औऱ अपनी राय से अवगत करायें,-संपादक ]

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