लघुकथा
●अवसर
●महेश राजा
वह फाईलों मे उलझा हुआ था।तभी उसे महसूस हुआ कि कोई पास आ कर खडा हुआ है।उसने देखा कि एक सज्जन हाथ मे कुछ कागजात लिये खडे हुए है।फिर उसने घडी की तरफ देखा,पांच बजने को थे।पांच बजे के बाद आफिस मे कोई काम नहीं होता था।
लेकिन उसने उक्त सज्जन को पुकार कर कहा,लाईये आपका काम कर दूं।
सज्जन ने धन्यवाद देते हुए कहा,स्थानीय बैंक मे कार्य रत हूं। कभी कोई काम हो तो सेवा का अवसर अवश्य प्रदान करे।
कुछ दिनो बाद एक आवश्यक काम से वह बैंक पहुंचा।देखा तो उस दिन वाले सज्जन ही काउंटर पर थे,जो उसकी आफिस आये थे।उसे बडी तसल्ली हो गयी।उसे रूपयों की सख्त आवश्यकता थी।एटीएम से निकल न रहे थे।उसे अरजेन्ट कहीं बाहर जाना था ट्रेन के समय तक पैसै न मिलने पर बडी मुश्किल मे पड जाने का अंदेशा था।आज काऊँटर पर लंबी कतार लगी थी।
बडी मुश्किल से वह कांँऊटर के पास पहुंचा।सज्जन की तरफ देखकर मुस्कुराया,अभिवादन स्वरूप हाथ जोड़े और विथडा्ल फार्म सज्जन की तरफ बढाया।
उक्त सज्जन ने मोटे चश्मे के बाईफोकल कांच के ऊपरी हिस्से से अपनी आंखे उपर कर उसे घूरा और कहा,:”कृपया कतार से आईये।”
वह बडी मायूसी से घडी की तरफ देखता हुआ,कतार के अंतिम छोर पर जा खडा हुआ। अपनी बारी की प्रतीक्षा करने लगा।
●लेखक संपर्क-
●9425201544