पुस्तक समीक्षा
●कोई गीत सुनाओ
●बाल काव्य संग्रह
-श्यामा शर्मा
[कारवाड़,जिला-कोटा,राजस्थान]
●कोमल मनोभावों का प्रकटीकरण करती कविताएं
-डॉ. बलदाऊ राम साहू
[समीक्षक]
बच्चे सृष्टी का अनमोल धन होते हैं और बाल कविता उनकी सहगामी। दोनों सदैव साथ-साथ चलते हैं, जो सरलता, सहजता और स्वाभाविकता बच्चों में होती है, वहीं सरलता, सहजता और स्वाभाविकता बाल-कविताओं में भी होती है। बाल-कविताएँ
बच्चों को कभी मित्रों की तरह सलाह देती हैं, तो कभी माँ बनकर संस्कार और पिता बनकर अनुशासन का पाठ पढ़ाती हैं। श्यामा शर्मा जी की बाल कविताओं में इन्हीं तत्वों का समावेश है।
‘कोई गीत सुनाओं ना’ बालकाव्य संग्रह जब मुझे मिला तो उत्सुकतावश एक-एक रचना को पूरे मनोभाव से पढ़ा। इस कविता संग्रह में अलग-अलग रंगों की कविताएँ संगृहीत हैं, जिन्हें श्यामा शर्मा जी ने बाल मनोविज्ञान की समझ के साथ रचा है। बाल-कविताओं की पहली कोशिश होती है, कोमल मन वाले बच्चों को एक ऐसी दुनिया में ले जाएँ, जहाँ सब समान होते हैं। छोटे-बड़े, ऊँच-नीच का स्थान नहीं होता। पशु -पक्षी, पेड़-पौधे, नदी-पर्वत सब जीवंत होते हैं। जहाँ न कोई दबाव होता है और न ही चिंताएँ। वहां तो प्रेम, सौहार्द, हँसी-ठिठोली आदि के मनोरम भाव ही होते हैं।
बिल्ली कहती खेलो खेल
बच्चो, तुम बन जाओ रेल
मैं इंजन बन जाऊँगी
छुक-छुक रेल चलाऊँगी।
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मैं बिल में छुप जाऊँगा
तुम्हे नजर ना आऊँगा
मुझे ढूँढना पाओगी
मौसी उल्लू बन जाओगी।
जैसी कविताएँ जहाँ बच्चों का सहज मनोरंजन करती हैं वहीं पर “हरा रंग है चलने वाला, लाल रंग है रूकने वाला।” सहज ज्ञान भी देती हैं। इस कविता संग्रह में जहाँ एक ओर पारंपरिक भाव भूमि की कविताएँ हैं, तो दूसरी ओर इसमें आधुनिक विषयों का भी समावेश किया गया है। पारंपरिक विषयों की कविताएँ बच्चों को लुभाने वाली हैं – जैसे
बंदर जी ने चश्मा पाया
बड़े ठाठ से उसे लगाया
मटक-मटक कर चलते जाते
पीछे बच्चे दौड़ लगाते।
दादा-दादी, नाना-नानी जैसे रिश्तों पर सभी बाल रचनाकार कुछ-न-कुछ लिखते ही हैं, श्यामा शर्मा जी ने भी नानी का घर कविता में बड़ी ही रोचक बात कही है
नई-नई सी परियों वाली
राजकुमारी सोने वाली
बंदर की हो चाल निराली
शेर दिखा देना बलशाली।
जादूगर तस्वीर खिंचाये
और रूमाल से फूल बनाये।
चिड़िया, गिलहरी, मोर, तितली, पाठशाला, बस्ता, बारिश, खरगोश, सूरज, गाँधी, भारत देश आदि बाल-कविताओं के सहज और रोचक विषय होते ही हैं। इन पर लिखी गई कविताएँ बच्चों को बहुत भाती है। श्यामा जी ने अपनी बाल कविताओं में देशज शब्दों का सहज प्रयोग कर इन्हें रोचक और अधिक ग्राह्य बना दिया है। यूँ कहूँ इन देशज शब्दों ने कविताओं में मिट्टी की सोंधी गंध ला दी है।
गाँव-गाँव और ढाणी-ढाणी
मेरी माता जग पहचानी
गली-गली में है वो जाती
सबको अक्षर ज्ञान कराती।
धरती राजस्थान की कविता देश प्रेम के भाव जगाते हुए राजस्थान का गौरव गान करती हुई दिखती है।
ये अतुलित गौरव धाम की
धरती ये राजस्थान की।
‘रंगीला राजस्थान’ और ‘सलूम्बर की हाड़ा रानी’ कविताएं बहुत-सी ऐतिहासिक जानकारी भी देती हैं।
भटियारी रानी मस्तानी
मारवाड़ की धारा सुहानी
डगर-डगर बस्ती-बस्ती में
राजपूतों की अमर कहानी।
समय बदला है, विषय बदले हैं, नवीन संसाधनों और विचारों के साथ बाल कविताओं का संदर्भ भी बदला है। आधुनिक युग ने जीवन को सहज बनाया है तो कुछ समस्याएँ भी पैदा की हैं। श्यामा शर्मा जी एक जागरूक रचनाकार हैं , इसीलिए उनके इस बाल काव्य संग्रह में इन बातों का समावेश है। वे वन्य जीव सप्ताह, कम्प्यूटर दादा, ओजोन परत, पर्यावरण, स्वच्छता अभियान, जल संरक्षण, पृथ्वी दिवस, बायोडाईवर्सिटी दिवस आदि गंभीर और समसायिक विषयों पर भी लिखी हैं।
आज बाल साहित्य के विषयों में नवीन चेतना के साथ परिवर्तन आया है, जो सहज और स्वीकार्य भी है। हम यह नहीं कहते कि पारंपरिक विषयों की कविताएं बच्चों को नहीं लुभाती हैं, किन्तु नए विषयों पर लिखने की महती आवश्यकता है, ताकि बच्चे नवीन विषयों से परिचित हों और वर्तमान परिप्रेक्ष्य को जानें-समझें।
‘कम्प्यूटर दादा’ बातचीत शैली में लिखी गई कविता है।
कैसे हो कम्प्यूटर दादा
बड़े कुशाग्र बुद्धि के दाता
तुमको प्यारी सब आबादी
रोकी कागज की बरबादी।
ओजोन पर छिद्र होने से धरती का तापमान निरंता बढ़ते जा रहा है, जो सबके लिए चिंता का विषय है
गर्मी बड़ी भयंकर है
ओजोन परत का चक्कर है
कार्बन का होता उत्सर्जन
हुआ प्रभावित जिससे जन-जन
बायोडाईवर्सिटी दिवस पर लिखी रचना एक समझ आधारित रचना है। श्यामा शर्मा जी लिखती है-
तरह-तरह के पक्षी नभचर
तरह-तरह के जीव है जनचर
हम सब इनकी सैर मनाते
कीट-पतंग बन प्राणी सब
अब माने अनमोल धरोहर
इन सबका संरक्षण करना
जान गए सब इन्हें समझना।
बाल साहित्य मात्र मनोरंजन का साधन व सीख देने की सामग्री नहीं है, बल्कि यह बच्चों में चेतना जागृत करने के साथ-साथ भाषायी संस्कार विकसित करने का साधन भी है।
मैं श्यामा शर्मा जी के इस प्रयास को नमन करता हूँ,और इसके लिए उन्हें बधाई प्रेषित करता हूँ।
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