डॉ.गणेश खरे की जन्मतिथि पर विशेष
●आज़ डॉ. गणेश खरे की जन्मतिथि पर विशेष
●अविस्मरणीय स्मृतियों में,
डॉ. गणेश खरे जी.
-श्रद्धा नवत-
-श्रीमति वंदना गोपाल शर्मा’शैली’
“आया उस दिन यह पैगाम कि आप चले गए…
मैं ठहर सी गई
नहीं हुआ विश्वास…
बेटियां पीहर से होती है दूर…
पर आत्मा से जुड़ी रहती है सदा…
बीच का लंबा अंतराल
कुछ कठिन था…
कोरोनाकाल के चलते
हम अपनों से नहीं मिल पाए …
यह दुख जीवन पर्यंत रहेगा!”
राजनांदगांव की साहित्यिक धरा पर एक प्रतिष्ठित नाम साहित्य मनीषी मर्मज्ञ मूर्धन्य रचनाधर्मी डॉ गणेश खरे…जिनका असमय जाना साहित्य जगत की संचेतना का खो जाने जैसा है।
मेरा सौभाग्य है कि मैं उस भूमि पर जन्मी जहां खरे सर का आशीर्वाद सदैव मिलता रहा… साथ ही मुझे यह भी नहीं भूलना है कि यह वही धरा है जहां पर श्रद्धेय गजानन माधव मुक्तिबोध, श्रद्धेय बलदेव प्रसाद मिश्र, आदरणीय पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, आ.श्रदैय मेघनाथ कन्नौजे ने साहित्य कर्म लंबे समय तक किया ।
श्रेष्ठ कृतियों की पहचान है आप… वहीं
परंपरावादी मान-मूल्यों का आपने सदैव सम्मान किया।
अंतर्मुखी, शांत, सरल सौम्य व्यवहार के धनी
आप कृतियों के पारखी थे…।
चोटी के एक ऐसे साहित्यकार जिनका सानिध्य , असीम आशीष मुझे मिला ।आप मेरे हमेशा हितैषी रहे। मेरे लेखन को आपने नई दिशा दी व मेरे प्रेरणा स्त्रोत रहे।
आपने सिद्ध कर दिया कि राजनांदगांव की धरा कलम सी तलवार की धनी है।
मृदुभाषी,मिलनसार साहित्य को गहराई से समझना हमारे लिए जहां कठिन रहा वहीं आप अपनी समझ से विषयों को सरल कर देते थे… जिससे विधार्थियों को पठन-पाठन में आनंद आता था।
आज की शिक्षा प्रणाली व विषय वस्तु पर भी आपने नवीन विचार दिए हैं। साक्षरता पर कई किताबें निकाली आपने।
बचपन से ही मेधावी होनहार प्रतिभावान रहे।
आप सदैव अध्ययनशील रहे …मैंने आपमें कभी आलस्य नहीं देखा।
साहित्य को समृद्ध करने में आपका अमूल्य अवदान सदैव स्मरणीय रहेगा…!
साहित्यिक धरा की निर्मल छाया से दूर …गगन के चमकते सितारा बन गए आप।
“न ठहरे… न कभी विचलित हुए…
आप अपने पथ से।
कब कौन ,कहां ,कैसे जन्मेगा यह नहीं हमारे वश में…
आपका जन्म निश्चित है इसी भूमि भारतदेश में।।”
साहित्य मनीषी, मूर्धन्य साहित्यकार डॉ. गणेश खरे …जिन्हे हम एक श्रेष्ठ कुशल रचनाधर्मी निबंधकार, भाषाविद, व्याकरणविद, कवि,लेखक, कहानीकार उपन्यासकार, एकांकीकार के रूप में जानते हैं।
आपने! अपने जीवनकाल में डेढ़ सौ के लगभग किताबें लिखी जिनमें-14 उपन्यास 11 समीक्षात्मक ग्रंथ, हिंदी भाषा और व्याकरण की ६ किताबें, 3 नाटक और 45 एकांकी लिखें 6 काव्य संकलन 5 लघुकथा संग्रह और नव अक्षरों के लिए 50 पुस्तकों का लेखन किया… साथ ही हिंदी के शोध निदेशक के रूप में इन्होंने 30 से अधिक शोधार्थियों को पी.एच.डी. करायी।
आपकी भावपूर्ण ,स्पर्शी, प्रेरणादायी बोध कथाएं मुझे बहुत ही अच्छी लगती है बार-बार पढ़ने का मन करता है।
इनकी धर्मपत्नी डॉ. श्रीदेवी खरे प्राचार्य पद से सेवा निवृत्त है।(महारानी लक्ष्मी बाई स्कूल)
शिक्षा विभाग के पद पर सहायक संचालक आदित्य खरे और आइसेक्ट कंप्यूटर इंस्टीट्यूट के संचालक विजय खरे , श्रीमती किर्ति श्रीवास्तव एवम् डॉ. श्रुति खरे के पिताजी थे।
आदरणीय खरे सर शिक्षा को लेकर हमेशा चिंतन किया करते थे …कि अध्यापन कार्य में कम ध्यान दिया जाता है… बाकी कार्यों में अधिक समय क्यों ?? जहां स्कूलों में शिक्षक नहीं होते थे वहां तुरंत शिक्षक रखने की बात भी कहते थे। शिक्षा नीति में कौशल विकास संबंधी कार्यक्रम के माध्यम से व्यक्तित्व विकसित करने में अधिक जोर देते थे उनका मानना था कि व्यक्तित्व का उन्मुखीकरण शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य हो …जिससे गुणात्मक परिणाम आएंगे।
मेरी दो किताबें आने की आहट व अहसास प्रेम का सर के मार्गदर्शन पर ही प्रकाशित हुई जिसकी समीक्षा आदरणीय सर ने ही लिखी थी।
सर हमेशा कहा करते थे…जो हमेशा याद रहेगी मुझे-
“पल ,एक पल में
बीत जाता है…
निरंतर कर्म करते रहना चाहिए।”
सचमुच!आप निरंतर क्रियाशील रहे।
आपकी रचनाएं अनंत काल तक आबाद रहेगी आपको नमन!