होली परब बिसेस- गोपाल कृष्ण पटेल
भाईचारा के संदेश देवइया तिहार होरी
-गोपाल कृष्ण पटेल
[ रायपुर-छत्तीसगढ़ ]
हमर भारत भुइयाँ म सबो जाती धर्म के मनखे मन रहिथे ये सबो धर्म के मनखे मन अपन अपन तिहार ल अब्बड़ सुग्घहर अउ परेम से मनाथे फेर हमर भारत भुइँया म एक ठन अइसन तिहार हे जेन ला सबो धरम के लोगन मन जुर मिलके मनाथे ओखर नाव होरी तिहार हरे। होरी तिहार ल बुराई म अच्छाई के परब म परेम के प्रतीक के रूप म मनाय जाथे होली परब ले भक्त प्रहलाद अउ होलिका ले जुरे कथा अब्बड़ प्रचलित हावे। छत्तीसगढ़ अंचल म होरी तिहार ल फागुन तिहार के नाव से जाने जाथे। होली तिहार म छत्तीसगढ़ म फाग गीत गाए के परम्परा हावे।गांव अउ शहर म बसंत पंचमी से शुरू होक रंग पंचमी तक फाग गीत गाथे अउ शालीनता ले सब झन जुर मिलके होली तिहार ल मनाथे। आज के भागम भाग जिनगी म छोटे बड़े अउ अमीर गरीब के भेद ल मिटाके भाईचारा के संदेश देते इही ये तिहार के बिसेसता हावे।
होरी तिहार के नाव सुनत मन म एक खुशी अउ उमंग छा जाथे। काबर कि होरी के तिहार ह घर म बईंठके मनाय के नोहे।ए तिहार ह पारा मोहल्ला अउ गांव भरके मिलके मनाय के तिहार हरे। होरी के तिहार ल फागुन के महीना म पुन्नी के दिन मनाय जाथे।एकर पहिली बसंत पंचमी के दिन ले लकड़ी सकेले के सुरु कर देथे। लइका मन सुक्खा लकड़ी ल धीरे धीरे सकेलत रथे। होरी एक अइसे रंगबिरंगा तिहार हे, जेला हर धरम के मनखे मन पूरा उछाह अउ मस्ती के संग मनाथे। प्यार भरे रंग ले सजे ये परब जम्मो धरम, संप्रदाय, जाति के बंधन ल खोलके भाई-चारा के संदेश देथे।
होरी तिहार ल फागुन महीना के पुन्नी के दिन मनाय जाथे एकर पहिली बसंत पंचमी के दिन से होरी के लकड़ी सकेले सुरु कर देते लइका मन ह सुक्खा लकड़ी ल धीरे धीरे सकेलत रहिथे। पहिली जमाना म लकड़ी छेना के दुकाल नई रिहिस त चोरा के होरी म डारे के परमपरा रिहिस। हमन नान नान राहन त गांव म दूसर के घर या बियारा कोठार से चुपचाप छेना या लकड़ी ल चोरा के लालन अउ होरी म डार देवन।होरी म डारे लकड़ी ल कोनो नई निकाल सकय।काबर ओहा होलिका ल समरपित हो जाथे। अब महंगाई के जमाना म ये परमपरा ह नंदागे। अब तो होरिच के दिन लकड़ी अउ छेना ल लानथे अउ होरी ल जलाथे।
होरी एक पवित्र तिहार हरे है बुराई से अच्छाई के जीत के तिहार हरे फेर कतको सरारती लइका मन ह एला गलत ढंग से मनाथे। होरी म हुड़दंग करके के तिहार के रूप ल बिगाड़ देथे।कतको झन अब्बड़ नसापानी करथे ककरो ऊपर केरवस, चिखला,गाड़ा के चिट अउ गोबर ल चुपर देथे त कोनो के ऊपर केमिकल वाला रंग ल चुपर देथे।कतको मन तो लड़ाई झगड़ा म उतर जाथे वइसे धीरे धीरे ये परम्परा ह कम होत जाथे फेर भी सुधार कब्बडी जरूरत हे।होरी ल परेम से एक दूसरे के ऊपर रंग गुलाल लगाके अउ गला मिलके मनाना चाहि।
होरी जरे के बाद म मनखे मन अपन अपन घर से पांच ठन छेना, एक मुठा चाउर अउ नरियर धरके होरी जगा जाथे अउ पूजा पाठ करके होरिका म समरपित करथे अउ आसिरबाद लेथे। होरी के राख ल एक दूसरे के माथ म लगाथे अउ सुभकामना देथे।कतको झन ह राख ल अपन घर म छितथे ताकि बुरी नजर ले बचे रहय।
हिन्दू धरम म होरी तिहार के अब्बड़ महत्त हावे होरी धरम म होरी तिहार ल होलिका अउ परम् भक्त प्रहलाद ले जोड़के देखे जाथे। होलिका ल धार्मिक ग्रंथ म सात्विक जिनगी के दूरगुन बताय गय हवय। ये तिहार ह वरन हमर हिन्दू धरम के धार्मिक पुस्तक म मिल जाथे। शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव जब अपन तपसिया करत रइथे त देवता मन शिव जी ल जगाय बार कामदेव के सहारा लेथे।जब कामदेव के द्वारा भगवान शिव के तपसिया ल भंग करे जाथे त शिव जी ह अपन तीसर आँखी ल खो देथें जेकर सेती कामदेव ह भसम हो जाथे। कामदेव जेन दिन भसम होय रिहिस वहु दिन फागुन पुन्नी के दिन रइथे। काम के भावना के प्रतीकात्मक रूप जला के सच्चा भक्ति ल होरी तिहार मनाथे।
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