बचपन की यादें – अमृता मिश्रा
गणतंत्र दिवस ( बचपन की यादें)
तिंरगे को देखकर बचपन में भी दिल में एक अजीब सा ज़ज्बा पैदा होता था। आज सुबह से रिमझिम बारिश के बीच स्कूल जाकर गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम में शामिल होने के बाद वापस आते हर बार की तरह अपने बचपन के दिनों की यादों ने फिर घेर लिया।
आज इतनी मसरूफ जिंदगी के बावजूद जब वह बचपन का स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस याद आता है तो अजीब सी खुशी मिलती है। मुझे याद है कि 26 जनवरी को परेड भी हुआ करती थी। बड़का फील्ड में खेल-कूद, दौड़, साईकिल रेस, समेत अलग अलग कई खेल भी हुआ करते थे। 26 जनवरी पर हमें चॉकलेट मिला करती थी। चॉकलेट मिलना इस दिन की सबसे खास बात होती थी। आज के महंगे चॉकलेट की जगह वो 10 पैसे वाली चॉकलेट अभी भी बेशकीमती लगती है। हम सब उसे मुट्ठी में दबाये रखते। खाने से ज्यादा उसे निहारने उसे बार-बार गिनने का सुख भी एक अजीब ख़ुशी देता था। वो चॉकलेट किसी अवार्ड से कम नहीं लगता था।
हाँ..उसके साथ उमड़ता था दिल में देशभक्ति का ज़ज्बा … सबके साथ मिलकर राष्ट्रगान औए देशभक्ति के गाने गाना हमारे लिए दूसरा एक्साइटमेंट का पल होता था । खूब जोर- जोर से नारे लगाते जब घर वापस आते तो लगता जैसे एक फतह हासिल किया हो।
तिरंगा तब भी दिलों में वही अनूभूति लाता था जो आज भी तिरंगे को लहराते देखकर होता है। मुझे कभी- कभी लगता है अपने तिरंगे झंडे को हर दिन लहराना चाहिए, खासकर स्कूलों और कॉलेजों में कुछ तो बात है अपने देश के तिरंगे में, जिसे देखकर मन पावन सा हो जाता है और हर रिश्ते से ऊपर उठकर मन वतनपरस्ती के एकाकी ज़ज्बे में डूब जाता है | हम रहे न रहें हमारा तिरंगा बस ऐसे ही जोशो उमंग से लहराता रहे। जय हिन्द जय माँ भारती .. शत शत नमन तुम्हें …
【 ●लेखिका व कवयित्री, दिल्ली पब्लिक स्कूल, भिलाई में शिक्षिका के पद पर कार्यरत है ●’छत्तीसगढ़ आसपास’ प्रिंट एवं वेबसाइट वेब पोर्टल, न्यूज़ ग्रुप समूह,रायपुर, छत्तीसगढ़ में उनकी रचनायें नियमित रूप से प्रकाशित हो रही है, अपनी प्रतिक्रिया से अवश्य अवगत करायें,खुशी होगी. -संपादक 】
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